Chanakya Niti Chapter 10 Hindi English | चाणक्य नीति दसवां अध्याय अर्थ सहित

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Chanakya Niti tenth Chapter 10 shlokas meaning in Hindi English | चाणक्य नीति दसवां अध्याय हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित

दोस्तो आज यहाँ हम चाणक्य नीति के दसवें अध्याय हिंदी और इंग्लिश अर्थ सहित (Chanakya Niti chapter 10 in Hindi and English Meaning) विस्तार से अध्ययन करेंगे

आइये इस महान ग्रन्थ के ज्ञान सागर की सम्पूर्ण व्याख्या के साथ चर्चा करते हैं

Chanakya Niti Chapter 10 in Hindi English

चाणक्य नीति दसवां अध्याय हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित

संस्कृत श्लोक – 1

धनहीनो न च हीनश्च धनिक स सुनिश्चयः।
विद्या रत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु।।1।।

दोहा – 1

हीन नहीं धन हीन है, धन थिर नाहिं प्रवीन ।
हीन न ओर बखानिये, एवढ्याहीन सुदीन ।।1।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य यहां विद्या को धन से भी बड़ी दौलत मानते हुए कहते हैं कि धनहीन व्यक्ति हीन नहीं कहा जाता। उसे धनी ही समझना चाहिए। जो विद्यारत्न से हीन है, वस्तुतः वह सभी तरह से हीन है।

आचार्य चाणक्य का अभिप्राय यह है जो मनुष्य शिक्षित है वह अपना जिवानोपार्जन किसी भी परिस्थिति में कर सकता है|
लेकिन यदि धनि व्यक्ति अनपढ़ है तो वह अपनी मुर्खता की वजह से अपनी साड़ी दौलत गवां सकता है|

English Meaning:- The One that is unblessed with wealth is not destitue, he is indeed rich (if he is learned), but the Human that is not educated and learned is indeed a destitue.

संस्कृत श्लोक – 2

दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्।
शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यं मनःपूतं समाचरेत्।।2।।

दोहा – 2

दुखि टसोधि प धरिय मा, पीजिय जल पट रोधि ।।
शास्त्रशोधि बोलिय बचन, कयि काज मन शोधि ।।२।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, कि आंख से अच्छी तरह देख भाल कर पांव रखना चाहिए, जल हमेशा वस्त्र से छानकर पीना चाहिए।

शास्त्रों और नीति के अनुसार ही बात कहनी चाहिए तथा जिस कार्य को करने के लिए मन आज्ञा दे, वही करना चाहिए।

English Meaning:- one should carefully examine the place where one put his next step
(having it ascertained to be free from filth and living creatures like insects etc.).

One should drink water after filtering through a clean cloth, One should speak only those words which have the sanction of the sastras, and carry out a task which we have carefully considered.

संस्कृत श्लोक – 3

सुखार्थी चेत् त्यजेद्विद्यां त्यजेद्विद्यां चेत् त्यजेत्सुखम्।
सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।।3।।

दोहा – 3

सुख चाहे विद्या तजे सुख तजि विद्या चाह।
अर्थिहि को विद्या कहाँ, विद्यार्थिहिं सुख काह ।।३।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य कहते हैं कि यदि सुखों की इच्छा है तो विद्या त्याग दो और यदि विद्या की इच्छा है तो सुखों का त्याग कर दो। सुख चाहने वाले को विद्या कहां तथा विद्या चाहने वाले को सुख कहां।

आशय यह है कि विद्या बड़ी मेहनत से प्राप्त होती है। विद्या प्राप्त करना तथा सुख प्राप्त करना, दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं। जो सुख-आराम चाहता है, उसे विद्या को छोड़ना पड़ता है और जो विद्या प्राप्त करना चाहता है, उसे सुख-आराम को छोड़ना पड़ता है।

English Meanig:- He who desires sense gratification must give up the idea of acquiring
knowledge, and he who wants to acquire knowledge must not hope for sense gratification.

The one who seeks sense gratification, can not acquire knowledge, and he who desires knowledge enjoy can not have sense gratification.

