महाराष्ट्र में इतने धूमधाम से गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है | Why Ganesh Chaturthi is Celebrated in Hindi at a large scale in Maharashtra
हिन्दुओं के देश भारत में कई तरह के त्यौहार मनाये जाते हैं| इन्ही में से एक है गणेश चतुर्थी| वैसे तो गणेश चतुर्थी प्रत्येक माह में 2 बार आती हैं|
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है| लेकिन यदि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी मंगलवार को आती है तो इसे अंगार संकष्टी चतुर्थी कहते हैं|
महराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़े धूमधाम और जोश के साथ मनाया जाता है|
आइये जानते हैं, फिर यह गणेश चतुर्थी किस महीने में आती है और क्यों मनाई जाती है|
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाते हैं गणेश चतुर्थी
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है और इस दिन व्रत भी रखा जाता है|
हाँ, एक बात यहाँ स्पष्ट कर देते हैं| पुरे साल हर महीने की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी (संकष्टी चतुर्थी) को ही व्रत रखा जाता है|
बाकी पुरे साल के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी (विनायक चतुर्थी) को व्रत नहीं रखते हैं| केवल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) का ही व्रत रखा जाता है|
इसे ही बोला जाता है गणेश चतुर्थी|
गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है

गणेश चतुर्थी मनाने के धार्मिक और राजनितिक दोनों ही कारण हैं| धार्मिक कारण के अनुसार यह हिन्दू धर्म का पर्व है इसलिए इस दिन को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है|
1. गणेश चतुर्थी को मनाने के धार्मिक कारण
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है इसी दिन भगवान् गणेश का जन्म हुआ था| गणेशजी का जन्म मध्यान्ह (दोपहर) में होने के कारण इसी समय गणेश जी को घर में स्थापित करने का और पूजा का विधान माना गया है|
इस दिन भगवान् गणेश को सुख, स्म्रधी, बुद्धि और सोभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है|
गणेश जी के जन्म के पीछे कई पौराणिक कहानियां है| इनमें प्रमुख तीन कहानियां ज्यादा प्रचलित है|
एक कहानी यहाँ आपके लिए कह देते हैं|
गणेश जी के जन्म की कहानी
एक बार माँ पार्वती, अपने स्नान घर में स्नान कर रही थी| लेकिन स्नान गृह के द्वार पर कोई स्त्री द्वार पाल उपलब्ध नहीं थी|
इसी समय माँ पार्वती ने अपने शरीर पर लगे उबटन से एक बालक की रचना की और उसमें जान डाल दी|
इस बालक का अभी कोई नामकरण नहीं हुआ था| लेकिन माता ने बालक को पुत्र शब्द से संबोधित करते हुए आज्ञा दी|
हे पुत्र आप स्नान गृह के द्वारा पर पहरा दो और किसी को भी अन्दर आने से तुरंत रोक दो और मेरे अगले आदेश का इंतज़ार करो|
बालक, स्नान गृह के द्वार पर पहरा देने लगा| लेकिन तभी भगवान् शिव वहां आ गए और स्नान गृह में प्रवेश करने का प्रयास किया लेकिन बालक ने उन्हें रोक दिया|
शंकर ने बालक को समझाने की कोशिश की और अपना परिचय भी दिया लेकिन बालक गणेश नहीं माने और शिव से कहाँ यदि आप प्रवेश करना चाहते हैं तो आपको मुझसे युद्ध करना पड़ेगा|
बार बार शिव के आग्रह को न मानने पर उन्हें क्रोध आ गया और अपने त्रिशूल से बालक का सर धड से अलग कर दिया| जब यह समाचार माँ पार्वती को पता चला तो वह दुखी हुई|
