पूजा-पाठ हो या कोई अन्य धार्मिक कार्य, उसमे जब यजमान को जब आसन पर बैठाया जाता है, तो सबसे पहले उस पर जल छिड़कते हुए पंडित यह मंत्रोच्चारण करते है–
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोSपि वा |
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तर: शुचि: ||
वैसे तो सर व्यक्ति पूजा-पाठ आदि धार्मिक कर्मकांडो के लिए बैठने से पूर्व ही स्नान आदि कर शारीरिक रूप से पवित्र हो चुका होता है, लेकिन मंत्रोच्चारण छिडके हुए जल से यजमान का मन पूजा-पाठ करने के लिए केन्द्रित हो जाता है | इस प्रकार जल छिडकने से पवित्रता का बोध होता है |

जल छिडकने के पीछे मान्यताए यह है कि–
- भगवान विष्णु क्षीरसागर में सोये हुए हैं और उनकी नाभि से कमल का पुष्प खिलता हुआ निकलता है, जिसमे से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई है | ब्रह्मा से जगत की उत्पत्ति हुई है | अतः जल के माध्यम से अपने मूल उद्गम का हम ध्यान कर सकें |
- जल में पैदा होने के बावजूद कमल पर जल की बूँद नहीं ठहरती| इसके इस गुण को अनासक्ति का प्रतीक मना गया है ओर कामना यही की जाति है कि यजमान अनासक्त जीवन जीने का प्रयास करे |
- जल को जीवन कहा गया है और उसके बिना जीवन नहीं चल सकता | अतः पूजा-पाठ के समय पवित्र जीवनदायक जल का स्मरण किया जाता है |
- जल को सभी पापो का नाश करने वाला माना गया है | अग्नि का शमन करने वाला जल हमेशा ऊष्मा को खींचता है |