Gangaur Festival History mahatv in Hindi | 2019 में गणगौर कब है | गणगौर त्यौहार का इतिहास महत्त्व, गणगौर क्यों मनाया जाता है
राजस्थानी साड़ी, सोलह श्रंगार, परंपरागत परिधान में लोकगीतों पर नाचती गाती युवतियां और मेले रेले की चकाचौध, यही है राजस्थान का परंपरागत प्रसिद्द गणगौर का त्यौहार|
जी हाँ दोस्तो, गणगौर के त्यौहार में शामिल होने देश विदेश से सेलानी, होली के बाद करीब मार्च अप्रैल के महीने में राजस्थान में जुड़ने लगते हैं|
इस त्यौहार के परम्परागत रीतिरिवाज, परिधान और नृत्य राजस्थान की संस्कृति को 18 दिनों में ही विश्व पटल पर एक महान संस्कृति के रूप में प्रस्तुत करते हैं|
इस त्यौहार को राजस्थान पर्यटन विभाग ने भी एक प्रमुख आकर्षण के बतौर बढ़ावा दिया है|
आइये चर्चा करते हैं
- गणगौर के त्यौहार का इतिहास क्या है
- गणगौर का त्यौहार क्यों मनाया जाता है
- गणगौर का त्यौहार कैसे मनाया जाता है
- गणगौर त्यौहार का महत्त्व
गणगौर त्यौहार का इतिहास
Gangaur Festival History in Hindi
राजस्थान में गणगौर त्यौहार कब से मनाया जा रहा है, इतिहास में ऐसी कोई निश्चित तारीख नहीं है| लेकिन गणगौर से सम्बंधित कई लोक कथाएँ प्रचलित हैं|
पहली किवदंती (लोक कथा)
एक ऐसी ही किवदंती के अनुसार बूंदी के राजकुमार इसर सिंह का रिश्ता उदयपुर के वीरमदास की रूपवान कन्या गवरी (गणगौर) के साथ हुआ था|
गणगौर रूपवती होने के कारण बाकी के रियासतों की नज़र उन पर थी और इस रिश्ते से इन्हें ईर्ष्या होने लगी और गणगौर को पाने के लिए यह सभी लोग षड्यंत्र करने लगे|
जब यह खबर ‘इसर’ सिंह को लगी तो इन्होने आव देखा न ताव रातों रात उदयपुर आये और गवरी (गणगौर) को घोड़े पर बिठाकर बूंदी ले जाने लगे|
कहानी किस्सों के अनुसार उस रात अचानक तूफान और बारिश होने लगी और चम्बल नदी में पानी बढ़ गया| बताते हैं उस समय चम्बल पूरे उफान पर थी|
इसर ने कोई परवाह किये बिना घोडा चम्बल नदी में उतार दिया| लेकिन नदी के वेग के सामने घोडा टिक नहीं पाया और बह गया| इसर और गणगौर दोनों नदी में डूब गए|
राजस्थान में इस घटना को प्रमाणित करने के लिए कुछ लोकगीत प्रचलित हैं|
“उदियापुर से आई गणगौर, आय उतरी बीरमजी री पोल…….”
“म्हारे सोलह दिन रा आलम रे, ईसर ले चाल्यो गणगौर, म्हें तो पूजण खाती रेईसर ले चाल्यो गणगौर….”
माना जाता है इन्ही दोनों के अमर प्यार और समर्पण को याद करने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है| आपने देखा होगा गणगौर के त्यौहार में काठ की दो मुर्तिया होती है यह इसर और गवरी ही हैं|
एक और राजस्थान के इतिहास में रिवाज शुरू हुआ गणगौर को अपहरण करने का| क्योंकि अन्य राजा भी गणगौर (गवरी) को पाना चाहते थे|
इसलिए एक रिवाज राजस्थान में राजाओं के बीच प्रचलित हुआ जिसमें एक राजा दुसरे राज्य में काठ की गणगौर को बल पूर्वक अपहरण करके लाते थे|
जाने गणगौर जे जुडी हुई अपहरण के किस्से कहानियों के बारे में
दूसरी मान्यता
समय के साथ इस घटना को एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा और इसर और गवरी को भगवान् शिव और पार्वती से जोड़ दिया गया|
यहाँ अब इसर को भगवान् शिव के रूप में और गबरी को माँ पार्वती के रूप में पूजा जाता है|
गणगौर की काठ की मूर्तियाँ भगवान् शिव और पार्वती का प्रतीक हैं| ‘गन’ का मतलब ‘शिव’ और ‘गौर’ का मतलब है ‘पार्वती’|
विवाहित स्त्रियाँ शिव पार्वती की पूजा करके एक सुखी विवाहित जीवन का वर मांगती हैं और अविवाहित स्त्रियाँ एक सुन्दर और योग्य पति की कामना से इस त्यौहार को मनाती हैं|
ऐसी कई किवदंती और किस्से कहानियां राजस्थान के इतिहास में प्रचलित हैं| और इन्ही घटनाओं पर आधारित लोग गीत भी हैं जिन्हें गणगौर के त्यौहार पर गाया जाता है|
