Chanankya Niti Second Chapter Hindi English | चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय अर्थ सहित

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Chanakya Niti Second Chapter 2 shlokas with meaning in Hindi English | चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय श्लोक हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित

दोस्तो आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के महान कूटनीतिज्ञ रहे हैं, इसलिए इन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है| चाणक्य ने अपने जीवन राजनीतिज्ञ और सामाजिक जीवन के अनुभव के आधार पर बातें कहीं जो मानव के जीवन पर बहुत सटीक बैठती हैं|

विभिन्न धर्म ग्रंथों के पढ़ कर कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों का इन्होने संकलन किया जिसे चाणक्य निति के नाम जाना जाता है| आज हम चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के संस्कृत श्लोक और उनके अनुवाद हिंदी और इंग्लिश (Chanakya Niti Second Chapter Shlokas with meaning in Hindi English) दोनों में पढेंगे

आइये चर्चा करते हैं

Chanakya Niti Second Chapter with meaning in Hindi and English

चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय हिंदी और इंग्लिश अर्थ सहित

Sanskrit Shlok – 1

अमृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलोभिता।
अशौचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः।।1।।

दोहा – 1

अमृत साहस मूढता, कपट कृतघन आड़।
नियतारु मलीनता, तियने सहज रजाइ ।।1।।।

हिंदी अर्थ:- चाणक्य स्त्री के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं, झूठ बोलना, छल कपट, मुर्खता, अत्यंत लोभ,
अपवित्रता और निर्दयता ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं|

हालाँकि अपवाद (Exception) हमेशा से रहे हैं| आपने अपने चारों तरफ देखा होगा शादी के बाद जब
पत्नी घर पर आती है, या तो घर में कलेश शुरू हो जाते हैं लेकिन यदि नारी में ममता, दया क्षमा आदि जैसे भाव हों तो घर स्वर्ग बन जाता है|
चाणक्य ने बताया है की ज्यादातर स्त्रियों में ऊपर बताये गए दोष पाए जाते हैं

English Meaning:- Untruthfulness, duplicity, stupidity, greedines, uncleanliness and cruelty are a woman’s seven natural flaws.

Sanskrit Shlokas 2

भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर वरांगना।
विभवो दानशक्तिश्च नाऽल्पस्य तपसः फलम्।।2।।

दोहा – 2

सुन्दर भोजन शक्ति रति, शक्ति सदा वर नारि।।
विभव दान की शक्ति यह, बड तपफल सुखकारि।।२।।

हिन्दी अर्थ:- यहां आचार्य चाणक्य का कथन है कि भोज्य पदार्थ, भोजन शक्ति, रतिशक्ति, सुन्दर स्त्री, वैभव तथा दान शक्ति, ये सब सुख किसी अल्प तपस्या का फल नहीं होते।

अर्थात् सुन्दर खाने-पीने की वस्तुएं मिलें और जीवन के अंत तक खाने-पचाने की शक्ति बनी रहे। स्त्री से संभोग की इच्छा बनी रहे तथा सुंदर स्त्री मिले, धन-सम्पत्ति हो और दान देने की आदत भी हो।

ये सारे सुख किसी भाग्यशाली को ही मिलते हैं, पूर्वजन्म में अखंड तपस्या से ही ऐसा सौभाग्य मिलता है।

दोस्तो, यह समाज में सहज देखने को मिलता है, जो धन से समर्थ है, लेकिन रोगों से ग्रसित हैं, दान देना नहीं चाहता,
और जीवन के दुसरे आनंद नहीं उठा पाता है और जो शरीर से सबल है उसके पास धन नहीं हैं|

लेकिन जिसके पास धन, स्वास्थय, सबल शरीर और दान देने की इच्छा है, वह भाग्यशाली है और यह उसके पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों का फल है

Enlgish Meaning:- Chanakya Says, Good Health, Capacity of Eating and Digest, Beautiful wife, capacity of donation, these all comes with great effort and bliss. These all are not easy to have for all.

