Kakori Kand History story information in Hindi | काकोरी कांड का इतिहास कहानी और जानकारी हिंदी में
भारत का स्वाधीनता संग्राम 1857 से लेकर 1947 तक कई महान आंदोलनों का गवाह बना| लेकिन कुछ ऐसे आन्दोलन भी थे जिन्हें बहुत कम अहमियत दी गई| कई इतिहासकारों ने तो इन घटनाओं को स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन मानने से ही इनकार कर दिया|
लेकिन जब जब जिस जिस आन्दोलन ले भारत की जनता के ह्रदय को आज़ादी की स्वछन्द तरंगों से आंदोलित किया हो भला उस बलिदान का कैसे आज़ादी की लड़ाई में योगदान नहीं हो सकता है|
ऐसी ही एक घटना काकोरी उत्तर प्रदेश में 9 अगस्त 1925 में हुई, जिसने भारत के युवा वर्ग को होसले और हिम्मत से भर दिया|
ऐसा साहस भारत में 1857 की लड़ाई के बाद पहली बार देखने को मिला जहाँ सीधा अंग्रेजों के राज को चंद बहादुर लड़कों ने चुनोती दी|
दोस्तो, आइये आज चर्चा करेंगे स्वतंत्रता आन्दोलन के (Kakori Kand) काकोरी कांड की, कहाँ हुआ, किसने किया, क्या इसका इतिहास और काकोरी कांड में कोन कोन लोग इसमें शामिल थे|
Kakori Kand in Hindi
नाम | काकोरी कांड |
तारीख | 9 अगस्त 1925 |
कहाँ हुआ था | काकोरी उत्तर प्रदेश |
क्या हुआ था | सरकारी खजाना लुटा गया था करीब 4601 रूपए |
किसको मिली सजा | रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी सचिन्द्र सान्याल को आजीवन कारावास, मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्ष का कारावास |
क्यों लूटा खजाना | हथियार खरीदने के लिए, |
काकोरी कांड के बारे में जानकारी
इस घटना के तार जुड़ते हैं 1923 से, जब सर्वप्रथम शचीन्द्रनाथ सान्याल ने एक क्रांतिकारी पार्टी ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक
एसोसिएशन (एच आर ए) की स्थापना की थी|
इस क्रन्तिकारी संगठन का मुख्य कार्य अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का हिंसा के माध्यम से जबाव देना होता था| ये लोग गाँधीवादी विचारधारा से इतिफाक नहीं रखते थे|
हथियार खरीदने के लिए इस संगठन के लोग धनी लोगों के यहाँ डांका डालकर लूट पाट करते थे|
इस लूटपाट में निर्दोष लोगों की जान जाने से इस संगठन के लोगों का मन ग्लानी भाव से भर आया और इन्होने निश्चित किया की अब केवल सरकारी खजाने को ही लूट कर अपने लक्ष्य को पूरा करेंगे|
काकोरी कांड (Kakori Kand) जिसे काकोरी षड्यंत्र के नाम से भी जाना जाता है, यह इस संगठन का पहला प्रयास था जिसमें इन्होने चलती ट्रेन में से सरकारी खजाना लूटने का प्रयास किया|
लेकिन इनका यह प्रथम प्रयास इनके आखिरी प्रयास में बदल गया|
काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारी
वेसे तो इस संगठन में बहुत सारे क्रन्तिकारी थे| लेकिन इस कांड में करीब 10 से 15 लोगों ही शामिल थे| इनके नाम इस प्रकार हैं
- रामप्रसाद बिस्मिल,
- राजेंद्रनाथ लाहिड़ी,
- रोशन सिंह
- अशफाक उल्ला खां
- शचीन्द्रनाथ सान्याल
- मन्मथनाथ गुप्त
- योगेशचंद्र चटर्जी,
- मुकंदीलाल जी,
- गोविन्द चरणकर,
- राजकुमार सिंह,
- रामकृष्ण खत्री
- विष्णुशरण दुब्लिश
- सुरेशचंद्र भट्टाचार्य
- भूपेन्द्रनाथ,
- रामदुलारे त्रिवेदी
- प्रेमकिशन खन्ना
कैसे और कब हुआ था काकोरी कांड (kakori Kand)
हिंदुस्तान रिपब्लिक के सदस्यों ने शाजहाँपुर में एक मीटिंग रखी और इस मीटिंग में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी
सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई|
यह खजाना ‘आठ डाउन सहारनपुर लखनऊ पेसेंजर ट्रेन’ से लूटा जाना था| पूरी रणनीति बनाने के बाद इस जोखिम भरे कार्य को अंजाम देने का समय आया|
इतिहासकार बताते हैं, अशफाक उल्ला खां ने इस डकेती के लिए संस्था के सदस्यों को मना किया लेकिन बहुमत से यह तय हुआ की यह डकेती की जाएगी|
