धर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit shlokas on Dharma with Hindi meaning

Share your love

धर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | हिन्दू धर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit shlokas on Hindu Dharma with Hindi meaning

हिन्दू धर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

आसिन्धुसिन्धुपर्यंता यस्य भारतभूमिका ।
पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः ।। – वीर सावरकर

हिंदी अर्थ:- स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी के अनुसार, ‘सिन्धु नदी के उद्गमस्थान से कन्याकुमारी के समुद्रतक (विस्तृत भूभाग को) भारत भूमि को जो पितृ भूमि (मातृ भूमि) और पुण्य भूमि मानते हैं, उन्हें ‘हिन्दू’ कहते हैं ।

उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ।।

हिंदी अर्थ:- समुद्र के उत्तर में और हिमादि्र के (हिमालय के) दक्षिण में जो वर्ष (भूमि) है, उसका नाम भारत है । यहां की प्रजा को भारतीय प्रजा कहते हैं ।

धर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

पूर्वे वयसि तत्कुर्याधेन वृद्धः सुखं वसेत् ।
यावज्जीवेन तत्कुर्याद्येनामुत्रसुखं वसेत् ॥

हिंदी अर्थ:- यौवन में ऐसा करना चाहिए जिससे बुढ़ापा सुख से कटे। यह जीवन ऐसे जीना जिससे परलोक (या दूसरे जन्म) में चैन मिले ।

अस्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने ।
अस्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्ति यं स्थिरम् ॥

हिंदी अर्थ:- इस जगत में धन, जीवन, यौवन अस्थिर हैं; पुत्र और स्त्री भी अस्थिर हैं । केवल धर्म और कीर्ति (ये दो हि) स्थिर है।

उत्थायोत्थाय बोद्धव्यं किमद्य सुकृतं कृतम् ।
आयुषः खण्डमादाय रविरस्तं गमिष्यति ॥

हिंदी अर्थ:- रोज उठकर “आज क्या सुकृत्य किया” यह जान लेना चाहिए, क्यों कि सूर्य (हररोज) आयुष्य का छोटा तुकडा लेकर अस्त होता है।

तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥

हिंदी अर्थ:- तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य हि जगत में हाँसीपात्र बनते हैं ।

अस्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने ।
अस्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम् ॥

हिंदी अर्थ:- इस अस्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी इत्यादि सब अस्थिर है । केवल धर्म, और कीर्ति ये दो हि बातें स्थिर है ।

अजरामरवत्प्राज्ञो विद्यामर्थं च चिन्तयेत् ।
गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥

हिंदी अर्थ:- बुढापा और मृत्यु नहीं आयेंगे ऐसा समजकर विद्या और धन का चिंतन करना चाहिए । पर मृत्यु ने हमें बाल से जकड रखा है, ऐसा समजकर धर्म का आचरण करना चाहिए।

जीवन्तं मृतवन्मन्ये देहिनं धर्मवर्जितम् ।
मृतो धर्मेण संयुक्तो दीर्घजीवी न संशयः ॥

हिंदी अर्थ:- धर्महीन मनुष्य को जिंदा होने के बावजुद मैं मृत समजता हूँ । धर्मयुक्त इन्सान मर कर भी दीर्घायु रहेता है उस में संदेह नहीं।

अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः ।
नित्य संनिहितो मृत्युः कर्तव्यो धर्मसङ्ग्रहः ॥

हिंदी अर्थ:- शरीर अनित्य है; धन भी कायमी नहि है; और मृत्यु निश्चित है, इस लिए धर्मसंग्रह करना चाहिए।

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥

हिंदी अर्थ:- धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥

हिंदी अर्थ:- मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।

स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य जीवति
गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम् ॥

हिंदी अर्थ:- जो गुणवान है, धार्मिक है वही जीते हैं (या “जीये” कहे जाते हैं) । जो गुण और धर्म से रहित है उसका जीवन निष्फल है ।

प्रामाण्यबुद्धिर्वेदेषु साधनानामनेकता ।
उपास्यानामनियमः एतद् धर्मस्य लक्षणम् ॥

हिंदी अर्थ:- वेदों में प्रामाण्यबुद्धि, साधना के स्वरुप में विविधता, और उपास्यरुप संबंध में नियमन नहीं – ये हि धर्म के लक्षण हैं ।

सुखार्थं सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः ।
सुखं नास्ति विना धर्म तस्मात् धर्मपरो भव ॥