Sankrit Shlokas – 3

यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी।
विभवे यस्य सन्तुष्टिस्तस्य स्वर्ग इहैव हि।।3।।

दोहा – 3

रात आज्ञाकारी जिनाहिं, अनुशामिनि तिय जान ।।
विभव अलप सन्तोष तेहि, सुरपुर इहाँ पिछान ।।३।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य का कथन है कि जिसका पुत्र वशीभूत हो, पत्नी वेदों के मार्ग पर चलने वाली हो और जो अपने वैभव से संतुष्ट हो, उसके लिए यहीं स्वर्ग है। |

अभिप्राय यह है कि जिस मनुष्य का पुत्र आज्ञाकारी होता है, सब प्रकार से कहने में होता है, पत्नी धार्मिक और उत्तम चाल-चलन वाली होती है, सद्वृहिणी होती है तथा जो अपने पास जितनी भी धन-सम्पत्ति है, उसी में खुश रहता है, संतुष्ट रहता है|

ऐसे व्यक्ति को इसी संसार में स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है। उसके लिए पृथ्वी में ही स्वर्ग हो जाता है।

English Meaning:- He, whose son is obedient to him, whose wife’s is religious and conduct is in accordance with his wishes, and who is satisfied with his Wealth, is living in heaven itself here on earth.

Sanskrit Shlokas – 4

ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः सः पिता यस्तु पोषकः।
तन्मित्रम् यत्र विश्वासः सा भार्या या निवृति।।4।।

दोहा- 4

ते रात जे पितु भक्तिरत. हितकारक पित होय ।।
जेहि विश्वास सो मित्रवर, सुखकारक तिय होय ।।4।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य का कथन है कि पुत्र वही है, जो पिता का भक्त है। पिता वही है, जो पोषक है, मित्र वही है, जो विश्वासपात्र हो। पत्नी वही है, जो हृदय को आनन्दित करे।

अर्थात् पिता की आज्ञा को मानने वाला और सेवा करने वाला ही पुत्र कहा जाता है। अपने बच्चों का सही पालन-पोषण, देख रेख करने वाला और उन्हें उचित शिक्षा देकर योग्य बनाने वाला व्यक्ति ही सच्चे अर्थ में पिता है।

जिस पर विश्वास हो, जो विश्वासघात न करे, वही सच्चा मित्र होता है। पति को कभी दुःखी न करने वाली तथा सदा उसके सुख का ध्यान रखने वाली ही पत्नी कही जाती है।

English Meaning:- The son is who is devoted to his father. The father is who supports his sons. The friend is whom we can trust, and the wife is whose always keep her husband feels happy, contented and peaceful.

Sanskrit Shlokas – 5

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्ष प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्।।5।।

दोहा – 5

ओट कार्य की हानि करि, सम्मुख करें बखान ।।
अस मित्रन कहें दूर तज, वि ष घट पयसुख जान ।।5।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते है कि पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाले तथा सामने प्रिय बोलने वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए।

अभिप्राय यह है कि एक विष भरे घड़े के ऊपर यदि थोड़ा-सा दूध डाल दिया जाए तो फिर भी वह विष का ही घड़ा कहा जाता है। इसी प्रकार मुंह के सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करनेवाला और पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाला मित्र भी इस विष भरे घड़े के समान होता है।

English Meaning:- Avoid a Friend who act sweetly and as your welfare infront you but tries to ruin you behind your back, for he is like a pot of poison with milk on top.

Sanskrit Shlokas – 6

न विश्वसेत्कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।
कदाचित्कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत्।।6।।

दोहा – 6

नहिं विश्वास कुमित्र कर, किजीय मित्तहु कौन ।।
कहहि मित्त कहुँ कोपकर, शोपहु सब दुख मौन ।।6।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य का कथन है कि कुमित्र पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और पूरी तरह मित्र पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। कभी कुपित होने पर मित्र भी आपकी गुप्त बातें सबको बता सकता है।

अभिप्राय यह है कि दुष्ट-चुगलखोर मित्र का भूलकर विश्वास नहीं करना चाहिए। साथ ही कितना ही लंगोटिया यार क्यों न हो, उसे भी अपनी राज की बातें नहीं बतानी चाहिए। हो सकता है वह आपसे नाराज हो जाए और आपका कच्चा चिट्ठा सबके सामने खोल दे।

English Meaning:- Do not trust a bad friend nor even trust your best friend, because anytime if he get angry with you, he may disclose all your secrets in public.