संस्कृत श्लोक – 4

कवयः किं न पश्यन्ति किं न कुर्वन्ति योषितः।
मद्यपा किं न जल्पन्ति किं न खादन्ति वायसाः।।4।।

दोहा – 4

काह न जाने सुकवि जन, करे काह नहिं नारि।।
मद्यप काह न बकि सकै, का खाहिं केहि वारि ।।४।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य मनुष्य की कल्पना शक्ति व स्वाभाविक कर्म की प्रवर्ती की चर्चा करते हुए कहते हैं कि कवि की कल्पना की कोई सीमा नहीं है, स्त्रियां क्या नहीं करतीं, शराबी क्या नहीं बकते, कौए क्या नहीं खाते |

आशय यह है कि अपनी कल्पना से कवि लोग सूर्य से भी आगे पहुंच जाते हैं। कवि की कल्पना की कोई सीमा नहीं है, स्त्रियां हर अच्छा-बुरा काम कर सकती हैं। शराबी नशे में जो न बके वही कम है, वह कुछ भी बक सकता है। कौए हर अच्छी-गन्दी वस्तु खा जाते हैं।

English Meaning:- There is no limit of poets observation. What is that act women are incapable of doing. What will drunken people not prate (Yammer) and crow
can eat anyting on earth.

संस्कृत श्लोक – 5

रंकं करोति राजानं राजानं रंकमेव च।
धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः।।5।।

दोहा – 5

बनवै अति रंकन भूमिपती अरु भूमिपतीनहुँ रंक अति ।
धनिके धनहीन फिरे करती अधनीन धनी विधिकेरिती ।।5।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य यहां भाग्य की चर्चा करते हुए कहते हैं कि भाग्य रंक को राजा तथा राजा को रंक बना देता है। धनी को निर्धन तथा निर्धन को धनी बना देता है। |

अभिप्राय यह है कि भाग्य बड़ा बलवान होता है। बुरा वक्त आने पर एक धनी व्यक्ति को निर्धन बनने में कभी देरी नहीं लगती और भाग्य अच्छा होने पर एक निर्धन और मामूली-सा इन्सान भी पलक झपकते ही धन्ना सेठ बन जाता है और यह सब भाग्य का खेल है। कर्म के बाद फल काफी कुछ भग्य पर निर्भर करता है।

English Meaning:- Fate makes a beggar a king and a king a beggar. He makes a rich man poor and a poor man rich.

संस्कृत श्लोक – 6

लुब्धानां याचकः शत्रुमूर्खाणां बोधकः रिपुः।
जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चौराणां चन्द्रमा रिपुः।।6।।

दोहा – 6

याचक रिपु लोभीन के, मूढनि जो शि प्रदान । |
जार तियन निज पति कह्यो, चोरन शशि रिपू जान ।।६।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लोभी इंसान के लिए भीख, चन्दा तथा दान मांगने वाले व्यक्ति शत्रु के समान होते हैं, क्योंकि मांगने वाले को देने के लिए उनका मन नहीं होता है।

इसी प्रकार मूर्खों को भी, समझाने-बुझाने वाला इंसान अपना दुश्मन लगता है, क्योंकि वह उनकी मूर्खता का समर्थन नहीं करता।

दुराचारिणी स्त्रियों के लिए पति ही उनका शत्रु होता है, क्योंकि उसके कारण उनकी आजादी और स्वच्छंदता में बाधा पड़ती है।

चोरों के लिए चन्द्रमा शत्रु चन्द्रमा शत्रु के समान हैं, क्योंकि उनके लिए अंधेरे में छिपना सरल होता है, चांद की चांदनी में नहीं।

English Meaning:- The Beggar is a miser’s enemy, the wise counsellor is the fool’s enemy,
her husband is an adulterous wife’s enemy, and the moon is the enemy of the thief.

