Guru Ravidass Ji History in Hindi | संत रविदास का जीवन परिचय

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दोस्तो, इस आर्टिकल में आज हम संत रविदासजी (sant ravidas ji) का जीवन परिचय विस्तार पूर्वक हिंदी में चर्चा करेंगे| संत रविदास जिनको गुरु रविदास ( guru ravidas ) or भगत रविदास जी ( bhagat ravidas ji )  के नाम से भी जाना जाता है, 15वीं शताव्दी के भक्ति मूवमेंट के एक कवि संत थे| गुरु रविदास के जन्म से लेकर उनके सामाजिक योगदान और उनके अंतिम समय तक की पूरी जानकारी (sant ravidas biography in hindi ) हिंदी में अपने पाठकों को उपलव्ध कराने की एक छोटी सी कोशिश हमने की है|

Guru Ravidass Ji History in Hindi

संत रविदास जी का जीवन परिचय

संत रविदास उत्तर भारत के 15वी से 16वी शताव्दी के बीच भक्ति आन्दोलन के एक कवि संत थे| गुरु रविदास कवीर के सम सामयिक थे| भगत रविदासजी के समय में जातिगत भेदभाव चरम सीमा पर था| रविदासजी खुद भी एक, समाज में नीची जाति मानी जाने वाली, चर्मकार जाती ( Cobbler ) से ताल्लुक रखते थे|

जाती पाती के भेदभाव को दूर करने के लिए महान संत रविदास जी ने, जिनको गुरु रैदास ( guru raidas ) के नाम से भी जाना जाता है, अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया|

रविदास जी कहते हैं,

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

अर्थार्थ, जब तक मनुष्य जाति के बंधन में बंधा रहेगा, मनुष्य  तब तक आपस में लड़ता रहेगा| ये जाती पाती की उंच नीच ही मनुष्य को आपस में प्रेम और सधभाव से नहीं रहने देती है|

Guru Ravidass Ji History in Hindi

संत रविदास जी का जीवन परिचय

आइये जानते हैं हमारे महान संत और गुरु रविदास जी का संपूर्ण जीवन परिचय विस्तार से

क्रमांकबिंदुरविदास जीवन परिचय
1.नामगुरु रविदास जी
2.अन्य नामसंत रविदास, संत रैदास, रोहिदास, रूहिदास
3.जन्म1450 CE
4.जन्म स्थानसीर गोवर्धन पुर, वाराणसी
5.पिता का नामश्री संतोख दास जी
6.माता का नामकलसा देवी जी
7.दादा का नामश्री कालू राम जी
8.दादी का नामश्रीमती लखपति जी
9.पत्नीश्रीमती लोना जी
10.पुत्रविजय दास जी
11.म्रत्यु1520

गुरु रैदास जी का प्रारंभिक जीवन

संत गुरु रैदास का जन्म 15वीं से 16वीं शताव्दी के बीच वाराणसी के पास एक गाँव सीर गोवर्धन में हुआ था| इनके पिता का नाम श्री संतोख दास जी और माता का नाम श्रीमती कलसा देवी था|

गुरु रैदास जी का जन्म किस वर्ष में हुआ इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है| कुछ जानकारों का मानना है गुरु रविदासजी कर जन्म 1376-77 के आस पास हुआ था| कुछ कहते हैं 1398, 1399 में हुआ था| कुछ इतिहासकारों का मानना है, गुरु रविदासजी ने अपना जीवन 1450 से 1520 तक सामाजिक कुरीतियों को मिटाने में लगाया|

गुरूजी के पिता जाति से चर्मकार ( Cobbler ) थे और जूते बनाने और सिलने का काम करते थे| गुरूजी भी अपने पिता का उनके काम में हाथ बटा लेते थे|

संत रविदासजी, समाज में फेले छुआ छूत उंच नीच और रंग भेद जैसे कुरुतिओं को देख कर बहुत आहत थे| इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए गुरूजी ने भक्ति आन्दोलन का नेतृत्व किया और अपनी कविताओं और छंदों द्वारा समाज को जाग्रत करने की कोशिश की|

गुरु रैदास जी का प्रभाव पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्रा रहा| इन राज्यों में संत रविदासजी गुरूजी के नाम से जाने जाते थे|

