सुंदरता पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit shlokas on Beauty with Hindi meaning
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ,
विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||
हिंदी अर्थ:- कुंडल पहन लेने से कानों की शोभा नहीं बढ़ती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ, कंगन धारण करने से सुन्दर नहीं होते, उनकी शोभा दान करने से बढ़ती हैं | सज्जनों का शरीर भी चन्दन से
नहीं अपितु परहित में किये गये कार्यों से शोभित होता हैं।
जरा रूपं हरति, धैर्यमाशा,
मॄत्यु: धर्मचर्यामसूया !!
हिंदी अर्थ- वृद्धावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमे पहुँचने के बाद वह सभी मनुष्य की सुंदरता, धैर्य आशा (इच्छा)
मृत्यु, धर्म का आचरण, सुख–दुःख, काम, अभिमान, पद-प्रतिष्ठा सब को हर (छीन, नाश) लेती है|
स्मितं किञ्चिद् वक्त्रे सरलतरलो दृष्टिविभवः
परिस्पन्दो वाचामभिनवविलासोक्तिसरसः ॥
गतानामारम्भः किसलयितलीलापरिकरः
स्पृशन्त्यास्तारुण्यं किमिह न हि रम्यं मृगदृशः ॥
हिंदी अर्थ:- उठती जवानी की मृगनयनी सुंदरियों के कौन से काम मनोमुग्धकर नहीं होते ? उनका मन्द-मन्द मुस्काना, स्वाभाविक चञ्चल कटाक्ष, नवीन भोग-विलास की उक्ति से रसीली बातें करना और नखरे के साथ मन्द-मन्द चलना – ये सभी हाव-भाव कामियों के मन को शीघ्र वश में कर लेते हैं।
ऐताः स्खलद्वलयसंहतिमेखलोत्थ-
झङ्कारनुपुरपराजितराजहंस्य: ।।
कुर्वन्ति कस्य न मनो विवशम् तरुण्यो
वित्रस्तमुग्धहरिणीसदृशैः कटाक्षैः ।।
हिंदी अर्थ:- चञ्चल कङ्गन, ढीली कौंधनी और पायजेबों के घुंघरुओं की मधुर झनकार से राजहंसों को शर्मानेवाली नवयुवती सुंदरियाँ, भयभीत हिरणी के समान कटाक्ष करके, किसके मन को विवश नहीं कर देती ?
वसन्ततिलका
अच्छाच्छचन्दनरसार्द्रकरा मृगाक्ष्यो
धारागृहाणि कुसुमानि च कौमुदी च ॥
मन्दो मरुत्सुमनसः शुचि हर्म्यपृष्ठं
ग्रीष्मे मदं च मदनं च विवर्धयन्ति ॥
हिंदी अर्थ:- अत्यन्त सफ़ेद चन्दन जिनके हाथो में लग रहा है, ऐसी मृगनयनी सुंदरियाँ, फ़व्वारेदार घर, फूल, चाँदनी, मन्दी हवा और महल की साफ़ छत – ये सब गर्मी के मौसम में, मद और मदन, दोनों ही को बढ़ाते हैं ।
शिखरिणी
स्रजो हृद्यामोदा व्यजनपवनश्चन्द्रकिरणाः
परागः कासारो मलयजरसः सीधु विशदम् ॥
शुचिः सौधोत्सङ्गः प्रतनु वसनं पङ्कजदृशो
निदाधार्ता ह्येतत्सुखमुपलभन्ते सुकृतिनः ॥
हिंदी अर्थ:- मनोहर सुगन्धित माला, पंखे की हवा, चन्द्रमा की किरणे, फूलों का पराग, सरोवर, चन्दन की रज, उत्तम मदिरा, महल की उत्तम छत, महीन वस्त्र और कमलनयनी सुंदरी – इन सब उत्तमोत्तम पदार्थों का, गर्मी के तेजी से विकल हुए, कोई कोई भाग्यवान पुरुष ही आनन्द ले सकते हैं ।
मालिनी
किमिह बहुभिरुक्तैर्युक्तिशून्यैः प्रलापैः
द्वयमिह पुरुषाणां सर्वदा सेवनीयम् ॥
अभिनवमदलीलालालसं सुंदरीणां
स्तनभरपरिखिन्नं यौवनं व वनं वा ॥