संस्कृत श्लोक – 7

येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविः भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।7।।

दोहा – 7

धर्मशील शुण नाहिं जेहिं, नहिं विढ्या तप दान ।
मनुज रूप भुवि भार ते, विचरत मूश कर जान ।।७।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसे मनुष्य जिनमे विद्या, तपस्या, दान देना,
शील, गुण तथा धर्म में से कुछ भी नहीं है, वे मनुष्य पृथ्वी पर भार हैं। वे मनुष्य के रूप में पशु हैं, जो मनुष्यों के बीच में घूमते रहते हैं।

English Meaning:- Those who are destitute of learning, penance, knowledge, good character, virtue and benevolence are like beast wandering the earth in the form of Human.
They are only burdensome to the earth.

संस्कृत श्लोक – 8

अन्तःसार विहीनानामुपदेशो न जायते।
मलयाचलसंसर्गात् न वेणुश्चन्दनायते।।8।।

दोहा – 8

शून्य हृद्य उपदेश, नाहिं लगे कैसो करिय ।।
बसे मलय शिरिदेश, तऊ बांस में बास नहिं ।।8।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिन मनुष्यों में सोचने समझने की शक्ति नहीं है, ऐसे व्यक्तियों को उपदेश देने का कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि वे समझने की शक्ति के अभाव के कारण शायद चाहते हुए भी कुछ समझ नहीं पाते।

जैसे मलयाचल पर्वत पर उगने पर, तथा चन्दन का साथ रहने पर भी बांस कभी सुगन्धित नहीं होते, ऐसे ही विवेकहीन व्यक्तियों पर भी सज्जनों के संग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

English Meaning:- Those who are incapable of observaion cannot be benefited by instruction. As Bamboo does not acquire the quality of sandalwood by being associated with the Malayachal Mountain.

संस्कृत श्लोक – 9

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम्।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति।।9।।

दोहा – 9

स्वाभाविक नहिं बुध्दि जेहि, ताहि शास्त्र करु काह।।
जो नर नयनविहीन हैं, दर्पण से करु काह।।9।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो लोग शास्त्र के ज्ञान को समझने की क्षमता नहीं रखते, वेद और शास्त्र ऐसे व्यक्ति का कैसे और क्या कल्याण कर सकता है?

जैसे ऐसा व्यक्ति जिसके दोनों नेत्रों में ज्योति नहीं है, जो जन्म से अंधा है, वह दर्पण में अपना मुख कैसे देखेगा|

अतः जिस प्रकार दर्पण अंधे व्यक्ति के लिए किसी काम का नहीं तो इसमें दर्पण को कोई दोष नहीं दिया जा सकता। इसी प्रकार शिक्षक और वेदों का भी इसमें कोई दोष नहीं है|

English Meaning:- What good can the scriptures do to a man who has no sense of understanding of his own. similarly what is the use of a mirror to the blind one.

संस्कृत श्लोक – 10

दुर्जनं सज्जनं कर्तुमुपायो न हि भूतले।
अपानं शतधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं भवेत्।।10।।

दोहा – 10

दुर्जन को सज्जन कन, भूतल नहीं उपाय ।
हो अपान इन्द्रिय न शचि, सो सो धोयो जाय ।।10।।

हिंदी अर्थ:- चाणक्य कहते हैं मल त्याग करने वाली इंद्री (गुदा) को चाहे कितना भी पानी और साबुन से साफ कर लो लेकिन तब भी वह स्पर्श के योग्य नहीं
मानी जाती इसकी प्रकार दुष्ट और चांडाल को कितना भी समझा बुझा लो वह सज्जन नहीं बन सकता|

English Meaning:- Nothing can reform a bad man, just as the anus cannot become a
superior part of the body though washed one hundred times.

Chanakya Niti Chapter 10 slokas with Hindi and English Meaning (11-22)

संस्कृत श्लोक – 11

आप्तद्वेषाद् भवेन्मृत्युः परद्वेषात्तु धनक्षयः।
राजद्वेषाद्भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषात्कुलक्षयः।।1।।

दोहा – 11

सन्त विरोध ते मृत्यु निज, धन क्षय करि पर वेष ।
राजद्वेष से नसत है, कुल क्षय कर विज द्वेष ।।११।।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि साधू महात्माओं से शत्रुता करने पर मृत्यु होती है। शत्रु और दूसरों से
से द्वेष करने पर धन का नाश होता है। राजा से द्वेष और शत्रुता करने पर सर्वनाश हो जाता है और ब्राह्मण (सज्जन) से द्वेष करने पर कुल का नाश होता है।

English Meaning:- By offending a close relatives, life is lost, by offending others wealth is
lost, by offending the king, everything is lost, and by offending a brahmana one’s whole family is ruined.