गुरूजी की कहते थे, भगवान् तो निर्गुण (निराकार) हैं, इश्वर सर्वव्यापी ( सब जगह है ) है, तुझमें भी है मुझमे भी है, हम सब इश्वर का अंश हैं| जब हम सब एक इश्वर की संतान है, हम सब एक ही इश्वर का अंश है| तो जाती पाती के आधार पर एक इंसान दुसरे इंसान से तुच्छ (छोटा ) कैसे हो सकता है

गुरु रैदास जी ने मूर्ति पूजा का विरोध किया, और कहा जब सब जगह इश्वर व्याप्त है, तो आप जहाँ हो वही से इश्वर की पूजा कर सकते हो|

गुरु रविदासजी की शिक्षा ( Education of Ravidasji ) :-

गुरु रविदासजी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पंडित शारदा नन्दजी के पास पूरी की| पंडित शारदा नंदजी एक नेक और बुद्धिमान इंसान थे| रविदासजी एक मेधावी छात्र थे, और इनकी प्रतिभा को देख कर पंडित शारदा नन्द जी बहुत प्रभावित थे| पंडितजी के पास उच्च जाति के छात्र भी पढ़ने के लिए आते थे|

उच्च जाती के छात्रों ने विरोध करना शुरू कर दिया की वो गुरु रविदास जी के साथ नहीं पढेंगे, क्योंकि वो एक निम्न जाती से ताल्लुक रखते हैं| पंडित शारदा नन्द जी धर्म संकट में फस गए| पंडितजी न तो रविदासजी को छोड़ना चाहते थे और न ही अपने समाज के लोगों को नाराज करना चाहते थे| तब पंडित शारदा नन्द जी, रविदास जी को अलग से पढ़ाने लगे|

पंडितजी का पुत्र गुरु रविदासजी का अच्छा मित्र बन गया था| जब भी समय मिलता वो एक साथ खेला करते थे| एक दिन दोनों छुपन छुपाई का खेल खेल खेल रहे थे| अगले दिन दोनों ने निर्णय लिया की कल फिर खलने के लिए इसी जगह पर मिलेंगे| लेकिन पंडित शारदा नन्द जी का पुत्र खलने के लिए नहीं आया|

गुरु रविदासजी अपने मित्र से मिलने के लिए उसके घर गए| वहां उनको पता चला, कल रात ही उसकी म्रत्यु हो गई है| पंडित शारदा नन्द जी, गुरु रविदासजी को अपने पुत्र के मृत शरीर के पास ले गए| गुरु रैदास जी पर बचपन से ही भगवान की कृपा थी, और एक अलोकिक शक्तियों के मालिक थे|

रैदास जी ने अपने मित्र को बोला, अरे उठ, छुपन छुपाई खलने का समय हो गया है| इतना सुनते ही, शारदा नन्द जी का पुत्र उठ कर बेठ गया| रैदास जी की इस शक्ति को देख कर सभी लोग अचंभित हो गए और उनके चरणों में गिर गए|

संत रविदासजी का वैवाहिक जीवन

गुरु रविदासजी बचपन से ही धार्मिक स्वभाव के थे और हमेशा भजन कीर्तन और धार्मिक कार्यों में व्यस्त रहते थे| रैदासजी के माता पिता को लगा, कहीं रैदास सांसारिक कामों को छोड़ कर संत न बन जाए|

इसलिए उन्होंने गुरूजी का विवाह लोना देवी से करवा दिया और घर से अलग कर दिया, जिससे वो खुद काम करके अपना जीवन यापन करें, और धार्मिक कायों से उनकी दूरी हो जाए| लेकिन रैदासजी ने भक्ति, संकीर्तन, साधू संतों के साथ बेठना कम नहीं किया, धीरे धीरे उनका झुकाब धर्म की तरफ बढ़ने लगा|

गुरु रैदासजी रामजी के रूप के भक्त बन गए और राम, रघुनाथ, रजा राम चन्द्र, कृष्णा, हरी, गोविन्द के नामों का उच्चारण करके भगवान् के प्रति अपनी भावना व्यक्त करने लगे।

Ravidas Jayanti in Hindi ( रविदास जयंती कब मनाई जाती है )