अंततः क्रोध में शिव को आज्ञा दी या तो मेरे पुत्र को पुनः जीवित कर दो अन्यथा में इस पुरे संसार को नष्ट कर दूंगी| माँ पार्वती का विकराल क्रोध देखकर शिव ने परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए नंदी को आदेश दिया|
जाओ और सबसे पहले जो भी रास्ते में मिले उसका शीश काटकर ले आओ|
नंदी को रास्ते में एक हथनी मिली जिसके साथ उसका एक छोटा सा बच्चा भी लेटा हुआ था| नंदी उस बच्चे का सर काटकर शिव के पास ले आये|
भगवान् शिव ने हाथी के बच्चे का शीश, गणेश के धड़ पर लगाकर इन्हें पुनार्जिवित कर दिया|
सभी देवी देवताओं के आग्रह पर भगवान् शिव ने इन्हें आशीर्वाद दिया की किसी भी शुभ कार्य करने से पहले आपकी पूजा होगी|
और अपने गण (शिव की सेना) का सेनापति भी बनाया जो दुष्टों का नाश करती थी| इस कारण भगवान् गणेश गणपति और गणेश कहलाये|
2. महाराष्ट्र में धूमधाम से क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी
(राजनैतिक कारण)
गणेश चतुर्थी का त्यौहार का प्रारंभ कब हुआ इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है| लेकिन यह उत्सव सातवाहन, राष्ट्रकूट और चालुक्य के शासनकाल से हिन्दू समाज मनाता आ रहा है|
इसके बाद मुगलों के खिलाफ हिन्दू समाज को एक जुट करने के लिए मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक बड़े उत्सव के रूप में गणेश चतुर्थी का मनाना शुरू किया|
इसका प्रमुख उद्देश्य यह था की हिन्दू जातिवाद और ऊँच नीच का भेद भुलाकर एक साथ इस पर्व को मनाये|
लेकिन जब भारत में अग्रेज शासन आया तो हिन्दू एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेज सरकार ने कई कानून लगाए|
जिसमें 1870 में एक कानून पास किया गया जिसमें हिन्दू समाज के 20 से ज्यादा लोग सार्वजानिक रूप से इकट्ठे होकर कोई त्यौहार नहीं मना सकते थे|
लेकिन फिर भी लोग घरों में गणेश चतुर्थी मनाते आ रहे थे|
लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ हिन्दू समाज को एकजुट करने के लिए 1892 में भाऊसाहेब लक्ष्मण जावले (भाऊ रंगारी) ने सार्वजानिक रूप से गणेश की प्रतिमा स्थापित की|
1893 भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने भाऊ रंगारी के इस प्रयास को आगे बढाया और सार्वजानिक रूप से गणेश चतुर्थी मनाने के लिए पुरे हिन्दू समाज को एकत्रित किया|
तभी से महाराष्ट्र में बड़े धूमधाम से हिन्दू समाज का प्रत्येक वर्ग यह त्यौहार बड़े धूम धाम से मनाता आ रहा है|
गणेश उत्सव दस दिन तक क्यों मनाते है
इस तथ्य के पीछे एक पौराणिक कथा है| पुराणों के अनुसार महाभारत को भगवान् गणेश ने लिखा था| ऋषि वेद व्यास संस्कृत के श्लोक बोलते गए तो गणेश उन श्लोकों समझ समझ कर महाभारत ग्रन्थ में लिखते गए|
इस पूरी प्रक्रिया में 10 दिन लगे और यह कार्य लगातार बिना सोये और कुछ खाए पिए गणपति करते गए| जब दसवें दिन वेद व्यास जी ने गणेश जी के शरीर को छुआ तो वह ज्वर से तप रहे थे|
तभी व्यास जी ने इनके ज्वर को कम करने के लिए इन्हें पास की ठंडे पानी की नदी में स्नान कराया|
इस तरह या परम्परा चली आ रही है| भगवान् गणपति को गणेश चतुर्थी के दिन घर में विराजमान करते हैं और दसवें दिन किसी पास की नदी और तालाब में विसर्जन कर दिया जाता है|
अब आप जान ही गए होंगे गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है (Why Ganesh Chaturthi is celebrated in Hindi)|
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