Sanskrit Shlokas – 7

मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत्।
मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्यं चाऽपि नियोजयेत्।।7।।

दोहा – 7

मनते चिंतित काज जो, बैनन ते कहियेन ।
मन्त्र शूढ राखिय कहिय, दोष काज सुखदैन ।।७।।

हिन्दी अर्थ:- आचार्य चाणक्य का कथन है कि मन में सोचे हुए कार्य को सभी लोगों से नहीं कहना चाहिए। मंत्र के समान गुप्त रखकर उसकी रक्षा करनी चाहिए। गुप्त रखकर ही उस कार्य को करना भी चाहिए।

अभिप्राय यह है कि मन में जो भी काम करने का विचार हो, उसे मन में ही रखना चाहिए; उकसा ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए की में यह कर रहा हूँ।

मन्त्र के समान गोपनीय रखकर चुपचाप काम शुरू कर देना चाहिए। जब काम चल रहा हो, उस समय भी उसके बारे में किसी से न कहें। बता देने पर यदि काम पूरा न हुआ तो हंसी होती है। कोई शत्रु काम बिगाड़ सकता है।

काम पूरा होने पर फिर सबको मालूम हो ही जाता है, क्योंकि मनोविज्ञान का नियम है कि आप जिस कार्य के लिए अधिक चिन्तन-मनन करेंगे और चुपचाप उसे कार्य रूप में परिणत करेंगे उसमें सिद्धि प्राप्त करने के अवसर निश्चित मिलेंगे|

English Meaning:- Do not reveal what you have thought upon doing, but by keep it secret, being determined to carry it into execution.

Sanskrit Shlokas – 8

कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम्।
कष्टात्कष्टतरं चैव परगेहनिवासनम्।।8।।

दोहा – 8

मरखता अरु तरुयाता. हैं ढोऊ ढखढाय ।।
पर घर बसितो क ट अति, नीति कहत अस गाय ।।८।।

हिन्दी अर्थ:- आचार्य का कहना है कि मूर्खता कष्ट है, यौवन भी कष्ट है, किन्तु दूसरों के घर में रहना कष्टों का भी कष्ट है।
वस्तुतः मूर्खता अपने-आप में एक कष्ट है और जवानी भी व्यक्ति को दुःखी करती है।

इच्छाएं पूरी न होने पर भी दुःख तथा कोई भला बुरा काम हो जाए, तो भी दुःख। इन दुःखों से भी बड़ा दुःख है-पराए घर में रहने का दुःख।

पर घर में न तो व्यक्ति स्वाभिमान के साथ रह सकता है और न अपनी इच्छा से कोई काम ही कर सकता है।

आचार्य चाणक्य कहते हैं, मुर्खता तो कष्ट है ही, यौवन ( सुन्दरता) भी दुःख ही है, सुन्दर स्त्री और पुरुष दोनों के जीवन में इनकी सुन्दरता की वजह से इन पर मुसीबतें आती रहती हैं|

लेकिन इन दोनों से भी बड़ा दुःख है किसी और के घर में रहना जहाँ आप अपने मन का कुछ नहीं कर सकते और अपमान का सामना भी करना पड़ता है

English Meaning:- Foolishness is indeed painful, andso is (Beauty) but more painful is to stay in another house.

Sanskrit Shlokas – 9

शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने।।9।।

दोहा – 9

प्रतिशिरि नहिं मानिक निय, मौक्ति न प्रतिज माहिं।
सब ठोर नहिं साधु जन, बन बन चन्दन नाहिं ।।९।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य ने कहा है कि न प्रत्येक पर्वत पर मणि-माणिक्य ही प्राप्त होते हैं, न प्रत्येक हाथी के मस्तक से मुक्ता-मणि प्राप्त होती है। इसी प्रकार सभी वनों में चंदन के वृक्ष उपलब्ध नहीं होते।

चाणक्य कहते हैं इस दुनिया में हर जगह अच्छे बुरे लोग हैं, सभी जगह साधू नहीं मिलेगा और न ही सभी जगह बुरे लोग, यह संसार है अपने विवेक के आधार पर ही सबसे आचरण करें|

English Meaning:- There does not exist a pearl in every mountain, nor a pearl in the head of every elephant; neither are the sadhus to be found everywhere, nor sandal trees in every forest.