फिर क्या था, प्लान के मुताबिक लखनऊ के पास स्थित (kakori) काकोरी स्टेशन के पास राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने चेन खीचकर ट्रेन को रोक दिया|
बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खां, पंडित चन्द्रशेखर आज़ाद व् अन्य साथियों की सहायता से गार्ड के डब्बे से खजाने का बक्सा ट्रेन से निचे उतार लिया गया|
बक्से पर मजबूत ताले लगे हुए थे, आखिरकार बक्से को हथोड़े की सहायता से तोड़ दिया गया| इसी बीच मन्मनाथ के हाथ में लगे हुए माउजर से गोली चल गई जिससे एक यात्री अहमद अली की गोली लगाने से मौत हो गई|
सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 4601 रूपए की डकेती हुई थी|
लखनऊ के पुलिस कप्तान मि. इंग्लिश ने 11 अगस्त 1925 को इस घटना का विवरण देते हुए कहा, ‘डकैत खाकी कमीज और हाफ पैंट पहने हुए थे. संख्या में 25 थी|
यह सब पढ़े-लिखे लग रहे थे. पिस्तौल में जो कारतूस मिले थे, वे वैसे ही थे जैसे बंगाल की राजनीतिक क्रांतिकारी घटनाओं में प्रयुक्त किए गए थे|
क्या हुआ काकोरी डकेती के बाद
अगले दिन आग की तरह इस वारदात की सूचना दूर तक फेल गई| अखवारों के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत ने भी अपराधियों को तलाशने का इश्तिहार निकाला और जानकारी देने वाले को इनाम की भी घोषणा की|
लेकिन सरकार इस घटना को लेकर बहुत गंभीर थी| सी आई डी ऑफिसर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व में स्कॉटलैंड की पुलिस की भी मदद ली गई|
अततः 40 लोगों को हिरासत में लिया गया
काकोरी कांड के शहीदों को फांसी, काला पानी उम्र कैद
क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के बाद देश के बड़े नेता हरकत में आ गए| क्रांतिकारियों से जेल में मिलने का तांता लग गया|
जवाहरलाल नेहरु, गणेश शंकर विद्यार्थी आदि बड़े नेता सभी क्रांतिकारियों को मदद का भरोसा दिलाया यह मुक़दमा कलकत्ता के बी के चौधरी ने लड़ा|
यह मुक़दमा लखनऊ की अदालत रिंग थिएटर में 10 साल तक चला, 6 अप्रैल 1927 को इस मुकदमे का फेसला आया
और धारा 121अ, 120ब और 396 के तहत क्रातिकारियों को सजा सुने गई|
निम्नलिखित क्रांतिकारियों को इस प्रकार सजा सुनाई गई|
Particular | Detail |
रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह,अशफाक उल्ला खां | फांसी की सजा |
शचीन्द्रनाथ सान्याल | कालेपानी |
मन्मथनाथ गुप्त | 14 साल की सजा |
योगेशचंद्र चटर्जी, मुकंदीलाल जी, गोविन्द चरणकर, राजकुमार सिंह, रामकृष्ण खत्री | 10 साल की सजा |
विष्णुशरण, दुब्लिश, सुरेशचंद्र भट्टाचार्य | 7 साल की सजा |
भूपेन्द्रनाथ, रामदुलारे त्रिवेदी, प्रेमकिशन खन्ना | पांच साल की सजा |
17 दिसंबर 1927 को सबसे पहले गोंडा जेल में राजेंद्र लिहाड़ी को फांसी दी गई| फँसी से पहले इन्होने पाने मित्र को पत्र लिखा|
‘मालूम होता है की देश के युवा में आज़ादी की लो जगाने के लिए मेरा बलिदान जरुरी है म्रत्यु क्या जवान की एक दूसरी यात्रा, यदि यह सच है इतिहास करवट लेगा और में समझता हूँ, हमारी म्रत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी, सबको अंतिम नमस्ते|
19 दिसंबर 1927 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई| इन्होने अपनी माता को अंतिम पत्र लिखा और बंदेमातरम और भारत माता की जय बोलते हुए फँसी पर चढ़ गए|
अंतिम समय में इन्होने कहा
“मालिक तेरी रजा रहे और तू ही रहे,
बाकी न मैं रहूं, न मेरी आरजू रहे.
जब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे
तेरा हो जिक्र या, तेरी ही जुस्तजू रहे.”
ठाकुर रोशन सिंह को इलाहबाद में फाँसी दी गई.
अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद में फांसी दी गई इनका अंतिम गीत था|
“तंग आकर हम भी उनके जुल्म से बेदाद से
चल दिए सुए अदम जिंदाने फैजाबाद से”
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