Sanskrit Slokas on human Nature with Meaning in Hindi | स्वभाव पर संकृत श्लोक

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Sanskrit Slokas on Human Nature with Meaning in Hindi | स्वभाव पर संकृत श्लोक 

हिन्दू सभ्यता सबसे पुराणी सभ्यता है, और सबसे प्राचीन सभ्यता होने के कारण जीवन का अनुभव भी हिन्दुओं के पास अनंत है|

जीवन के इसी अनुभव को हमारे पूर्वजों ने वेदों और उपनिषदों में संकलित किया जो आज के सन्दर्भ में भी सटीक बेठता है|

सत्य भी है, सत्य कभी 2 नहीं हो सकते सत्य हमेशा से ही एक है| ऐसे ही कुछ संस्कृत श्लोक का संकलन आज हमने किया है, जिसमें मनुष्य के स्वभाव और नेचर को अन्य पशुओं के स्वाभाव से तुलना करके समझाया गया है|

आइये चर्चा करते हैं

Sanskrit Slokas on Human Nature with Meaning in Hindi

स्वभाव पर संस्कृत श्लोक

अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानं च शीलमेतद्विदुर्बुधाः ॥

हिंदी अर्थ:- हिन्दू शास्त्रों के अनुसार कर्म से, मन से, और वचन से सभी प्राणियों के प्रत्रि प्रेम प्यार और दान की हमेशा भावना रखना ही बुद्धिमान लोगों के अनुसार शील ( नेतिक आचरण और व्यवहार करने वाले) पुरुष का स्वभाव हैं|

न तेजस्तेजस्वी प्रसृतमपरेषां प्रसहते।
स तस्य स्वो भावः प्रकृति नियतत्वादकृतकः ॥

हिंदी अर्थ:- शास्त्रों में बताया गया है, कोई तेजस्वी और स्वाभिमानी व्यक्ति किसी और के तेज को सहन और बर्दाश्त नहीं कर सकता क्योंकि यह उसका प्रकृति के द्वारा दिया गया जन्म जात स्वाभाव है|

यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः ।
श्वा यदि क्रियते राजा स किं नाश्नात्युपानहम् ॥

हिंदी अर्थ:- जिसका जैसा स्वाभाव होता है उसे बदला नहीं जा सकता, क्या किसी कुत्ते को राजा बना दिया जाए तो क्या वह जूता नहीं खाएगा|

व्याघ्रः सेवति काननं च गहनं सिंहो गृहां सेवते
हंसः सेवति पद्मिनी कुसुमितां गृधः श्मशानस्थलीम् ।
साधुः सेवति साधुमेव सततं नीचोऽपि नीचं जनम्
या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता केनापि न त्यज्यते ॥

हिंदी अर्थ:- जैसे शेर धने जंगलों और गुफा में रहता है, हंस पानी में खिले हुए फूलों के साथ रहना पसंद करता है| उसी प्रकार साधू केवल साधू की संगती और दुष्ट और नीच पुरुष केवल दुष्टों की संगती ही पसंद करता है| जन्म और बचपन से मिला हुआ स्वाभाव बदलता नहीं है|

निम्नोन्नतं वक्ष्यति को जलानाम् विचित्रभावं मृगपक्षिणां च ।
माधुर्यमिक्षौ कटुतां च निम्बे स्वभावतः सर्वमिदं हि सिद्धम् ॥

हिंदी अर्थ:- यह प्रकृति स्वयं में एक रहस्य है, पानी को गहराई और ऊंचाई किसने सिखाई, पशु पंक्षियों में विचित्रता किसने सिखाई, गन्ने में मधुरता और नीम में कड़वा पर कहाँ से आया| यह सब स्वाभाव प्रकृति के द्वारा दिए गए हैं, इनमें कोई भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है|

वचो हि सत्यं परमं विभूषणम्
यथांगनायाः कृशता कटौ तथा।
द्विजस्य विद्यैव पुनस्तथा क्षमा
शीलं हि सर्वस्य नरस्य भूषणम्॥

हिंदी अर्थ:- जैसे पतली कमर स्त्री का और विद्या पंडित का भूषण हैं, वैसे ही सत्य और क्षमा परम् विभूषण हैं। और शील तो सब मनुष्यों का भूषण है।।

स्वभावो न उपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ।
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥

हिंदी अर्थ:- हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है, किसी का भी स्वाभाव सिर्फ उपदेश देकर नहीं बदला जा सकता है, मनुष्य का स्वाभाव सिर्फ उसके अनुभव के आधार पर ही बदलता है| जैसे पानी को खूब गर्म करने पर वह गर्म तो हो जाता है, लेकिन कुछ समय बाद दुवारा से शीतल हो ही जाता है|

वचो हि सत्यं परमं विभूषणम्
यथांगनायाः कृशता कटौ तथा।
द्विजस्य विद्यैव पुनस्तथा क्षमा
शीलं हि सर्वस्य नरस्य भूषणम्॥

हिंदी अर्थ:- जैसे पतली कमर स्त्री का और विद्या ब्राह्मण का भूषण है, वैसे सत्य और क्षमा परम् विभूषण हैं ।

शीलं रक्षतु मेघावी प्राप्तुमिच्छुः सुखत्रयम् ।
प्रशंसां वित्तलाभं च प्रेत्य स्वर्गे च मोदनम् ॥

हिंदी अर्थ:- हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है, जिसे प्रशंसा, धन का लाभ और स्वर्ग का आनंद, ये तीनों सुख की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान व्यक्ति को हमेशा शील (Character) का साथ नहीं छोड़ना चाहिए|

काकः पद्मवने रतिं न कुरुते हंसो न कूपोदके
मूर्खः पण्डितसंगमे न रमते दासो न सिंहासने ।
कुस्ती सज्जनसंगमे न रमते नीचं जनं सेवते
या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता केनापि न त्यज्यते ॥

हिंदी अर्थ:- कौया कभी पद्मवन पर प्रेम नहीं रखता, हंस कुए का पानी नहीं ग्रहण करता, मुर्ख कभी भी पंडित के समूहों में नहीं जाता, सेवक कभी सिंघासन पर बैठकर सम्मान नहीं पाता, बुरी स्त्री सज्जनों के समूह में आनंद का अनुभव नहीं करती, जैसा जिसका स्वाभाव है उसे छोड़ना बहुत मुश्किल है सावधान रहे|

वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्वित्तमायाति याति च ।।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः ||

हिंदी अर्थ:- इस श्लोक के अनुसार धन आता जाता रहता है| धन से क्षीण होने वाल क्षीण नहीं है, पर जिसका शील (Character) नष्ट हो जाए उसका सर्वनाश निश्चित है, इसलिए हमेशा शील का रक्षण करना चाहिए|

परोपदेशकुशलाः दृश्यन्ते बहवो जनाः ।।
स्वभावमतिवर्तन्तः सहस्रेषु अपि दुर्लभाः ॥

हिंदी अर्थ:- इस संसार में दुसरे लोगों को उपदेश और सलाह देने वाले कुशल लोग बहुत हैं| लेकिन उपदेशों के मुताबिक अपने जीवन को ढालने वाले बहुत कम| शायद हजारों में एक

किं कुलेन विशालेन शीलमेवात्र कारणम् ।
कृमयः किं न जायन्ते कुसुमेषु सुगन्धिषु ।

हिंदी अर्थ:- कहने का अर्थ है, ऐसा नहीं है उच्च कुल में सिर्फ शील (नेतिक और संस्कारी विचारों वाले) आत्मा ही जन्म लेती हैं| क्या सुगन्धित फूलों में कीड़े नहीं जन्मते| यहाँ कहा गया है, महान आत्मा का जन्म किसी भी कुल में हो सकता है|यह तो सिर्फ उसके पिछले जन्म का प्रताप और प्रभु की इच्छा|

नैर्मल्यं वपुषः तवास्ति वसतिः पद्माकरे जायते
मन्दं याहि मनोरमां वद गिरं मौनं च सम्पादय
धन्यस्त्वं बक राजहंसपदवीं प्राप्नोषि किं तैर्गुणैः
नीरक्षीरविभागकर्मनिपुणा शक्तिः कथं लभ्यते ॥

हिंदी अर्थ:- शास्त्र कहते हैं, सिर्फ सुसंगती मात्र से सदगुण आपके स्वभाव और जीवन में नहीं आते हैं, यह तो स्वयं के द्रण निश्चय और श्रधा पर निर्भर है|
जैसे बगुले का शारीर निर्मल है, कमल के समान है, मंद गति से चलता है, मधुर वाणी बोलता है और मौन रहता है,लेकिन क्या उसमें हंस की तरह दूध में से पानी निकालने की कला आती है|

नलिकागतमपि कुटिलं न भवति सरलं शुनः पृच्छम् ।
तद्वत् खलजनहृदयं बोधितमपि नैव याति माधुर्यम् ॥

हिंदी अर्थ:- जैसे कुत्ते की पूंछ नली में रखने से सीधी नहीं हो जाती उसी प्रकार समझाने बुझाने से दुष्ट व्यक्ति का ह्रदय परिवर्तन नहीं होता है

इन्टुं निन्दति तस्करो गृहपतिं जारो सुशीलं खलः
साध्वीमप्यसती कुलीनमकुलो जह्यात् जरन्तं युवा ।
विद्यावन्तमनक्षरो धनपतिं नीचश्च रूपोज्ज्वलम्
वैरूप्येण हतः प्रबुद्धमबुधो कृष्टं निकृष्टो जनः ॥

हिंदी अर्थ:- चोर हमेशा चन्द्र की निंदा करता है, व्यभिचारी सज्जन की निंदा करता है, दुष्ट शील व्यक्ति की निंदा करता है, कुल्टा स्त्री पतिव्रता स्त्री की, नीच, कुलीन की, युवा वृद्ध की, अनपढ़ विद्वान् की, गरीब धनवान की, कुरूप सरूप की, अज्ञानी ज्ञानी की और नीच मनुष्य अच्छे मनुष्य की निंदा करता है

काके शौचं द्यूतकरे च सत्यम्सर्पि क्षान्तिः स्त्रीषु कामोपशान्तिः ।
क्लीबे धैर्यं मद्यपे तत्त्वचिन्ता राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा ॥

हिंदी अर्थ:- कौए में पवित्रता नहीं होती, जुआरी में सत्य नहीं, सांप में क्षमा नहीं, कायर में धेर्य, शराबी में अध्यात्म, स्त्री में काम शांति और राजा में मित्रता का भाव नहीं होता|

न धर्मशास्त्रं पठतीति कारणम्न चापि वेदाध्ययनं दुरात्मनः ।
स्वभाव एवात्र तथातिरिच्यते यथा प्रकृत्या मधुरं गवां पयः ॥

हिंदी अर्थ:- ऐसा नहीं जो धर्म शास्त्र और वेद का अध्यन नहीं करता है, वह दुष्ट हो जाता है, दुष्ट तो स्वाभाव से ही दुष्ट होता है शिक्षा से उसका कोई सरोकार नहीं| जैसे गाय का दूध स्वाभाव से ही मधुर होता है|

प्रकृत्यैव विभिद्यन्ते गुणा एकस्य वस्तुनः ।
वृन्ताकः श्लेष्मदः कस्मै कस्मैचित् वातरोग कृत् ॥

हिंदी अर्थ:- प्रकृति ने एक ही वस्तु के अलग अलग गुण दिए हुए हैं. जहाँ बेगन एक व्यक्ति के लिए कफ का कारक है वहीँ दुसरे के लिए वायु रोग का कारण बनता है|

काकस्य गात्रं यदि काञ्चनस्य माविक्यरत्नं यदि चञ्चुदेशे।
एकैकपक्षे ग्रथितं मणीनाम् तथापि काको न तु राजहंसः ॥

हिंदी अर्थ:- कौए की चाहे सोने की चौंच हो, पंखों पर मणि जड़ी हुई हो, लेकिन तब भी कौया राजहंस नहीं बन सकता है|

आशा करते हैं स्वाभाव पर संस्कृत श्लोक ( Sanskrit slokas on human nature with meaning in hindi) का ज्ञान आपके जीवन में निश्चित ही सकारात्मक परिवर्तन लेके आएगा|

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Anurag Pathak
Anurag Pathak

इनका नाम अनुराग पाठक है| इन्होने बीकॉम और फाइनेंस में एमबीए किया हुआ है| वर्तमान में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं| अपने मूल विषय के अलावा धर्म, राजनीती, इतिहास और अन्य विषयों में रूचि है| इसी तरह के विषयों पर लिखने के लिए viralfactsindia.com की शुरुआत की और यह प्रयास लगातार जारी है और हिंदी पाठकों के लिए सटीक और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे

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