Madhvacharya Biography life History information in Hindi | मध्वाचार्य का जीवन परिचय और इतिहास
मध्वाचार्य (Madhvacharya), भक्ति आन्दोलन के प्रमुख दार्शनिक संत थे| इन्होने हिन्दू धर्म के जटिल धर्म सूत्रों को सरल भाषा में जन जन तक पहुंचाकर धर्म का पुनुर्थान करने का प्रयास किया|
मध्वाचार्य के अनुसार भगवान् विष्णु ही इस संसार के रचियता हैं, इन्हें ही आचार्य जी ने ब्रह्म कहा|
शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित अद्वैतवाद के सिद्धांत का इन्होने विरोध किया और अपना एक नया सिद्धांत द्वैतवाद की व्याख्या की| मध्वाचार्य का तर्क था, जीव (आत्मा) और ब्रह्म (विष्णु) अलग हैं|
मध्वाचार्य जी (Madhvacharya) के अनुसार, जीव ब्रह्म के साथ भक्ति के माध्यम से एकचित हो सकता है| द्वैतवाद के सिद्धांत की आगे हम विस्तार से चर्चा करेंगे|
मध्वाचार्य के द्वैतवाद के सिद्धांत को हिन्दू वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों ने स्वीकार किया, क्योंकि की यह जन साधारण के समझने में आसान था|
यदि आप भक्ति आन्दोलन के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो यह आर्टिकल पढ़ लें
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आइये मध्वाचार्य जी के जीवन और इतिहास के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं
Madhvacharya Biography in Hindi
क्रमांक | Particular | Detail |
1 | नाम | मध्वाचार्य |
2 | बचपन का नाम | वासुदेव |
3 | अन्य नाम | पूर्ण प्रजना, आनंद तीर्थ, |
4 | उपाधि | पूर्ण प्रजना, जगद्गुरु, आनंदतीर्थ |
5 | पिता | मध्यगेहा |
6 | माता | वेदावती |
7 | सिद्धांत | द्वैतवाद |
8 | जन्म तिथि | 1238 |
9 | जन्म स्थान | पाजक, उडुपी कर्णाटक |
10 | गुरु | अच्युतप्रेक्ष |
11 | कार्य | उडुपी श्री कृष्ण मठ की स्थापना |
12 | रचनाएं | सर्वमूल ग्रन्थ |
13 | म्रत्यु | 1317 |
मध्वाचार्य जी का जीवन परिचय और इतिहास

मध्वाचार्य जी का प्रारंभिक जीवन
मध्वाचार्य के जीवन के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, कुछ इतिहासकार इनकी जीवन यात्रा 1238-1317 के बीच में बताते हैं|
वहीँ अन्य जानकार बताते हैं की इन्होने अपना जीवन 1199 – 1278 के बीच में बिताया|
मध्वाचार्य जी (Madhvacharya) का जन्म कर्णाटक राज्य के उडुपी शहर के पास स्तिथ पजाक स्थान पर हुआ था| इनके पिता का नाम मध्यगेहा और माता का नाम वेदावती
था|
इनका परिवार एक तुलु वैष्णव ब्राहमण परिवार से था| इनके पिता ने इनके जन्म का नाम वासुदेव रखा था|
मध्वाचार्य जी को अपने जीवन के सफ़र में कई नामों से जाना गया| किशोरावस्था में संन्यास दीक्षा के समय इन्हें पूर्णप्रजना के नाम से जाना गया|
मध्वाचार्य जब अपने मठ के प्रमुख महंत बनने पर आनंदतीर्थ के नाम से जाना गया|
आधुनिक इतिहासकार ने इन दो नामों के अलावा मध्वाचार्य के नाम से भी इन्हें इंगित किया है|
मध्वाचार्य जी की प्रारंभिक शिक्षा
मध्वाचार्य जी ने अपने उपनयन संस्कार (जनेऊ) के बाद प्रारंभिक सिक्षा प्रारंभ की| किशोरावस्था में इन्होने सन्यास ले लिया और गुजरात के एक अद्वैतवाद के सिद्धांत पर आधारित मठ में प्रवेश ले लिया|