Sanskrit Shlokas – 10

पुनश्च विविधैः शीलैर्नियोज्या सततं बुधैः।
नीतिज्ञा शीलसम्पन्नाः भवन्ति कुलपूजिताः।।10।।

Doha – 10

चतुरता सुतकू सुपितु, सिखवत बारहिं बार |
नीतिवंत बुधवंत को, पूजत सब संसार ।।10।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य यहां पुत्र के सम्बन्ध में उपदेश करते हुए कहते हैं कि बुद्धिमान लोगों का कर्तव्य है कि पुत्र को सदा अनेक प्रकार से सदाचार की शिक्षा दें।

नीतिज्ञ सदाचारी पुत्र ही कुल में पूजे जाते हैं। अर्थात् पिता का सबसे बड़ा कर्तव्य है कि पुत्र को अच्छी शिक्षा दे।

शिक्षा केवल विद्यालय में ही नहीं होती। अच्छे आचरण की, व्यवहार की शिक्षा देना पिता का पावन कर्तव्य है। अच्छे आचरण वाले पुत्र ही अपने कुल का नाम ऊंचा करते हैं। नीतिज्ञ और शीलसम्पन्न पुत्र ही कुल में सम्मान पाते हैं।

English Meaning:- Wise men should always bring up their sons in various moral
ways, for children who have knowledge of niti-sastra and are well behaved become a
glory to their family.

Chanakya Niti Second Chapter shlokas with Meaning in Hindi English 11-20

Sanskrit Shlokas – 11

माता शत्रुः पिता वैरी येनवालो न पाठितः।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये वको यथा।।11।।

दोहा – 11

तात मात अरि तुल्यते, सुत न पढावत नीच ।।
सभा मध्य शोभत न सो, जिमि बक हंसन बीच ।।11।।

हिंदी अर्थ:- यहां आचार्य चाणक्य की शिक्षा के बारे में माता-पिता के कर्तव्य का उपदेश करते हुए कहते हैं कि बच्चे को न पढ़ाने वाली माता शत्रु तथा पिता वैरी के समान होते हैं।

बिना पढ़ा व्यक्ति पढ़े लोगों के बीच में हंसों में कौए के समान शोभा नहीं पाता।

कहने का अभिप्राय है, की जो हालत हंसों के झुण्ड में कोए की हो जाती है वही हालत एक अनपढ़ व्यक्ति की पढ़े लिखे लोगों के बीच हो जाती है, उसे सम्मान की जगह तिरस्कार का सामना करना पड़ता है|

English Meaning:- Those parents who do not educate their sons are their enemies; illiterate does not get respect in group of wise people as crow among swan.

Sanskrit Shlokas – 12

लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः।
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत्।।2।।

दोहा – 12

सुत लालन में दोष बहु, गुण ताडन ही माहिं ।।
तेहि ते सुतअरु शिष्य, ताडिय लालिय नाहिं ।।१२।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य बालक के लालन-पालन में, लाड़-प्यार के संदर्भ में उसके अनुपात और सार के बारे में उपदेश करते हुए कहते हैं कि अधिक लाड़ से अनेक दोष तथा ताड़न (डाटने) से गुण आते हैं।

इसलिए पुत्र को और शिष्य को लालन की नहीं ताड़न की आवश्यकता होती है।

अभिप्राय यह है कि अधिक लाड़-प्यार करने से बच्चे बिगड़ जाते हैं। उसके साथ सख्ती करने से ही वे सुधरते हैं। इसलिए बच्चों और शिष्य को अधिक लाड़-प्यार नहीं देना चाहिए। उनके साथ सख्ती ही करनी चाहिए।

English Meaning:- Do Not love and protect your child always in all cases. you also scold, snub and beat your child if he/she does wrond and do not obey you. it will mend their
ways. rightly said – “Spare the rod and spoil the child”.

Sanskrit Shlokas – 13

श्लोकेन वा तदर्खेन तदर्खाऽद्धक्षरेण वा।
अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययनकर्मभि।।13।।

दोहा – 13

सीखत श्लोखहु अरथ के, पावहु अक्षर कोय ।
वृथा गमावत दिवस ना, शुभ चाहत निज सोय ।।१३।।

हिन्दी अर्थ:- यहां आचार्य स्वाध्याय की महत्ता प्रतिपादित करते हुए कह रहे हैं कि व्यक्ति को चाहिए कि वह किसी एक श्लोक का या आधे या उसके भी आधे अथवा एक अक्षर का ही सही मनन करे। मनन, अध्ययन, दान आदि कार्य करते हुए दिन को सार्थक करना चाहिए।