संत गुरु रविदास जी की जयंती ( Sant Ravidas Jayanti in Hindi ) हर वर्ष माघ पूर्णिमा ( माघ महीने में आने वाली पूर्णिमा ) के दिन हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है| रविदासिया समुदाय का ये वार्षिक उत्सव होता है|

वाराणसी में इनके जन्म स्थान “श्री गुरु रविदास जन्म स्थानम” मंदिर सीर गोवर्धनपुर वाराणसी में विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं और लाखों की तादात में, इनके अनुयायी इस जगह एकत्रित होते हैं|

सिख गुरुद्वारा नगर कीर्तन निकालते हैं| विशेष आरती की जाती है| गुरूद्वारा में गुरु रविदासजी के दोहे और भजन गाये जाते हैं| रविदास जयंती का प्राथमिक उद्देश्य यही है की गुरूजी के जाति पति से उप्पर उठकर इंसानियत को महत्व दिया जाए और समाज में भाई चारे की भावना कायम हो|

मन चंगा तो कटोती में गंगा एक घटना :-

एक बार गाँव के मित्र गंगा स्नान को जा रहे थे| रैदास जी को भी अपने साथ चलने के लिए गाँव वाले जिद करने लगे| रविदास जी ने कहा, अभी मुझे कुछ जूते तैयार करने है, तो अभी में आपके साथ नहीं जा पाऊंगा|

ये सुन कर गाँव वालों ने बोला रैदास तुम गंगा माँ का अपमान कर रहे हो, गुरु रैदासजी ने बड़े ही सहज होकर जवाब दिया, यदि में आपके साथ चला भी जाता हूँ| तब भी मेरा ध्यान मेरे जूतों में ही अटका रहेगा, में गंगाजी का ध्यान और पूजा सच्चे मन से नहीं कर पाऊँगा|

इससे ये पता चलता है, की गुरूजी कर्म प्रधान थे उनके लिए अपना काम ही पूजा थी| गुरूजी ने कहा की अगर मेरा मन सच्चा है, तो ये मेरी जूते धोने की कटोती है न, इसमें जो पानी है, वो भी मेरे लिए गंगा के पानी के बराबर है| और गुरूजी ने इस घटना के ऊपर एक दोहा लिखा जो काफी प्रचलित हुआ

मन चंगा तो कटोती में गंगा

अर्थार्थ, यदि हमारा मन सच्चा है, और शुद्ध है तो हमारे हृदय में ही इश्वर निवास करते हैं

गुरु रविदासजी और मीरा बाई की कहानी

गुरु रविदासजी को मीरा बाई का अध्यात्मिक गुरु माना जाता है| मीरा बाई का जन्म 16वी शताव्दी में राजस्थान के जिले मेर्ता के एक गाँव चौकरी में हुआ था| इनके पिता का नाम राणा रतन सिंह था| राणा रतन सिंह के पिता राव राठोर, जिन्होंने जोधपुर जिले की स्थापना की थी| मीरा बाई, संत रविदास जी के विचारों से बहुत प्रभावित थी| और उनके सम्मान में कुछ पंक्ति भी लिखी थी|

“गुरु मिल्या रविदास जी दिनी ज्ञान की गुटकी ।
चोट लगी निजनाम हरी की म्हारे हिवरे खटकी ।।

गुरु रविदासजी और माँ गंगा की कहानी :-

गुरु रविदासजी के पिता की म्रत्यु के समय, गुरूजी ने अपने पड़ोसियों से मदद मांगी| उनके पिता की इच्छा थी, की म्रत्यु के बाद उनका शरीर, गंगा में समर्पित कर दिया जाए| लेकिन बनारस के ब्राहमणों ने इसका विरोध किया| उनका कहना था, की वो गंगा की पूजा करते हैं और एक शूद्र ( नीची जाती ) का अंतिम संस्कार गंगा को प्रदूषित कर देगा|

गुरूजी ये सब सुनकर विचलित नहीं हुए, और भगवान का भजन करने लगे| अचानक से एक भयंकर तूफ़ान आता है| गंगा में ऊँची ऊँची लहरे उठने लगती है| और एक चमत्कार होता है, गंगा अपने बहाव के बिपरीत दिशा में बहने लगती है| गंगा की एक लहर रविदासजी के पिता के शव और उनके अवशेष को बहा कर ले जाति है| तभी से माना जाता है, की गंगा बनारस में उलटी दिशा में बहती है|