आगे हम चर्चा करेंगे की कितने तरह की काठ की मूर्तियाँ बनाई जाती है और इनके नाम क्या क्या है बस आप आखिरी तक हमारे साथ बने रहिये और भी रोचक तथ्य आप जान पायेंगे|
गणगौर का त्यौहार 2019 में कब है और शुभ मुहूर्त
2019 में गणगौर 8 अप्रैल को मनाया जाएगा| यह त्यौहार होली के एक दिन के बाद शुरू होता है| रंगीली होली 21 को है तो गणगौर त्यौहार 22 मार्च से शुरू हो जाएगा
गणगौर प्रारंभ – 22 मार्च – चेत्र मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
गणगौर पूजा – 8 अप्रैल (चेत्र मास शुक्ल पक्ष तृतीया)
गौरी पूजा समय
तृतीया तिथि प्रारंभ – 4:01 PM – 7 अप्रैल 2019
तृतीया तिथि समाप्त = 4:15 PM – 8 अप्रैल 2019
गणगौर का त्यौहार क्यों मनाया जाता है
Why Gangaur Festival is Celebrated in Hindi
गणगौर (Gangaur) का त्यौहार मुख्यतः राजस्थान के मारवाड़ी लोगों का त्यौहार है| जहाँ जहाँ मारवाड़ी लोग हैं वहां यह त्यौहार मनाया जाता है|
लेकिन राजस्थान में हर कोई इस त्यौहार को मनाता है| मध्यप्रदेश और कलकत्ता में भी जहाँ जहाँ मारवाड़ी हैं वहां इस त्यौहार को मनाया जाता है|
गणगौर मुख्यतः महिलाओं का त्यौहार है, विवाहित और अविवाहित दोनों तरह की महिलायें इस त्यौहार को मनाती हैं| अविवाहित महिलायें एक श्रेष्ठ पति की कामना के लिए इस त्यौहार को मनाती हैं|
विवाहित महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र और सम्रद्धि की इच्छा से पूरे रीती रिवाज के साथ मनाती हैं|
गणगौर का प्रसाद नहीं दिया जाता पुरुषों को, जाने कारण
गणगौर का त्यौहार कैसे मनाया जाता है
How Gangaur Festival is Celebrated in Hindi
गणगौर का त्यौहार पूरे 18 दिन तक चलता है| होली (धुलंडी) के एक दिन के बाद यानि चेत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा (चेत्र महीने का पहला दिन) से यह त्यौहार प्रारंभ हो जाता है और चेत्र माह शुक्ल पक्ष की तृतीया को समाप्त होता है|
विवाहित युवतियां अपनी पहली गणगौर अपने मायके में ही मनाती हैं| इस त्यौहार को विवाहित और अविवाहित दोनों तरह की महिलाएं पूरी श्रद्धा के साथ मनाती हैं|
इन 18 दिनों में भगवान् शिव पार्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है|
इस त्यौहार को मनाने का एक धार्मिक पहलू है और एक ऐतिहासिक| दोनों मान्यताओं का यह त्यौहार एक सुन्दर और मार्मिक मिश्रण है|
ऐतिहासिक परम्परा
जैसा की हमने पहले बताया ऐतिहासिक रूप से गणगौर में पूजी जाने वाली मूर्तियाँ क्रमशः इसरजी, गवरी (गणगौर), की हैं इसके अलावा 3 और मूर्तियाँ होती हैं जिनके नाम हैं कानू (कानीरामजी), रोवा बाई और मालन |ये तीनों इसरजी के भाई बहन माने जाते हैं|
यह इसरजी का परिवार माना जाता है| यह मूर्तियाँ मिट्टी और काठ की बनाई जाती हैं| इन पाँचों मूर्तियों को विधि विधान से कुम्हार या खाती के यहाँ से लाया जाता है|
एक लकड़ी से बनी डलियाँ में इन पाँचों मूर्तियों को फूल और घास के साथ रखकर विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती हैं|
स्त्रियाँ इसरजी और गवरी को प्रतीकात्मक रूप से जीजा और जीजी मानकर और आपने आपको इनकी साली मानकर अपने पति की दीर्घायु और सम्पन्नता की कामना करती हैं और अविवाहित स्त्रियाँ एक योग्य पति की|
धार्मिक पहलू
धार्मिक पहलू से यह मूर्तियाँ भगवान् शिव पार्वती और इनके परिवार की की मानी जाती है| और 16 दिन तक महिलाएं इन्ही की विधि विधान से पूजा अर्चना करती हैं|
इन दिनों में भगवान् शिव, पार्वती और भगवान् गणेश की कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं| इसके अलावा लोक गीत भी गाये जाते हैं जो इसरजी और गबरी की प्रेम कथा पर आधारित होते हैं|
इसके अलावा इतिहास में राजपूतों के अलग अलग रजवाड़ों के द्वारा गणगौर को अपहरण करने की घटनाओं और गणगौर से जुडी अन्य घटनाओं पर वीर रस से भरे हुए लोक गीत भी गाये जाते हैं|
