सफलता पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit shlokas on Success with meaning in Hindi
उत्थानं संयमो दाक्ष्यमप्रमादो धृति: स्मृति:।
समीक्ष्य च समारम्भो विद्धि मूलं भवस्य तु।।
उधोग, संयम, दक्षता, सावधानी, धेर्य, स्मृति और सोच विचार कर कार्य आरंभ करना, इन्हें उन्नति का मूल
मन्त्र समझना चाहिए
श्लोक का मूल अर्थ यह है की व्यापार हमें पुरे सोच विचार के साथ शुरू करना चाहिए, इसके अलावा
जिस व्यक्ति में संयम, धेर्य, सावधानी है यह उस व्यक्ति के सफल होने के सूचक है| क्योंकि एक सफल
व्यक्ति में यह सभी गुण होते हैं| और कोई भी कार्य करें उसे सोच विचार करके ही शुरू करना चाहिए|
प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति।
सरिंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥
हिंदी अर्थ: –
जैसे एक शेर अपनी पूरी ताकत और सुनयोजित योजना के साथ अपने शिकार पर आक्रमण करता है और अपने शिकार को दबोचने में कामयाब होता है| शेर की शिकार
पकड़ने की कोशिश कभी विफल नहीं होती है| क्योंकि शेर अपनी पूरी ताकत लगा देता है|
इसी प्रकार जब भी हम कोई कार्य शुरू करें उसकी एक योजना बना लें और अपनी पूरी शक्ति के साथ कार्य को आरंभ करके उसका समापन करें तो जीत निश्चित ही है|
अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम्।।
हिंदी अर्थ:- जो व्यक्ति आलसी है वह कभी भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है| जिसके पास विधा नहीं है वह धन नहीं कमा सकता है| जिसके पास धन नहीं है उसके मित्र नहीं हो सकते हैं और अच्छे मित्र नहीं है तो सुख नहीं है|
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।
हिंदी अर्थ:- मनुष्य के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उसका सबसे बड़ा शत्रु होता है, परिश्रम के समान दूसरा कोई मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता।
उद्योगिनं पुरुषसिंहं उपैति लक्ष्मीः
दैवं हि दैवमिति कापुरुषा वदंति।
दैवं निहत्य कुरु पौरुषं आत्मशक्त्या
यत्ने कृते यदि न सिध्यति न कोऽत्र दोषः।।
हिंदी अर्थ:- लक्ष्मी (धन की देवी) कर्म करने वाले पुरुष-सिंह के पास आती है, “देवता (भाग्य) देने वाला हैं” ये तो कायर पुरुष कहते हैं | इसलिए देव (भाग्य) को छोड़ कर अपनी शक्ति से पौरुष (कर्म) करो, प्रयत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो तुम्हारी क्या कमी (दोष) है ? (आपका कोई दोष नहीं है)
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः।।
हिंदी अर्थ:- कोई भी काम मेहनत से ही होता है, बैठ कर हवाई किले बनाने से नहीं, यानी सिर्फ सोचने से नहीं। उसी तरह हिरन खुद सोते हुए शेर के मुंह में नहीं जाता।
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः प्रारभ्य विघ्नविहिताः विरमन्तिमध्याः।
विघ्नैःपुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः प्रारब्धमुत्तमजनाः न परित्यजन्ति।।
हिंदी अर्थ:- इस संसार में नीच, मध्यम और उत्तम ये तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं; जिनमे से नीच प्रकार के मनुष्य तो आने वाली विध्न-बाधाओं के डर मात्र से ही किसी कार्य की शुरुआत नहीं करते; और मध्यम प्रकार के मनुष्य कार्य की शुरुआत तो करते हैं लेकिन छोटी-छोटी परेशानियों के आते ही काम को अधूरा छोड़ देते हैं; परन्तु उत्तम मनुष्य ऐसे धैर्यवान होते हैं जो बार-बार विपत्तियों के घेर लेने पर भी अपने हाथ में लिए गए काम सम्पूर्ण किये बिना कदापि नहीं छोड़ते।
अनिर्वेदो हि सततं सर्वार्थेषु प्रवर्तकः।
करोति सफलं जन्तोः कर्मयच्च करोति सः।।
हिंदी अर्थ:- निराशा से मुक्ति बहुत खुशी देती है और सफलता की ओर ले जाती है, मनुष्य का साहसी अभियान निश्चित रूप से फल देता है।
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिध्यति।।
हिंदी अर्थ:- जैसे रथ (गाड़ी) एक पहिये से नहीं चल सकता, वैसे ही बिना परिश्रम के भाग्य फल नहीं लाता।
स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्।
परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।।
अर्थ- संसार में जन्म मरण का चक्र चलता ही रहता है। लेकिन जन्म लेना उसका सफल है। जिसके जन्म से कुल की उन्नति हो।
वचस्तत्र प्रयोक्तव्यं , यत्रोक्तं रहते फलम्।
स्थायी भवति चात्यंन्तं , रागः शुक्लपटे तथा।।
अर्थ- वाणी का प्रयोग वहीं करना चाहिए, जहां वह वैसे ही सफल हो जैसे सफेद कपड़े पर लाल रंग अत्यंत पक्का होता है।