Chanakya Niti Chapter 11 Hindi English | चाणक्य नीति ग्यारहवां अध्याय अर्थ सहित

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Chanakya Niti eleventh Chapter 11 slokas with meaning in Hindi English | चाणक्य नीति ग्यारहवां अध्याय हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित

दोस्तो, इस आर्टिकल में हम चाणक्य नीति ग्यारहवें अध्याय के संस्कृत श्लोक का हिंदी और इंग्लिश अर्थ सहित (chanakya Niti eleventh chapter 11 slokas with meaning in HIndi English अध्ययन करेंगे| चाणक्य ने मानव के सामाजिक जीवन को सुमग बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों का संग्रह किया है| आशा करते हैं इस ज्ञान को अपने जीवन में आरोपित करके आप अपने जीवन को और बेहतर बना सकेंगे|

Chanakya Niti Chapter 11 with Hindi English Meaning

चाणक्य नीति ग्यारहवां अध्याय हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित

संस्कृत श्लोक – 1

दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता।
अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वारः सहजा गुणाः।।1।।

दोहा – 1

दानशक्ति प्रिय बोलिबो, धीरज उचित विचार।
ये गुण सीखे ना मिलै, स्वाभाविक है चार।।१।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य के अनुसार मनुष्य के चार जन्मजात गुण हैं, दान देना (उदारता), प्रिय बोलना, धीरज रखना औरआचरण में विवेक| चाणक्य के अनुसार यह चार गुण मनुष्य में जन्म जात होते हैं उन्हें सीख कर जानने का कोई फायदा नहीं ये तो मनुष्य में जन्म से ही हैं|

English Meaning:- Generosity,to speak sweetly or mildly, courage and prudence and maturity in conduct these four traits are not acquired but inherited from birth.

संस्कृत श्लोक – 2

आत्मवर्गं परित्यज्य परवर्गं समाश्रयेत्।
स्वयमेव लयं याति यथा राज्यमधर्मतः।।2।।

दोहा – 2

व आपनो छोडि के, हे वर्ग जो आन ।
सो आपई नशि जात है, राज अधर्म समान ।।२।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, ऐसा व्यक्ति जो अपने समाज और देश को छोड़कर दुसरे समाज और देश से मदद मांगता है और मिल जाता है वह उसी प्रकार नष्ट हो जाता हैं जैसे अधर्म से एक राज्य नष्ट हो जाता है|

चाणक्य का कहना यह है की यदि कोई व्यक्ति अपने देश और अपने समाज का तिरस्कार करके किसी दुसरे समाज और देश में जाकर मिल जाता है, वह समाज और देश भी उसपर पूर्ण रूप से विश्वाश नहीं करता क्योंकि उसे हमेशा ही शक की नज़र से देखा जाता है, जो अपने समाज और देश का न हुआ तो हमारा क्यों होगा| ऐसा व्यक्ति भी उस देश और राजा की तरह नष्ट हो जाता है जहाँ न्याय और कानून व्यवस्था नष्ट हो चुकी है|

English Meaning:- The person who leave in own community and country forever and joins another destroyed and perishes as the king who practive an unrighteous path.

संस्कृत श्लोक – 3

हस्ती स्थूलतनुः स चांकुश वशः किं हस्तिमात्रोंऽकुशः।
दीप प्रज्वलिते प्रणश्यति तमः किं दीपमात्रं तमः।
वज्रणभिहताः पतन्ति गिरयः किं वज्रमात्रं नगाः
तेजो यस्य विराजते स बलवान् स्थूलेषु कः प्रत्ययः।।3।।