गणगौर त्यौहार की पूजा की तैयारी
Preparation of Gangour Festival Pooja In Hindi
युवतियां होली की राख को घर ले के आती हैं| इस होली की राख में मिटटी मिलाकर सोलह पिंडियाँ बनाई जाती है| कुम्हार से इसरजी का परिवार विधि विधान से घर लाया जाता है|
एक चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर एक बांस की टोकरी में इसरजी के परिवार को घास और फूलों के साथ बिठाया जाता है|
दीवार पर एक सफ़ेद कागज़ लगा कर 16 बिंदियाँ मेहंदी से, 16 काजल से और 16 सिन्दूर से लगाईं जाती हैं| गणगौर माता का सोलह श्रृंगार किया जाता है|
16 दिन तक, भगवान् शिव और पार्वती की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है और शिव पार्वती और गणेश की कथा सुनाई जाती है|
इसके अलावा लोक कथाओं पर आधारित राजस्थानी लोक गीत भी सुने सुनाये जाते हैं|
गणगौर (Gangaur) के अंतिम दिन चेत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को गाजे वाजे के साथ पूरे शहर में गणगौर की सवारी निकाली जाती हैं और किसी पोखर और नदी में गणगौर को प्रवाहित करके विदा कर दिया जाता है|
यहाँ जाने गणगौर त्यौहार पूजा विधि
यहाँ जाने गणगौर की सम्पूर्ण व्रत कथा
गणगौर के गीत
गणगौर त्यौहार पर लगने वाले प्रमुख मेले
जयपुर के मेला
जयपुर का गणगौर का मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्द है, गणगौर के दिन राजस्थानी परिधानों में गाजे बाजे के साथ गणगौर की सवारी निकाली जाती है|
यह जयपुर के राज महल से शुरू होकर त्रिपोलिया बाज़ार, छोटी चौपर, गणगौरी बाज़ार, चौगन स्टेडियम और तक्कातोरा से होते हुए निकलती है|
इस झांकी में ऊंट घोड़े हाथी, बेल गाड़ी के साथ राजस्थानी परिधानों में नृतक नाचते हुए निकलते हैं|
जोधपुर का मेला
इस शहर में अनोखा लोटिया का मेला सजता है| इसमें ओरतें राजस्थानी तरीके से लोटों को सजा कर सर पर रखकर हज़ारों की तादात में घर से निकलती हैं|
एक निश्चित स्थान पर जाकर कलशों और लोटों को रखकर उनके चारों तरफ लोक गीतों को गाकर नाचती गाती हैं| जोधपुर का यह मेला सेलानियों के बीच एक आकर्षण का केंद्र हैं|
उदयपुर का मेला
इस शहर की पिछोला झील में राजस्थानी तरीके से सजी नौकाओं के जुलुस निकलता है| यहाँ की गणगौर नाव प्रसिद्द है|
स्त्रियाँ राजस्थानी पोशाकों में जुलुस की शक्ल में एक साथ घर से निकलती हैं और झील के पास आकर पूजा अर्चना करती हैं| यह उत्सव तीन दिन तक चलता है|
गणगौर त्यौहार का महत्त्व
Importance of Gangaur in Hindi
गणगौर (Gangaur) त्यौहार राजस्थान के गोरवशाली इतिहास को याद करने का दिन है|
यह त्यौहार राजस्थान के समाज में एक धार्मिक सोहार्द और अपनत्व की भावना लाता है| जिसमें सभी वर्ग के लोग एक साथ आकर खुशियाँ मनाते हैं|
यह विवाहित स्त्रियों के लिए एक महत्वपूर्व पर्व है जिसमें 18 दिन तक केवल अपने पति के लिए दीर्घायु और स्म्रधि की कामना की जाती है|
अविवाहित स्त्रियों के लिए एक सुयोग्य पति पाने के लिए भगवान् से प्रार्थना करने का शुभ पर्व है|
अंततः भारत के हर एक हिन्दू त्यौहार समाज को एक जुट करने के लिए मनाया जाता है| हिन्दू धर्म में पुरे मानव जीवन को एक उत्सव माना गया है|
जीवन की नीरसता और उदासीनता से ऊपर उठने के लिए हर एक दिन को एक त्यौहार की तरह जीने के विधान बनाए गए हैं और इसे धर्म से जोड़कर सभी के लिए अनिवार्य कर दिया गया है|
साधुवाद:-
आशा करते हैं हमारे द्वारा दी गई गणगौर त्यौहार का इतिहास और महत्त्व (Gangaur Festival History in Hindi) की जानकारी से आपका ज्ञानवर्धन जरूर हुआ होगा| आगे ऐसे ही रोचक तथ्यों को जानने के लिए आप हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब कर लें|
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