भक्ति आन्दोलन का इतिहास और इसके कारण

गुरु रविदास जी और पारस पत्थर

एक बार रविदास जी के पास एक साधू आये| रविदास जी ने उनकी बहुत सेवा की, सेवा से प्रसन्न होकर महात्मा ने उन्हें एक पारस का पत्थर दिया|

जैसे ही रविदास जी परस पत्थर अपने जूते बनाने के एक औजार से लगाया वह सोने का बन गया| रैदास जी ने साधू से कहा, महाराज में अब जूते कैसे बनाऊंगा इन सोने के औजारों से मुझे यह परस पत्थर नहीं चाहिए|

साधू ने कहा अरे रैदास अब तुम्हे काम करने की कोई जरुरत नहीं है बस आप इस सोने को बेचकर धन कमाओ और दान पुण्य करो और आराम का जीवन व्यतीत करो|

में आशीर्वाद स्वरुप दी हुई वास्तु को वापस नहीं लेता हूँ और साधू महाराज वहा से चले गए|

गुरु रैदास जी ने वह परस पत्थर उठाकर घर के कोने में लगे हुए के ऊँचे पत्थर पर रख दिया| कुछ महीनों के बाद पुनः साधू महाराज रैदास जी के पास आये|

लेकिन रैदास जी को अभी अभी मस्ती में जूते बनाते हुए देखकर आश्चर्य चकित हो गए| रैदास जी से पूछा, रैदास आपने पारस पत्थर का प्रयोग नहीं किया|

रैदास जी ने बड़े शांत स्वभाव से उत्तर दिया, प्रभु यदि में धनवान हो जाता और दान पुण्य करता तो प्रसिद्द हो जाता और लोगों का यहाँ तांता लगा रहता|

मेरे पास भजन करने का समय ही कहाँ रहता, में तो बस कुछ जूते बनाकर अपने जीवन यापन के लिए पैसा कम लेता हूँ|बाकि समय में केवल भजन करता हूँ|

यह जीवन है ही कितना, अब इस छोटे से जीवन में भगवन का भजन ध्यान करेने के लिए समय ही निकाल लूं वही बहुत है| ऐसे थे हमारे रैदास जी|

सही कहा है, धन संपत्ति को आप अपने साथ अंतिम समय में नहीं ले जा सकते हैं| हमारे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं, इस जीवन में हम अच्छे कर्म और भगवान् का ध्यान करलें वाही बहुत है|

गुरु रविदासजी की म्रत्यु :-

गुरु रविदासजी की म्रत्यु कब हुई, इसके बारे में सही और सटीक जानकारी नहीं है| जानकारों का मानना है, रविदासजी ने 1540 ईसवीं में बनारस में अंतिम साँसे ली थी|

Note:-

दोस्तों, आपको गुरु रविदासजी ( Guru Ravidass ji History in Hindi ) के बारे में ये हिंदी आर्टिकल कैसा लगा| अगर आपको इस आर्टिकल में कोई त्रुटी ( mistake ) नज़र आये तो आप कमेंट में या ईमेल ( viralfactsindia@gmail.com) पर अवगत करा सकते हैं|

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Anurag Pathak
Anurag Pathak

इनका नाम अनुराग पाठक है| इन्होने बीकॉम और फाइनेंस में एमबीए किया हुआ है| वर्तमान में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं| अपने मूल विषय के अलावा धर्म, राजनीती, इतिहास और अन्य विषयों में रूचि है| इसी तरह के विषयों पर लिखने के लिए viralfactsindia.com की शुरुआत की और यह प्रयास लगातार जारी है और हिंदी पाठकों के लिए सटीक और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे

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3 Comments

  1. सहजअर्थार्थ, यदि हमारा मन सच्चा है, और शुद्ध है तो हमारे हृदय में ही इश्वर निवास करते हैंअर्थार्थ, यदि हमारा मन सच्चा है, और शुद्ध है तो हमारे हृदय में ही इश्वर निवास करते हैं

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