यहाँ अचुत्यप्रेक्षा (अचुत्यप्र्जना) जी ने इन्हें अपना शिष्य स्वीकार कर लिया|
यहाँ इसी मठ में इन्होने अपनी अद्वैतवाद की शिक्षा प्रारंभ की, लेकिन मध्वाचार्य जी अद्वैतवाद के सिद्धांत से सहमत नहीं थे|
इनकी विचारधारा और अनुभव के आधार पर अद्वैतवाद का सिद्धांत व्यावहारिक नहीं था|
इसी कारण मध्वाचार्य जी (Madhvacharya) का अपने गुरु से वाद विवाद रहता था| अंततः इन्होने मठ को छोड़ने का फैसला ले लिया|
मठ छोड़ने के वाद इन्होने अपने सिद्धांत अद्वैतवाद के सिद्धांत का प्रचार प्रसार किया|
मध्वाचार्य जी ने एक द्वैतवाद मठ की भी स्थापना की इसी मठ से मध्वाचार्य के कई शिष्य जैसे जयतीर्थ, व्यासतीर्थ, वदिराजा तीर्थ और राघवेन्द्र तीर्थ ने द्वैतवाद के सिद्धांत का प्रचार प्रसार किया|
आइये जानते क्या है अद्वैतवाद सिद्धांत
अद्वैतवाद के सिद्धांत को जानने से पहले द्वैतवाद के बारे में संक्षिप्त में जान लेते हैं| द्वैतवाद का सिद्धांत आदि शंकराचार्य जी ने 7वी से 8वी शताव्दी में दिया थे|
इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य आत्मा और परमात्मा में कोई अंतर नहीं है दोनों एक ही स्वरुप है, और यह जगत एक मिथ्या है और स्वप्न के समान है|
लेकिन मध्वाचार्य, इस सिद्धांत से सहमत नहीं थे| मध्वाचार्य के अनुसार प्रमाण ही सत्य है, हर एक तथ्य समय के अनुसार सत्य है जो दिख रहा है वह सत्य है|
मध्वाचार्य के द्वैतवाद सिद्धांत के अनुसार विष्णु इस जगत के पालन हार अर्थार्थ ब्रह्म हैं, और मनुष्य (जीव) आत्मा और परमात्मा एक नहीं है अलग है|
मनुष्य अपने जीवन में समन्वय बनाकर और वैदिक शास्त्रों के प्रमाणों के ज्ञान के आधार पर प्रभु विष्णु को पा सकता है|
मध्वाचार्य जी कहते हैं विष्णु वेदों के निर्माता नहीं है, सिर्फ शिक्षक हैं|
इस सिद्धांत का आधार ज्ञान है, और माधव कहते हैं जानने वाला और संसार दोनों ही सत्य हैं| यह जगत मिथ्या नहीं है
अद्वैतवाद के सिद्धांत में कर्म काण्ड (मीमंसा) और ज्ञान मार्ग दोनों को ही स्वीकार किया गया है| इस सिद्धांत में ज्ञान के तीन आधार बताये गए हैं|
प्रत्यक्ष:- इसका मतलब प्रमाण है जो हम महसूस करते हैं और साक्षात् देखते हैं, द्वैतवाद के सिद्धांत के अनुसार प्रत्यक्ष दो प्रकार के हैं|
बाहरी और आतंरिक, बाहरी प्रत्यक्ष का मतलब है, शरीर के 5 senses का सांसारिक वस्तुओं से संपर्क, और आतंरिक प्रमाण है अपने आत्मा शरीर का दिमाग के साथ अनुभव|
अनुमान:- अनुमान प्रमाण का तात्पर्य है अपने प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर किसी अनुमान पर पहुँचाना, जैसे हम धुआं देखकर आग का अनुमान लगाते हैं
आगे अनुमान को भी तीन भागों में बांटा गया है, 1. प्रतिजना, 2. हेतु (reasons), 3. द्रष्टान्त (Example)
शब्द:- का मतलब है अपने अनुभव और अनुमान को शब्दों में व्यक्त करना इसे ही वेद कहा गया है|
मध्वाचार्य जी ने ग्रंथों और पञ्च भेद के अध्यन के माध्यम से अपने द्वैतवाद के सिद्धांत की निम्नलिखित विशेषताए वर्णित की|
मध्वाचार्य जी ने इसे अत्यंत भेद दर्शनं कहा है|
- भगवान् (ब्रह्म ) और व्यक्ति (आत्मा) दोनों प्रथक हैं
- परमात्मा और पदार्थ (संसार) भी प्रथक हैं