अभिप्राय यह है कि कम से कम जितना भी हो सके, मनुष्य को अपने कल्याण के लिए मनन अवश्य करना चाहिए। मनन करना, अध्ययन करना तथा लोगों की सहायता करना-ये मनुष्य जीवन के अनिवार्य कर्तव्य हैं।

ऐसा करने पर ही जीवन सार्थक होता है। क्योंकि मानव जीवन अमूल्य है। उसका एक-एक दिन, एक-एक क्षण अमूल्य है, उसे सफल बनाने के लिए स्वाध्याय, चिंतन-मनन एवं दान आदि सत्कर्म करते रहना चाहिए।

यह जीवन का नियम ही बना लिया जाए तो सर्वोत्तम है। आसक्ति विष है।

Enlgish Meaning:- Let not a single day pass without your learning a verse, half a verse, or a fourth of it, or even one letter of it; nor without attending to charity, study and other pious activity.

Sanskrit Shlokas – 14

कान्तावियोग स्वजनापमानो ऋणस्य शेषः कुनृपस्य सेवा।
दरिद्रभावो विषया सभा च विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्।।14।।

दोहा – 14

युध्द शेष प्यारी विरह, दरिद बन्धु अपमान ।
दुष्ट राज खलकी सभा, दाहत बिनहिं कृशान ।।१४।।

हिंदी अर्थ:- यहां आचार्य जीवन अनेक स्थितियों पर विचार करते हुए व्यक्ति को उपदेश करते हुए कहते हैं कि प्रेमिका व पत्नी से वियोग, स्वजनों (रिश्तेदारों) से अपमान होना, ऋण का न चुका पाना, दुष्ट राजा की सेवा, दरिद्रता और धूर्त लोगों की सभा, ये बातें बिना अग्नि के ही शरीर को जला देते हैं।

अभिप्राय यह है कि एक आग सबको दिखाई देती है, यह बाहरी अग्नि है, किन्तु एक आग अन्दर ही अन्दर से व्यक्ति को जलाती रहती है, उसे कोई देख भी नहीं सकता।

पत्नी से अत्यधिक प्रेम हो, किन्तु उससे बिछुड़ना पड़ जाए। परिवार वालों की कहीं पर बेइज्जती हो जाए, कर्ज को चुकाना मुश्किल हो जाए|

दुष्ट राजा की नौकरी करनी पड़े, गरीबी छूटे नहीं, दुष्ट लोग मिलकर कोई सभा कर रहे हों! ऐसी मजबूरी में बेचारा आदमी अन्दर ही अन्दर जलता रहता है।

उसकी तड़पन को कोई देख भी नहीं सकता। यह ऐसी ही न दीखने वाली आग है।

English Meaning:- Separation from the wife, disgrace from one’s own people, an enemy saved in battle, service to a wicked king, poverty, and a mismanaged assembly these six kinds of evils, if afflicting a person, burn him even without fire.

Sanskrit Shlokas – 15

नदीतीरे च ये वृक्षाः परगेहेषु कामिनी।
मन्त्रिहीनाश्च राजनः शीघ्रं नश्यन्त्यसंशयम्।।15।

दोहा – 15

तरुवर सरिता तीपर निपट निरंकुश नारि।
नरपति हीन सलाह नित, बिनसत लगे न बारि।।१७।।

हिंदी अर्थ:- चाणक्य कहते हैं, तेज बहाव वाली नहीं के किनारे लगे वृक्ष, दुसरे के घर गई स्त्री, मंत्रियों के बिना राजा, ये सभी सीघ्र नष्ट हो जाते हैं|

अर्थार्थ नहीं की निरंतर धरा से किनारे का जमीं खोखली हो जाती है और किनारे लगे पेड़ गिर जाते हैं| उसी प्रकार दुसरे के घर रह गई स्त्री कभी सावित्री नहीं रहती, और बिना बुद्धिमान मंत्री के राजा का राज पाठ एक दिन चला ही जाता है|

English Meaning:- Trees on a riverbank, a woman in another man’s house, and kings without wise Ministers soona or later comes to destruction.

