विशालाक्षी शक्ति पीठ का इतिहास जानकारी और रोचक तथ्य | Vashalakshi Shakti Peetha history information and interesting facts in Hindi
देवी पुराण में माता शक्ति के प्रमुख 51 शक्ति पीठों का वर्णन है| पौराणिक कथाओं के अनुसार जहाँ जहाँ माता सती के शरीर के अंग और आभूषण गिरे वहां शक्ति पीठों का निर्माण कराया गया|
माना जाता है, इन जगहों पर स्वयं माता शक्ति की उर्जा का प्रभाव है, जहाँ सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है|
ऐसा ही एक शक्ति पीठ है विशालाक्षी शक्ति पीठ| आइये संक्षित्प में जान लेते हैं विशालाक्षी शक्ति पीठ के रोचक तथ्य, इतिहास और सम्पूर्ण जानकारी
विशालाक्षी शक्ति की पीठ की सम्पूर्ण जानकारी
vishalaskhi shakti peetha information in hindi

कई प्राचीन ग्रंथों जैसे देवी पुराण, तंत्र सागर, तंत्रचूड़ामणि में विशालाक्षी शक्ति पीठ का वर्णन है| यहाँ शक्ति, देवी गौरी के रूप में विराजमान है|
विशालाक्षी का मतलब होता है बड़ी आँखें|
विशालाक्षी शक्ति पीठ कहाँ स्तिथ है|
यह शक्ति पीठ उत्तरप्रदेश के बनारस शहर में गंगा नदी के मीर घाट के किनारे स्तिथ है| यह स्थान कशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दुरी पर स्तिथ है|
इस मंदिर के पास ही बनारस का प्रसिद्द शमशान घाट मणिकर्णिका स्तिथ है|
विशालाक्षी मंदिर को शक्ति पीठ क्यों माना जाता है
ऐसा माना जाता है, यहाँ माता सती की आँखें और दाहिने कान का कुंडल गिरा था|
कैसे होती है पूजा और महत्वपूर्ण त्यौहार
श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा करने से पहले गंगा में स्नान करते हैं| मन्त्रों के उच्चारण के साथ माता पार्वती की पूजा की जाती है| इस मंदिर में श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के अनुसार दान देते हैं|
कुंवारी लड़कियां, योग्य पति पाने के लिए सोलह सोमवार का व्रत रखती हैं|
निसंतान दम्पतियों को भी संतान का सुख माता की कृपा से प्राप्त होता है|
विशालाक्षी देवी माता की प्रतिमा

इस मंदिर के गर्भगृह में माता की दो मूर्तियाँ हैं| छोटी काले पत्थर से बनी प्रतिमा आदि विशालाक्षी कहलाती है| एक और बड़ी प्रतिमा इस छोटी प्रतिमा के साथ बाद में यहाँ स्थापित की गई थी|
श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन करने के बाद काशी विश्वनाथ और अन्नपूर्णा माता के भी दर्शन करते हैं|
कजली तीज यहाँ का प्रमुख त्यौहार है| यह त्यौहार भाद्रपदा (अगस्त) के महीने में मनाया जाता है| इस दिन देश विदेश से श्रद्धालु माता का दर्शन करने के लिए आते हैं|
पौराणिक कथा
देवी सती, प्रजापति दक्ष की पुत्री थी| नियति के अनुसार ही देवी सती ने, भगवान् शंकर से विवाह किया| प्रजापति, भगवान् ब्रह्मा के पुत्र थे| प्रजापति, अपनी पुत्री सती का विवाह, शंकर से नहीं करवाना चाहते थे|
एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया| इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को बुलाया लेकिन सती और शिव को न्योता नहीं दिया|
लेकिन फिर भी सती यज्ञ में शामिल होने के लिए गई| वहां, राजा दक्ष ने सती का अपमान किया और शंकर को अपशब्द कहे|
यह अपमान सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और हवं कुंड में कूद कर जान दे दी|
जब यह समाचार भगवान् शिव को पता लगा तो वह आग बबूला हो गए और राजा दक्ष का यज्ञ नष्ट कर दिया|
शोकाकुल होकर सती का मृत शरीर लेकर तांडव करने लगे और आकाश मार्ग में भटकने लगे|
शंकर के तांडव नृत्य से श्रष्टि का नाश होने लगा| यह देख देवताओं ने भगवान् विष्णु से मदद मांगी| विष्णु ने भगवान् शंकर को, सती के शोक से बाहर निकालने के लिए देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े कर नष्ट कर दिया|
माता सती के शरीर के अंग और आभूषण प्रथ्वी पर जहाँ जहाँ गिरे वहां शक्ति पीठ का निर्माण किया गया|
प्राचीन ग्रंथों के नाम जिनमें विशालाक्षी शक्ति पीठ का वर्णन है
रुद्रयामाला :- यह के तांत्रिक शास्त्र है और 1052 CE में रचित किया गया| इसमे विशालाक्षी शक्ति पीठ को प्रमुख 10 शक्ति पीठों में
पांचवा स्थान दिया गया है|
कूलरनवा तंत्र :- में 18 पीठों का वर्णन है जिसमें वाराणसी के शक्ति पीठ को 6th स्थान दिया गया है|