- जीवात्मा और पदार्थ में भी अंतर है
- एक आत्मा भी दूसरी आत्मा से प्रथक है
- दो भौतिक वस्तुओं में भी आपस में फर्क होता है|
आगे भी इस पूरे ब्रह्माण्ड को और भी भेदों में वर्गीकृत किया है, जैसे
1) स्वतंत्र:- स्वतंत्र उसे कहा गया है जो किसी पर निर्भर नहीं है, इश्वर और परमात्मा को स्वतंत्र माना गया है
2) आश्रित:- मनुष्य और जीवात्मा को आश्रित माना गया है क्योंकि यह परमात्मा पर निर्भर है पूर्ण स्वतंत्र नहीं है|
आगे आश्रित को भी वर्गीकृत किया गया है|
अ) सकारात्मक
ब) नकारात्मक
मध्वाचार्य के अनुसार मोक्ष के योग्यता के आधार पर भी जीवात्मा को वर्गीकृत किया है|
1. पूर्ण समर्पित लोग मोक्ष के योग्य हैं
2. नित्य संसारी (संसारी चक्र में फंसे हुए) मोक्ष के योग्य नहीं हैं
इसके अलावा तमोयोग्य व्यक्ति निश्चित ही नरक में जाने के अधिकारी हैं|
यहाँ रामानुचार्य के आत्मा के वर्गीकरण के सिद्धांत को मध्वाचार्य ने स्वीकार किया है|
1) नित्य – सनातन (लक्ष्मी के समान)
2) मुक्त – देवता, मनुष्य, ऋषि, संत, और महान व्यक्ति
3) बद्ध – बंधे व्यक्ति
मध्वाचार्य द्वारा रचित धर्म ग्रन्थ और साहित्य
- द्वैतवाद पर 37 ग्रन्थ
- माधवाभाष्य
- गीता भाष्य (भगवतगीता का अनुवाद)
- ऋग्वेद के 40 श्लोक का अनुवाद
- भगवत तात्पर्य निर्णय (भगवत पुराण का अनुवाद)
- विष्णु और विष्णु के अवतारों पर श्लोक और कविताएं
- अनु-व्याख्यान (ब्रह्म सूत्र का अनुवाद)
मध्वाचार्य, वायु देवता का अवतार:-
मध्वाचार्य को वायु देवता का तीसरा अवतार माना जाता है, आपको यहाँ बता दें वायु देवता का पहला अवतार हनुमान और दूसरा अवतार भीम है|
ब्रह्म सूत्र पर लिखे भाष्य में भी यह बात स्पष्ट हो जाती है| मध्वाचार्य कहते हैं वह विष्णु और अद्वैतवाद के अनुयायी के बीच का माध्यम हैं|
मध्वाचार्य ने की 8 माधव मठ की स्थापना
मध्वाचार्य जी ने उडुपी में 8 मठों की स्थापना की, इन्हें माधव मठों के नाम से जाना जाता है|
- पलिमारू मठ (Palimaru Matha)
- अदामारू मठ (Adamaru Matha)
- कृष्णपुरा मठ (Krishnapura matha)
- पुत्तिजे मठ (Puttige Matha)
- शिरूर मठ (Shirur Matha)
- सोधे मठ (Shodhe matha)
- कनियूरू मठ (Kaniyooru Matha)
- पेजावर मठ (Pejavara Matha)
इन आठ मठ के बीच में अनंततेस्वारा कृष्णा हिन्दू मंदिर है|

इन मठों में रहने वाले साधू सन्यासी हैं और मध्वाचार्य के द्वारा स्थापित “परयाया सिस्टम” के आधार पर यह साधू शिक्षा लेते है|

उडुपी के अलावा भी माधवा मठ स्थापित किया गए है| कुल 24 माधव मठ पूरे भारत में स्थापित किया गए हैं| माधव संस्कृति का मुख्य केंद्र कर्णाटक ही है|
माधव मठ के मुख्य संत, स्वामी कहलाते हैं| मध्वाचार्य द्वारा निर्धारित विधि के द्वारा एक निश्चित अवधि के बाद उत्तराधिकारी स्वामी का चुनाव किया जाता है|
इन मठों में प्रत्येक दिन 15,000 से 20,000 लोगों के लिए खाना खिलाया जाता है, उत्तराधिकारी चुने जाने के समय करीब 80,000 लोगों का भोजन तैयार होता है|
आशा करते हैं आपको मध्वाचार्य का जीवन परिचय और इतिहास ( Madhvacharya Biography life History and information in hindi) की जानकारी पसंद आई होगी
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