Sanskrit Shlokas – 16

बलं विद्या च विप्राणां राज्ञः सैन्यं बलं तथा।
बलं वित्तं च वैश्यानां शूद्राणां च कनिष्ठता।।16।।

दोहा – 16

विद्या बल है विप्रको, राजा को बल तैन ।
धन वैश्यन बल शुद्रको, सेवाही बलदैन ।।१६।।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य का यहां कथन है कि विद्या ही ब्राह्मणों का बल है। राजा का बल सेना है। वैश्यों का बल धन है तथा सेवा करना शूद्रों का बल है।

अभिप्राय यह है कि ज्ञान-विद्या अध्ययन ही ब्राह्मण का बल माना गया है। अध्ययन-स्वाध्याय और दूसरों को शिक्षित करना ही उसका मुख्य कर्म क्षेत्र है
उसी में उसे निपुण होना चाहिए तभी वह आदरणीय होगा।

राजाओं का बल उनकी सेना होती है। क्योंकि सैन्य शक्ति के बल पर ही वह अपने राज्य की सीमाएं सुरक्षित रख सकता है। इसी प्रकार धन वैश्यों का
बल तथा सेवा करना शूद्रों का बल है। यही उनके कार्यक्षेत्र की विशेषता है।

English Meaning:- A brahmin’s strength is in his learning, a king’s strength is in his army, a vaishya’s strength is in his wealth and a shudra’s strength is in his attitude of service.

Sanskrit Shlokas – 17

निर्धनं पुरुषं वेश्यां प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत्।
खगाः वीतफलं वृक्षं भुक्त्वा चाभ्यागतो गृहम्।।17।।

दोहा – 17

वेश्या निर्धन पुरुष को, प्रजा पराजित राय ।।
तजहिं पखेरूनिफल तरु, खाय अतिथि चल जाय ।।17।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यह प्रकृति का नियम है कि पुरुष के निर्धन हो जाने पर वेश्या उस पुरुष को त्याग देती है।

प्रजा शक्तिहीन राजा को और पक्षी फलहीन वृक्ष को त्याग देते हैं। इसी प्रकार भोजन कर लेने पर अतिथि घर को छोड़ देता है।

अर्थार्थ संसार में लोग तब तक ही आपके साथ रहते हैं जब तक आप उनके काम के हो| काम निकलते ही उस व्यक्ति का महत्व कम हो जाता है|

English Meaning:- The prostitute doses not entertain a man who has no money, the people leave a weak king that cannot defend him, the birds leave a tree that bears no fruit, and the guests after finishing his mean leave the house. Meaning A thing is useless if its characteristics gone.

Sanskrit Shlokas – 18

गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति यजमानकम्।
प्राप्तविद्या गुरु शिष्याः दग्धारण्यं मृगास्तथा।।18।।

दोहा – 18

लेड दक्षिणां यजमान सो, तजि दे ब्राह्मण वर्ग ।
पढि शि ब्यन शुरु को तजहिं, हरिन दध बन पर्व ।।१८।।

हिंदी अर्थ:- यहां आचार्य चाणक्य इस संसार की रीति पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि दक्षिणा मिलने के बाद ब्राह्मण यजमान को छोड़ देते हैं, विद्या प्राप्त कर लेने के बाद शिष्य गुरु को छोड़ देते हैं और वन में आग लग जाने पर वन के पशु उस वन को त्याग देते हैं।

अभिप्राय यह है कि ब्राह्मण दक्षिणा लेने तक ही यजमान के पास रहता है। दक्षिणा मिल जाने पर वह यजमान को छोड़ देता है और अन्यत्र की सोचने लगता है।

शिष्य अध्ययन करने तक ही गुरु के पास रहते हैं। विद्याएं प्राप्त कर लेने पर वे गुरु को छोड़कर चले जाते हैं और जीवन कार्य के प्रति विचार करते हुए अगली योजना में लग जाते हैं। इसी प्रकार हिरण आदि वन के पशु वन में तभी तक रहते हैं, जब तक वह हरा-भरा रहता है।

यदि वन में आग लग जाए, तो पक्षी वहां रहने की संभावनाएं समाप्त जानकर अन्यत्र डेरा जमाने के विचार से उड़ जाते हैं या दौड़ लगा जाते हैं।

अर्थात् व्यक्ति किसी आश्रय या उपलब्धि स्रोत पर तभी तक निर्भर करता है जब तक उसे वहां अपना लक्ष्य पूर्ण होता दिखलाई पड़ता है। लक्ष्य पूर्ण होने पर उपयोगिता-ह्रास का नियम लागू हो जाता है।

English Meaning:- Brahmins quit their patrons after receiving alms from them, students leave their teachers after receiving education from them, and animals leave a forest that has been burnt down.

Sanskrit Shlokas – 19

दुराचारी च दुर्दृष्टिद्राऽऽवासी च दुर्जनः।
यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीघ्र विनश्यति।।19।।

दोहा – 19

पाप दृषि ट दुर्जन दुराचारी दुर्बल जोय ।।
जेहि नर सों मैत्री करत, अवशि न ६ ट सो होय ।।१९।।

हिंदी अर्थ:- यहां आचार्य चाणक्य सचेत करते हुए कहते हैं, कि दुराचारी, दुष्ट स्वभाव वाला, बिना किसी कारण दूसरों को
हानि पहुंचाने वाले ऐसे दुष्ट व्यक्ति से मित्रता रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है क्योंकि संगति का प्रभाव निश्चित ही पड़ता है।

यह उक्ति तो प्रसिद्ध है ही कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति दुष्ट व्यक्तियों के साथ रहता है
तो संगति का प्रभाव उस पर अवश्य पड़ेगा ही। दुर्जनों के संग में रहने वाले व्यक्ति के जीवन में दुःख के अलावा कुछ नहीं है।

English Meaning:- He who befriends a man whose conduct is vicious, whose vision impure, and who is notoriously crooked, would also rapidly destroyed his own life.

Sanskrit Shlokas – 20

समाने शोभते प्रीती राज्ञि सेवा च शोभते।
वाणिज्यं व्यवहारेषु स्त्री दिव्या शोभते गृहे।।20।।

दोहा – 20

राम सों सोहत मित्रता, नृप सेवा सुसोहात ।।
बनियाई व्यवहार में, सुन्दर भवन सुहात ।।२०।।

हिंदी अर्थ:- यहां आचार्य मित्रता व व्यवहार में समानता के स्तर का महत्त्व बताते हुए कहते हैं, कि समान स्तर वालों से ही मित्रता करनी चाहिए यही व्यावहारिक है।

सेवा राजा की शोभा देती है। वैश्यों का व्यापार करना शोभा देता है। शुभ स्त्री घर की शोभा है।

अर्थ यह है कि मित्रता बराबर वालों से ही रखनी चाहिए। सेवक का कार्य राजा सेवा करना है न की राजा बनने के सपने देखना ऐसा मुमकिन नहीं है।

वैश्यों की शोभा व्यापार करना है तथा घर की शोभा शुभ लक्षणों वाली पत्नी है,

क्योंकि कहा गया है कि ‘जाही का काम वाही को साजे, और करे तो डण्डा बाजे’ यानी जिसका जो कार्य है वही करे तो ठीक वरना परिणाम सही नहीं रहता।

English Meaning:- Friendship between equals flourishes, service under a king is respectable, it is meaningful for a business man to do business, and a home grace is because of a wife with good virtue.

दोस्तो चाणक्य की नीति हमारे जीवन में एक नया बदलाव ला सकती हैं| और इनके द्वारा कही गई बातें कही कही पर कड़बी जरूर हैं लेकिन सत्य है

आशा करते हैं चाणक्य निति द्वितीय अध्याय हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित (Chanakya Niti Second Chapter with meaning in Hind English) का ज्ञान आपके जीवन के द्रष्टिकोण को और व्यावहारिक बनाये यही हमारी शुभकामना है|

यह भी पढ़ें:-

चाणक्य निति [ प्रथम अध्याय ] हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित

Chanakya Niti Third Chapter Hindi English | चाणक्य नीति तृतीय अध्याय

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Anurag Pathak
Anurag Pathak

इनका नाम अनुराग पाठक है| इन्होने बीकॉम और फाइनेंस में एमबीए किया हुआ है| वर्तमान में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं| अपने मूल विषय के अलावा धर्म, राजनीती, इतिहास और अन्य विषयों में रूचि है| इसी तरह के विषयों पर लिखने के लिए viralfactsindia.com की शुरुआत की और यह प्रयास लगातार जारी है और हिंदी पाठकों के लिए सटीक और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे

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