हिंदी अर्थ:- युक्तिशून्य वृथा प्रलाप से क्या प्रयोजन? इस जगत में दो ही वस्तुएं सेवन करने योग्य हैं – (१) नवीन मदान्ध लीलाभिलाषिणी और स्तनभार से खिन्न सुंदरियों का यौवन अथवा (२) वन ।
नारी निरखि न देखिये, निरखि न कीजे दौर ।
देखत ही तें विष चढ़े, मन आवे कछु और ।।
सर्व सोना कि सुंदरी, आवे बॉस-सुबास।
जो जननी हो अपनी, तोहू न बैठे पास।।
हिंदी अर्थ:- स्त्री को कभी घूरकर न देखना चाहिए, उससे आँखें न मिलनी चाहिए । क्योंकि स्त्री के देखने से ही विष चढ़ता है और फिर मन बिगड़ जाता है। अगर सुंदरी सोने कि भी हो और उसमे सुगंध आ रही हो; यदि वह अपने पैदा करने वाली महतारी हो, तो भी उसके पास न बैठना चाहिए।
अनुष्टुभ्
नामृतं न विषं किञ्चिदेकां मुक्त्वा नितम्बिनीम् ।
सैवामृतरुता रक्ता विरक्ता विषवल्लरी ॥
हिंदी अर्थ:- सुंदरी नितम्बिनी को छोड़कर न और अमृत है और न विष । स्त्री अगर अपने प्यारे को चाहे तो अमृत लता है और जब वह उसे न चाहे तो निश्चय ही विष की मञ्जरी है ।
अनुष्टुभ्
वेश्याऽसौ मदनज्वाला रूपेन्धनविवर्धिता ।
कामिभिर्यत्र हूयन्ते यौवनानि धनानि च ॥ ९० ॥
हिंदी अर्थ:- यह वैश्य सुंदरता रुपी इन्धन से जलती हुई प्रचंड कामाग्नि है । कामी पुरुष इस अग्नि में अपने यौवन और धन की आहुति देते हैं
मंदाक्रान्ता
बाले लीलामुकुलितममी सुंदरा दृष्टिपाताः
किं क्षिप्यन्ते विरम विरम व्यर्थ एष श्रमस्ते ॥
सम्प्रत्यन्त्ये वयसि विरतं बाल्यमास्था वनान्ते
क्षीणो मोहस्तृणमिव जगज्जालमालोकयामः ॥
हिंदी अर्थ:- हे बाले ! लीला से जरा जरा खुले हुए नेत्रों से सुन्दर कटाक्ष हम पर क्यों फेंकती है ? विश्राम ले ! विश्राम ले ! हमारे लिए तेरा यह श्रम व्यर्थ है । क्योंकि अब हम पहले जैसे नहीं रहे; अब हमारा छछोरपन चला गया, अज्ञान दूर हो गया । हम बन में रहते हैं और जगज्जाल को तिनके के सामान समझते हैं ।
शुभ्रं सद्य सविभ्रमा युवतयः श्वेतातपत्रोज्ज्वला
लक्ष्मीर् इत्य् अनुभूयते स्थिरम् इव स्फीते शुभे कर्मणि ।
विच्छिन्ने नितराम् अनङ्ग-कलह-क्रीडा-त्रुटत्-तन्तुकं
मुक्ता-जालम् इव प्रयाति झटिति भ्रश्यद्-दिशो दृश्यताम् ॥
हिंदी अर्थ:- जब तक मनुष्य के पूर्वजन्म के शुभ कर्मों का प्रभाव रहता है, तब तक उज्जवल भवन, हाव्-भाव युक्त सुंदरी नारियां और सफ़ेद छत्र चँवर प्रभृति से शोभायमान लक्ष्मी – ये सब स्थिर भाव से भोगने में आते हैं; किन्तु पूर्वजन्म के पुण्यों का क्षय होते ही, ये सब सुखैश्वर्य के समान – कामदेव की क्रीड़ा के कलह में टूटे हुए हार के मोतियों के समान – शीघ्र ही जहाँ तहाँ लुप्त हो जाते हैं ।
कुङ्कुमपङ्ककलङ्कितदेहा गौरपयोधरकम्पितहारा ।
नूपुरहंसरणत्पदपद्मा कं न वशीकुरुते भुवि रामा ॥
हिंदी अर्थ:- जिसकी देह पर केसर लगी है, गोर गोर स्तनों पर हार झूल रहा है और नूपुर रुपी हंस जिसके चरणकमलों में मधुर मधुर शब्द कर रहे हैं – ऐसी सुन्दरी इस पृथ्वी पर किसके मन को वश में नहीं कर लेती ?