हिंदी अर्थ:- सब प्राणियों की प्रवृत्ति सुख के लिए होती है, (और) बिना धर्म के सुख मिलता नही । इस लिए, तू धर्मपरायण बन ।

तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥

हिंदी अर्थ:- तर्क विहीन वैद्य, लक्षण विहीन पंडित, और भाव रहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं।

अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च ।
मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम् ॥

हिंदी अर्थ:- धर्म को न जानकर मनुष्य दुःखी होता है । धर्म का सेवन करने में हि मनुष्य जन्म का साफल्य है ।

बाल्यादपि चरेत् धर्ममनित्यं खलु जीवितम् ।
फलानामिव पक्कानां शश्वत् पतनतो भयम् ॥

हिंदी अर्थ:- बचपन से हि धर्म का आचरण करना (उचित है), जीवन अनित्य है । (शरीर को) पके हुए फल की तरह गिरने का सदैव भय होता है ।

अस्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने ।
अस्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम ॥

हिंदी अर्थ:- इस अस्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पत्र-पत्नी इत्यादि सब अस्थिर है। केवल धर्म, और कीर्ति ये दो हि बातें स्थिर है।

स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य जीवति ।
गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम् ॥

हिंदी अर्थ:- जो गुणवान है, धार्मिक है वही जीते हैं (या “जीये” कहे जाते हैं । जो गुण और धर्म से रहित है उसका जीवन निष्फल है।

विलम्बो नैव कर्तव्यः आयुर्याति दिने ।
न करोति यमः क्षान्तिं धर्मस्य त्वरिता गतिः ॥

हिंदी अर्थ:- विलंब करना ठीक नहि । दिन ब दिन आयुष्य कम होता है । यमराज रुकेंगे नहि, धर्म की (काल की) गति त्वरित है ।

धर्मस्य दुर्लभो ज्ञाता सम्यक् वक्ता ततोऽपि च ।
श्रोता ततोऽपि श्रद्धावान् कर्ता कोऽपि ततः सुधीः ॥

हिंदी अर्थ:- धर्म को जाननेवाला दुर्लभ होता है, उसे श्रेष्ठ तरीके से बतानेवाला उससे भी दुर्लभ, श्रद्धा से सुननेवाला उससे दुर्लभ, और धर्म का आचरण करनेवाला सुबुद्धिमान सबसे दुर्लभ है ।

अथाहिंसा क्षमा सत्यं ह्रीश्रद्धेन्द्रिय संयमाः ।
दानमिज्या तपो ध्यानं दशकं धर्म साधनम् ॥

हिंदी अर्थ:- अहिंसा, क्षमा, सत्य, लज्जा, श्रद्धा, इंद्रियसंयम, दान, यज्ञ, तप और ध्यान – ये दस धर्म के साधन है ।

प्रामाण्यबुद्धिर्वेदेषु साधनानामनेकता।
उपास्यानामनियमः एतद् धर्मस्य लक्षणम् ॥

हिंदी अर्थ:- वेदों में प्रामाण्यबुद्धि, साधना के स्वरुप में विविधता, और उपास्यरुप संबंध में नियमन नहीं- ये हि धर्म के लक्षण हैं।

अथाहिंसा क्षमा सत्यं ह्रीश्रद्धेन्द्रिय संयमाः ।
दानमिज्या तपो ध्यानं दशकं धर्म साधनम् ॥

हिंदी अर्थ:- अहिंसा, क्षमा, सत्य, लज्जा, श्रद्धा, इंद्रियसंयम, दान, यज्ञ. तप और ध्यान – ये दस धर्म के साधन है।

सुखार्थं सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः ।
सुखं नास्ति विना धर्मं तस्मात् धर्मपरो भव ॥

हिंदी अर्थ:- सब प्राणियों की प्रवृत्ति सुख के लिए होती है, (और) बिना धर्म के सुख मिलता नहि । इस लिए, तू धर्मपरायण बन ।

धर्मः कल्पतरुः मणिः विषहरः रत्नं च चिन्तामणिः
धर्मः कामदुधा सदा सुखकरी संजीवनी चौषधीः ।
धर्मः कामघट: च कल्पलतिका विद्याकलानां खनिः
प्रेम्णैनं परमेण पालय ह्रदा नो चेत् वृथा जीवनम् ॥

हिंदी अर्थ:- धर्म कल्पतरु, विषहर मणि, चिंतामणि रत्न है । धर्म सदा सुख देनेवाली कामधेनु है, और संजीवनी औषधि है । धर्म कामघट, कल्पलता, विद्या और कला का खजाना है। इस लिए, तूं उस धर्म का प्रेम
और आनंद से पालन कर, वर्ना तेरा जीवन व्यर्थ है।