दोहा – 3

भाकिरी रह अंकुश के वश का वह अंकुश भारी कशसों ।
त्यों तम पुंजहि नाशत दीपसो दीपकहू अँधियार सरीसों ।।।
वज्र के मारे गिरे शिरिहूँ कहूँ होय भला वह वज्र गिरोस ।
तेज है जासु सोई बलवान कहा विश्वास शरीर लडीशों ।।३।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य यहाँ आत्मशक्ति के बल को शरीर के बल से ज्यादा महत्व देते हुए कहते हैं, एक छोटे से अंकुश से विशालकाय हाथी को नियंत्रित किया जा सकता है, क्या अंकुश इतना बड़ा है जितना हाथी एक छोटा सा दीपक गहन अन्धकार को भी मिटा देता है, क्या दीपक अन्धकार से ज्यादा गहन है एक वज्र (आकाश से गिरने वाली बिजली) बड़े से बड़े पहाड़ को तोड़ देता है, क्या वज्र पर्वत से ज्यादा विशाल है, नहीं अर्थार्थ जिसमें आत्मशक्ति का बल और तेज है वाही बलवान है, भारी भरकम शरीर से कुछ नहीं होता है|

English Meaning:- Elephant is controlled just by a small ankush (Goad), is the god as large as elephant? A small lighted candle banishes darkness, is the candle as vast as darkness.

A small vajra (thunderbolt) breaks apart a big mountain. Is the thunderbolt as big as mountain? No, He whose power prevails is really mighty; What is there in bulk?

संस्कृत श्लोक – 4

कलौ दशसहस्राणि हरिस्त्यजति मेदिनीम्।
तदधैं जाह्नवी तोयं तदद्धे ग्रामदेवता।।4।।

दोहा – 4

दस हजार बीते बरस, कलि में तजि हरि देहि।
तारा अई सुर नदी जल, थामदेव अधि तेहि ।।4।।

हिंदी अर्थ:-आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कलियुग के दस वर्ष बीत जाने पर भगवान पृथ्वी को छोड़ देते हैं। इसके आधे
में गंगा अपने जल को छोड़ देती है। इसके भी आधे समय में ग्राम देवता पृथ्वी को छोड़ देते हैं।

यह हम प्रत्यक्ष रूप से देख भी रहे हैं, गंगा युमना का पानी सूखता जा रहा है|, और इन नदियों के बहाव का क्षेत्र भी समय के साथ घटता ही जा रहा है|

English Meaning:- chanakya says, within 10,000 year of Kaliyug Bhagwan leave the earth and settled in bekunth. within 5000 years of kaliyug ganga water is dry out, and within 2500 years of kaliyug village god leaves the earth forever.

संस्कृत श्लोक – 5

गृहासक्तस्य नो विद्या न दया मांसभोजिनः।
द्रव्य लुब्धस्य नो सत्यं न स्त्रैणस्य पवित्रता।।5।।

दोहा – 5

विद्या गृह आसक्त को, दया मांस जे खाहिं।।
लोभहिं होत न सत्यता, जारहिं शुचिता नाहिं ।।5।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, जो व्यक्ति घर गृहस्थी में ही लगा रहता है, वह ज्यादा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है, मास खाने वाले में कभी दया नहीं होती, धन का लोभी कभी सत्य नहीं बोलता और हमेशा स्त्रियों के पीछे भागने वाला कामुक व्यक्ति में कभी शुद्धता नहीं होती|

English Meaning:- He who is always busy in family affairs can never acquite knowledge, Flesh eater has no mercy is his heart, the greedy man will not be truthful at all, and there is no sanctity in a man with full of lust towards woman.

संस्कृत श्लोक – 6

आदत नहीं बदलती न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहु प्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः।
आमूलसिक्तं पयसा घृतेन न निम्बवृक्षोः मधुरत्वमेति।।6।।

दोहा – 6

साधु दशा को नहिं है, दुर्जन बहु सिंखलाय।।
दूध घीव से सीचिये, नीम न तदपि मिठाय ।।6।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, दुष्ट को कभी भी सज्जन नहीं बनाया जा सकता है, यदि नीम के पेड़ को जड़ से लेकर शिखर तक दूध और घी से सींचा जाए तब भी उसमें मिठास नहीं लाई जा सकती है|

English Meaning:- A wicked man can not be converted in noble one even if he is tought or instructed in different ways, as neem tree can be made sweet even if it is sprinkled and irrigated from top to the roots with milk and ghee.

संस्कृत श्लोक -7

अन्तर्गतमलो दुष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि।
न शुद्ध्यतियथाभाण्डं सुरया दाहितं च तत्।।7।।

दोहा – 7

मन मलीन खल तीर्थ ये, यदि सो बार नहाहिं।।
होय शुध्द नहिं जिमि सुरा, बासन दीनेहु दाहिं ।।7।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य दुष्ट की शराब के वर्तन से तुलना करके कहते हैं, जैसे शराब के वर्तन को चाहे आप आग जला दें तब भी उसमें शुद्धता नहीं आती है, इसी प्रकार यदि मन मैला हो चाहे कितने भी तीर्थ दर्शन और गंगा में स्नान कर लो तब भी कोई तीर्थ का लाभ नहीं होता|

English Meaning:- Mental dirt does not washed away even from 100 times bath in sacred water as wine pot can not be purified even by evaporating all vines by puting of fire.

संस्कृत श्लोक – 8

न वेत्ति यो यस्य गुणप्रकर्षं स तु सदा निन्दति नात्र
चित्रम्। यथा किराती करिकुम्भलब्धां मुक्तां परित्यज्य विभर्ति गुजाम्।।8।।

दोहा – 8

जो न जानु उत्तमत्व जाहिके गुण शान की ।।
निन्दतो सो ताहि तो अचज कौन खान की ।।
ज्यों किरति हाथि माथ मोतियाँ विहाय के।
घू घची पहीनती विभूषणे बनाय कै।।8।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं जो मनुष्य जिस वस्तु के गुण जानता है वाही वास्तु उसके लिए मूल्यवान है| यदि कोई वास्तु बहुत मूल्यवान है लेकिन आप उसके गुण धर्म को नहीं जानते और आप उस वास्तु की बुराई करें तो इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए|

चाणक्य यहाँ उदहारण देते हैं जैसे जंगल में रहने वाली भीलनी हाथी के मस्तिष्क से मिलने वाली मोती की जगह गूंजा और गुघची की माला पहनती है|

English Meaning:- Chanakya says, if a human abuse a thing of which one have no knowledge, just as a wild hunter’s wife throw away the pearl found in the head of elephant and picks up a gunj (a type of seed) and wear it as ornaments

संस्कृत श्लोक – 9

यस्तु संवत्सरं पूर्णं नित्यं मौनेन भुञ्जते।
युगकोटिसहस्रन्तु स्वर्गलोक महीयते।।9।।

दोहा – 9

जो पूरे इक बरस भर, मौन धरे नित खात ।।
युवा कोटिन के सहस तक, ख मांहि पूजि जात ।।9।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं मौन रहना भी एक तपस्या है जो व्यक्ति एक साल तक मौन रहता हुआ भोजन करता है, उसे करोड़ों युगों तक स्वर्गलोक के
सुख प्राप्त होते हैं|

English Meaning:- Chanakya says, he who eats food for one year silently (Only Meditating on food feelings) attains to the heaven for thousand crore of years.

संस्कृत श्लोक – 10

कामं क्रोधं तथा लोभं स्वाद शृंगारकौतुकम्।
अतिनिद्राऽतिसेवा व विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत्।।10।।

दोहा – 10

काम क्रोध अरु स्वाद, लोभ शृड्रहिं कौतुकहि।
अति सेवन निद्राहि, विद्यार्थी आठौतजे ।।10।।

हिंदी अर्थ:- चाणक्य यहाँ विद्यार्थी को क्या नहीं करना चाहिए इसके बारे में बताते हुए कह रहे हैं, की एक विद्यार्थी को स्त्री सहवास, क्रोध करना, लोभ करना, स्वाद यानि जीभ का चटोरापन, बनाव श्रृंगार, घूमना फिरना, अधिक सोना और किसी की भी ज्यादा सेवा करना बिद्या प्राप्त करने में वधाएं हैं, इन सभी विकृतियों से एक विद्यार्थी को अपने आपको दूर रखना चाहिए|

English Meaning:- Chanaky Says A student must leave (renounce) the following eight bad habits – lust, anger, greed, desire for tasty food, fashion, excessive curosity, excessive sleep and outing.

संस्कृत श्लोक – 11

अकृष्ट फलमूलानि वनवासरतः सदा।
कुरुतेऽहरहः श्राद्धमृषिर्विप्रः स उच्यते।।11।।

दोहा – 11

बिनु जोते महि मूल फल, खाय रहे बन माहि।
श्राध्द करे जो प्रति दिवस, कहिय विप्र क्रषि ताहि ।।11।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं जो ब्राह्मण बिना जोती हुई भूमि से कंद फल मूल खता है, सदा वन में रहता है तथा हमेशा नित्य श्राद्ध करता है, उसे ऋषि कहा जाता है|

English Meaning:- According to chanakya A brahman is said to be a rishi if he eats the fuits from unplough field, alway live in jungle and perform shradh deed on time.

संस्कृत श्लोक – 12

एकाहारेण सन्तुष्टः षड्कर्मनिरतः सदा।
ऋतुकालेऽभिगामी च स विप्रो द्विज उच्यते।।12।।

दोहा – 12

एकै बार अहार, तुष्ट सदा षटकर्मरत ।।
त्ररतु में प्रिया विहार, करे वनै सो विज कहै ।।12।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य ब्राह्मण के गुणों की चर्चा करते हुए कहते हैं की जो वक्ती दिन में एक ही बार भोजन करे, अध्ययन, ताप, दान आदि 6 कार्यों में सलंग्न रहने वाला और अपनी पत्नी के साथ सिर्फ ऋतुकाल (महामारी ख़त्म जो जाने के बाद का समय) में ही सम्भोग करे| वाही ब्राह्मण है|

English Meaning:- Chanakya says the one is the true brahman who is satified the one meal in a day, who alwas involve in study, self realisation, charity etc six work and intercourse with his wife once in a month after her menses.

संस्कृत श्लोक – 13

लौकिके कर्मणि रतः पशूनां परिपालकः।
वाणिज्यकृषिकर्मा यः स विप्रो वैश्य उच्यते।।13।।

दोहा – 13

निरत लोक के कर्म, पशु पाले बानिज करै।
खेती में मन कर्म करै, विप्र सो वैश्य है।।13।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं यदि कोई ब्राह्मण सांसारिक कार्य जैसे व्यापार करता है, खेती करता है पशु पालता है, ऐसा ब्राह्मण, ब्राह्मण होते हुए भी वैश्य कहलाता है|

English Menaing:- The brahman, who is involved in worldly deed like doing business, farming, breeding animal is a vaisya even if he is bhraman from cast.

संस्कृत श्लोक – 14
परकार्यविहन्ता च दाम्भिकः स्वार्थसाधकः।
छलीद्वेषी मधुकूरो मार्जार उच्यते।।14।।

दोहा – 14

दंभी खारथ सूर, पर कारज घाले छली ।।
वेषी कोमल क्रूर, विप्र बिलार कहावते ।।१७।।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दूसरे का काम बिगाड़ने वाले, स्वार्थी, छली कपटी, दूसरों से बेर रखने वाला, मुह के सामने मीठा बोलने बाला लेकिन मन में बेर रखने बाला ब्राह्मण बिल्ला बिलौटा के सामान होता है|

English Meaning:- The brahman who foil the doings of others, who is hypocritical, selfish and hates the prosperity of other, he is sweet and mild talking to others but has bad intention in heart is like a male cat.

संस्कृत श्लोक – 15

वापीकूपतड़ागानामारामसुखश्वनाम्।
उच्छेदने निराशंक स विप्रो म्लेच्छ उच्यते।।15।।

दोहा – 15

कूप बावली बाबा ओ तडाका सुरमन्दिरहिं ।।
नाश जो भय त्याशि, म्लेच्छ विप्र कहाव सो ।।15।।

हिंदी अर्थ:- आशय यह है कि जो ब्राह्मण बावड़ी, कुएं, तालाब, उपवन, बाग-बगीचे, मंदिर आदि को नष्ट करता है, जिसे समाज या लोक-लाज का कोई भय नहीं रहता, उसे म्लेच्छ समझना चाहिए।

English Meaning:- The brahmana who destroys a pond, a well, a tank, a garden and a temple is called a maleccha.

संस्कृत श्लोक – 16

देवद्रव्यं गुरुद्रव्यं परदाराभिमर्षणम्।
निर्वाहः सर्वभूतेषु विप्रश्चाण्डाल उच्यते।।16।।

दोहा – 16

पलारी त जोय, जो शूरु सुर धन को हरे।
विज चाण्डालहोय, विप्रश्चाण्डाल उच्यते ।।।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य ब्राह्मण और चांडाल के लक्षणों की समीक्षा करते हुए कहते हैं की ऐसा ब्राहमण जो गुरुओं और मंदिरों से देवताओं की वस्तुएं चुराता है, पराई स्त्रियों से सम्भोग करता है और खाने में कुछ भी खा जाता है और चिंतन नहीं करता की वह वास्तु खाने योग्य है या नहीं| ऐसा ब्राह्मण एक चांडाल के सामान है|

English Meaning:- The brahman who steals the property of guru and deities of temple, who intercourse with others wife and who maintain himself by eating anything and
everyting without considering the quality is samse as chandaal (devil).

संस्कृत श्लोक – 17

देयं भोज्यधनं सुकृतिभिर्ना संचयस्तस्य वै,
श्रीकर्णस्य बलेश्च विक्रमपतेरद्यापि कीर्ति स्थिता।
अस्माकं मधुदानयोगरहितं नष्टं चिरात्संचित
निर्वाणादिति नष्टपादयुगलं घर्षत्यमी मक्षिकाः।।17।।

दोहा – 17

मतिमानको चाहिये वे धन भोज्य सुसंचहिं नाहिं
दियोई करें ते बलि विक्रम कहू कीरति, आजूलो लोया कोई करे।।।
चिरसंचि मधु हम लोन को बिनु भोश दिये नसिबोई करें।
यह जानि गये मधुनास दोङ मधुमखियाँ पाँव घिसोई करें।।17।।

हिंदी अर्थ:- चाणक्य कहते हैं, की महान पुरुषों को अपनी आवयश्कता से ज्यादा, अन्न और धन दान करते रहना चाहिए इससे इनकी प्रसिद्धि और धन का उपयोग सही जगह होता रहता है|

चाणक्य उदहारण देते हुए कहते हैं, कर्ण और बलि की कीर्ति आज भी उनके दान स्वाभाव से बनी हुई है| चाणक्य आगे उदहारण देते हुए कहते हैं, मधुमक्खियाँ शहद बनाती हैं न खुद खाती हैं न किसी अन्य जीव को खाने देती हैं, लेकिन जब
कोई जबरदस्ती उनके छत्ते को तोड़कर शहद चुरा कर ले जाता है तो सिर्फ जमीन पर पैर पटक कर रह जाती हैं|

English Meaning:- Chanakya says, A noble man should always donate excess wealth and food to the needy. As doing so, his prestige always maintained and wealth and food goes to the needy hand.

chanakya given an example that the fame of raja bali and karn are still in the society as a great Donator.

आशा करते हैं चाणक्य नीति ग्यारहवां अध्याय हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित (Chanakya Niti elevnth chapter 11 slokas with hindi english meaning) आपके जीवन में अवश्य ही सकारात्मक परिवर्तन ले के आएगा|

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Anurag Pathak
Anurag Pathak

इनका नाम अनुराग पाठक है| इन्होने बीकॉम और फाइनेंस में एमबीए किया हुआ है| वर्तमान में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं| अपने मूल विषय के अलावा धर्म, राजनीती, इतिहास और अन्य विषयों में रूचि है| इसी तरह के विषयों पर लिखने के लिए viralfactsindia.com की शुरुआत की और यह प्रयास लगातार जारी है और हिंदी पाठकों के लिए सटीक और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे

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