नूनमाज्ञाकरस्तस्याः सुभ्रुवो मकरध्वजः ।
यतस्तन्नेत्रसञ्चारसूचितेषु प्रवर्तते ॥
हिंदी अर्थ:- कामदेव निश्चय ही सुन्दर भौंहवाली स्त्रियों की आज्ञापालन करने वाला चाकर है; क्योंकि जिनपर उनके कटाक्ष पड़ते हैं, उन्ही को वह जा दबाता है ।
अनुष्टुभ्
मुग्धे! धानुष्कता केयमपूर्वा त्वयि दृश्यते ।
यया विध्यसि चेतांसि गुणैरेव न सायकैः ॥
हिंदी अर्थ:- हे मुग्धे सुन्दरी ! धनुर्विद्या में ऐसी असाधारण कुशलता तुझमे कहाँ से आयी, कि बाण छोड़े बिना, केवल गुण से ही तू पुरुष के ह्रदय को बेध देती है ?
अनुष्टुभ्
सति प्रदीपे सत्यग्नौ सत्सु नानामणिष्वपि ।
विना मे मृगशावाक्ष्या तमोभूतमिदं जगत् ॥
हिंदी अर्थ: यद्यपि दीपक, अग्नि, तारे, सूर्या और चन्द्रमा सभी प्रकाशमान पदार्थ मौजूद हैं, पर मुझे एक मृगनयनी सुन्दरी बिना सारा जगत अन्धकार पूर्ण दिखता है ।
वसंततिलका
तस्याः स्तनौ यदि घनौ, जघनं च हारि
वक्त्रं च चारु तव चित्त किमाकुलत्वम् ॥
पुण्यं कुरुष्व यदि तेषु तवास्ति वाञ्छा
पुण्यैर्विना न हि भवन्ति समीहितार्थाः ॥
हिंदी अर्थ:- हे चित्त ! उस स्त्री के पुष्ट स्तनों, मनोहर जाँघों और सुन्दर मुख को देखकर वृथा क्यों व्याकुल होते हो ? यदि तुम उसके कठोर स्तनों कि प्रभृत्ति का आनन्द लेना ही चाहते हो, तो पुण्य करो; क्यूंकि बिना पुण्य किये मनोरथ सिद्ध नहीं होते ।
प्रणयमधुराः प्रेमोद्गाढा रसादलसास्ततो
भणितिमधुरा मुग्धप्रायाः प्रकाशितसम्मदाः ॥
प्रकृतिसुभगा विश्रम्भार्हाः स्मरोदयदायिनो
रहसि किमपि स्वैरालापा हरन्ति मृगीदृशाम् ॥
हिंदी अर्थ:- मृगनयनी कामिनियों के प्रणय प्रीती से मधुर प्रेम रस से पगे, काम की अधिकता से मन्दे, सुनने में आनन्दप्रद, प्रायः अस्पष्ट और समझ में न आने योग्य, सहज सुन्दर, विश्वासयोग्य और कामोद्दीपन करने वाले वचन, यदि स्वछन्दतापूर्वक एकान्त में कहे जाएं तो निश्चय ही सुनने वाले के मन को हर लेते हैं ।