अध्रुवेण शरीरेण प्रतिक्षण विनाशिना।
ध्रुवं यो नार्जयेत् धर्मं स शोच्यः मूढचेतनः ॥

हिंदी धर्म:- प्रतिक्षण नष्ट होनेवाले, अनिश्चित शरीर के मुकाबले, निश्चित ऐसे धर्म को जो प्राप्त नहि करता, वह मूर्ख शोक करने योग्य है ।

धर्म रक्षा पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

सकलापि कला कलावतां विकला धर्मकलां विना खलु | 

सकले नयने वृथा यथा तनुभाजां कनीनिकां विना ॥

हिंदी अर्थ:-  जैसे इन्सान की आँखें कीकी के बिना निस्तेज है, वैसे हि धर्म की कला के बिना सभी कला व्यर्थ है।

मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्ठलोष्ठसमं क्षितौ । 

विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति ॥

हिंदी अर्थ:-  मृत शरीर को छोड़कर जैसे लकड़ी के टुकड़े चले जाते हैं, वैसे संबंधी भी मुँह फेरकर चले जाते हैं । केवल धर्म ही मनुष्य के पीछे जाता है।

आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् । 

धर्मो हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

हिंदी अर्थ:-  आहार, निद्रा, भय और मैथुन – ये तो इन्सान और पशु में समान है । इन्सान में विशेष केवल धर्म है, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य है ।

धर्मस्य फलमिच्छन्ति धर्मं नेच्छन्ति मानवाः ।

फलं पापस्य नेच्छन्ति पापं कुर्वन्ति सादराः ॥

हिंदी अर्थ:-  लोगों को धर्म का फल चाहिए पर धर्म का आचरण नहि! और पाप का फल नहि चाहिए, पर गर्व से पापाचरण करना है!

Sanskrit shlokas on Dharma with meaning in Hindi

सत्येनोत्पद्यते धर्मो दयादानेन वर्धते ।
क्षमायां स्थाप्यते धर्मो क्रोधलोभा द्विनश्यति ॥

हिंदी अर्थ:- धर्म सत्य से उत्पन्न होता है, दया और दान से बढता है, क्षमा से स्थिर होता है, और क्रोध एवं लोभ से नष्ट होता है।
धर्मो मातेव पुष्णानि धर्मः पाति पितेव च ।
धर्मः सखेव प्रीणाति धर्मः स्निह्यति बन्धवत ॥

हिंदी अर्थ:- धर्म माता की तरह हमें पुष्ट करता है, पिता की तरह हमारा रक्षण करता है, मित्र की तरह खुशी देता है, और सम्बन्धियों की भाँति स्नेह देता है।
अन्यस्थाने कृतं पापं धर्मस्थाने विमुच्यते ।
धर्मस्थाने कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ॥

हिंदी अर्थ:- अन्य जगहों पे किये हए पापों से धर्मस्थान में मुक्ति मिलती है, पर धर्मस्थान में किया हआ पाप वज्रलेप बनता है।

न क्लेशेन विना द्रव्यं विना द्रव्येण न क्रिया।
क्रियाहीने न धर्मः स्यात् धर्महीने कुतः सुखम् ॥

हिंदी अर्थ:- क्लेश बिना द्रव्य नहि, द्रव्य बिना क्रिया नहि, क्रिया बिना धर्म संभव नहि; और धर्म के बिना सुख कैसे हो सकता है ? (अर्थात् क्लेशरहित तो धर्म और सुख भी नहि मिल सकते!

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौच मिन्द्रियनिग्रहः ।
धी विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ॥

हिंदी अर्थ:- धारणा शक्ति, क्षमा, दम, अस्तेय (चोरी न करना), शौच, इन्द्रियनिग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, अक्रोध – ये दस धर्म के लक्षण हैं।

Share your love
Anurag Pathak
Anurag Pathak

इनका नाम अनुराग पाठक है| इन्होने बीकॉम और फाइनेंस में एमबीए किया हुआ है| वर्तमान में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं| अपने मूल विषय के अलावा धर्म, राजनीती, इतिहास और अन्य विषयों में रूचि है| इसी तरह के विषयों पर लिखने के लिए viralfactsindia.com की शुरुआत की और यह प्रयास लगातार जारी है और हिंदी पाठकों के लिए सटीक और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे

Articles: 553

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *