श्रीमदभागवद महापुराण के पांचवे स्कन्द में लिखा है कि पृथ्वी के नीचे पाताललोक है और इसके स्वामी शेषनाग है |
श्री शुकदेव के मतानुसार पटल में तीस हजार योजन दूर शेषजी विराजमान है | शेषजी के सिर पर पृथ्वी रखी हुई है | जब ये शेष प्रलयकाल में जगत के संहार की इच्छा करते है, तो क्रोध से कुटिल भ्रकुटियोके मध्य तीन नेत्रों से युक्त 11 रूद्र त्रिशूल लिए प्रकट होते है | पौराणिक ग्रंथो में शेशनाग के फण ( मस्तिष्क ) पर पृथ्वी के टिके होने का उल्लेख मिलता है–

अर्थात् इन परमदेव ने विश्वरूप अनंत नामक देवस्वरूप शेषनाग को उत्पन्न किया, जो पर्वतो सहित इस सारी पृथ्वी को तथा भूतमात्र को धारण किये हुए है |
उल्लेखनीय है कि हजार फणों वाले शेषनाग समस्त नागों के राजा है | भगवान् की शय्या बनकर सुख पहुचाने वाले, उनके अनन्यभक्त हैं और बहुत बात भगवान् के साथ-साथ अवतार लेकर उनकी लीला में सम्मिलित भी रहते है |
नींवपूजन का पूरा कर्मकांड इस मनोवैज्ञानिक विश्वास पर आधारित है कि जैसे शेषनाग अपने फण पर संपूर्ण पृथ्वी को धारण किये हुए है, ठीक उसी प्रकार मेरे इस भवन की नींव भी प्रतिष्ठित किये हुए चांदी के नाग के फण पर पूर्ण मजबूती के साथ स्थापित रहे | शेषनाग को बुलाया जाता है, ताकि वे साक्षात उपस्थित होकर भवन की रक्षा वहां करें | विष्णुरुपी कलश में लक्ष्मीस्वरूप सिक्का डालकर पुष्प व् दूध पूजन में अर्पित किया जाता है, जो नागों को अतिप्रिय है | भगवान् शिवजी के आभूषण नो नाग है ही | लक्ष्मण और बलराम शेषावतार माने जाते है | इसी विश्वास से यह प्रथा जारी है |