संस्कृत श्लोक – 12

वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं, दुमालयः पत्रफलाम्बु सेवनम्।
तृणेषु शय्या शतजीर्णवल्कलं, न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम्।।12।।

दोहा – 12

आज बाघ सेवित वक्ष धन वन माहि बरु हिबो करे।
अरु पत्र फल जल सेवनो तृण सेज व लहबो करे।।
शतछिद्र वल्कल वस्त्र करिबहु चाल यह हिबो करे।
निज बन्धू महँ धनहीन वें नहिं जीवनो चहिबो करै।।१२।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य हिंसक जीवों-बाघ, हाथी और सिंह जैसे भयंकर जीवों से घिरे हुए वन में रह ले, वृक्ष पर घर बनाकर, फल-पत्ते खाकर और पानी पीकर निर्वाह कर ले, धरती पर घास-फूस बिछाकर सो ले और वृक्षों की छाल को ओढ़कर शरीर को ढक ले, परंतु धनहीन होने पर अपने सगे सम्बन्धियों के साथ कभी न रहे, क्योंकि इससे उसे अपमान और उपेक्षा का जो कड़वा पूंट पीना पड़ता है, वह सर्वथा
असह्य होता है।

English Meaning:- It is better to live under a tree in a jungle inhabited by tigers and
elephants, to maintain oneself in such a place with ripe fruits and spring water, to lie down on grass and to wear the ragged barks of trees than to live amongst one’s relations when reduced to poverty.

संस्कृत श्लोक – 13

विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं सन्ध्या, वेदाः पत्रम शास्त्रा धर्मकर्माणि
तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं, छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम्।।13।।

दोहा – 13

विप्र वृक्ष हैं मूल सन्ध्या वेद शाखा जानिये ।
धर्म कर्म वे पत्र दोऊ मूल को नहिं नाशिये ।।
जो न ६ ट मूल वै जाय तो कुल शाख पात न फूटिये ।।
यही नीति सुनीति है की मल रक्षा कीजिये ।।13।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विप्र ब्राह्मण (ज्ञानी) वृक्ष है, भगवान् की पूजा उसकी जड़ है, वेद उसकी शाखाएं हैं, और धर्म-कर्म उसके पत्ते हैं, इसलिए जड़ की हरसंभव रक्षा करनी चाहिए। जड़ के टूट जाने पर न तो शाखाएं रहती हैं और न पत्ते ।

आशय यह है कि भगवान् की पूजा पाठ ब्राह्मण का मुख्य कार्य है। अतः ब्राहमण को अपना भगवान् के भजन पूजा पाठ का कार्य करना चाहिए

English Meaning:- The brahmana is like a tree, his prayers are the roots, his chanting of the Vedas are the branches, and his religious act are the leaves. Constant effort should be made to preserve his roots, if the roots are destroyed there can be no branches or leaves.
So every brahman must prayer to save his roots

संस्कृत श्लोक – 14

माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः।
बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्।।14।।

दोहा – 14

लक्ष्मी देवी मातु हैं, पिता वि ष्णु सर्वेश ।।
कृष्णभक्त बन्धू सभी, तीन भूवन निज देश ।।१४।।

हिंदी अर्थ:- यहां आचार्य परिवार के सदस्यों के गुणों की तुलना भगवान् से करते हुए कहते हैं कि जिस मनुष्य की माँ लक्ष्मी के समान है, पिता विष्णु के समान है और भाई-बंधु कृष्ण के भक्त हैं, उसके लिए अपना घर तीनों लोकों के समान है|

अभिप्राय यह है कि जिस मनुष्य की मां स्वयं माँ लक्ष्मी के समान हो तथा पिता भगवान विष्णु की तरह सबका कल्याण और पालन करने वाले हों और नाते रिश्तेदार, भाई-बन्धु भगवान के भक्त हों, उस मनुष्य को तीनों लोकों के सुख इसी संसार में मिल जाते हैं।

English Meaning:- Chanakya says, whose mother is like goddess laksmi, father like lord vishnu and relative and brother and sister are the devotee of lord krishna, for him his own house is equal to all three world.

संस्कृत श्लोक – 15

एक वृक्षे समारूढा नानावर्णविहंगमाः।
प्रभाते दिक्षु गच्छन्ति तत्र का परिवेदना।।15।।

दोहा – 15

बहु विधि पक्षी एक तरु, जो बैठे निशि आय ।।
भोर शो दिशि उडि चले, कह कोही पछिताय ।।15।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, जैसे एक ही वृक्ष पर अलग अलग डाल पर रहने वाले पक्षी सुबह होते ही, अलग अलग दिशाओं में चल पड़ते हैं, और रात को फिर वृक्ष पर आ जाते हैं|

इसी प्रकार वृक्ष रूपी परिवार के सदस्य भी आता जाते रहते हैं इसमें दुःख और निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है|

English Meaning:- At night all kinds of birds sit on branch of a single tree. But as soon as
dawn comes all birds fly in all directions. so in a family like a tree all family member may part from each other. so there no need to express grief it is inevitable. we can not change it.

संस्कृत श्लोक – 16

बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्।
वने सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः।।16।।

दोहा – 16

बढि जास है सो बली. निर्बढिहि बल नाहिं।।
अति बल हाथीहिं त्यालघु, चतुर हतेति बन माहिं ।।16।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिसके पास बुद्धि (अक्ल) है, बल भी उसी के पास होता है। बुद्धिहीन का तो बल भी बेकार है, क्योंकि बुद्धि से
ही बल का प्रयोग किया जा सकता है अन्यथा नहीं।
आचार्य चाणक्य उदहारण देते हुए कहते हैं, बुद्धि के बल पर ही एक बुद्धिमान खरगोश ने अहंकारी सिंह को वन के कुएं में गिराकर
मार डाला था।

English Meaning:- He who is intelligent is strong, how can a man that is dumb be powerful. Chanakya giving and example of shot story justified it how a small rabbit with his intelligent compelled a strong lion fell into a well.

संस्कृत श्लोक – 17

का चिन्ता मम जीवने यदि हरिर्विश्वम्भरो गीयते,
नो चेदर्भकजीवनाय जननीस्तन्यं कथं निर्मयेत्।
इत्यालोच्य मुहुर्मुहुर्यदुपते लक्ष्मीपते केवलं,
त्वात्पादाम्बुजसेवनेन सततं कालो मया नीयते।।17।।

दोहा – 17

है नाम हरिको पालक मन जीवन शंका क्यों करनी ।।
नहिं तो बालक जीवन कोथन से पय निरस तक्यों जननी ।।
यही जानकर बार है यदुपति लक्ष्मीपते तेरे।
चरण कमल के सेवन से दिन बीते जायँ सदा मेरे।।१७।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मुझे जीवन में क्या चिन्ता, यदि हरि को विश्वम्भर कहा जाए। यदि ऐसा नहीं होता तो बच्चे के जीवन के लिए मां के स्तनों में दूध कैसे हो जाता।

यही समझकर हे यदुपति! लक्ष्मीपति! मैं आपके चरणों का ध्यान करता हुआ समय व्यतीत करता हूं।

आशय यह है कि मुझे अपने जीवन की कोई चिन्ता नहीं है। क्योंकि भगवान को विश्व का पालन-पोषण करने वाला कहा जाता है। सत्य ही है, क्योंकि बच्चे के जन्म से पहले ही मां के स्तनों में दूध आ जाता है।

यह ईश्वर की ही माया है। इस सब का विचार करते हुए हे भगवान विष्णु, मैं रात-दिन आपका ही ध्यान करता हुआ समय बिताता हूं।

आचार्य चाणक्य कहते हैं में क्यों बेकार चिंता करू, प्रभु खुद विश्वम्भर है जगत का पालन करने वाले है जो कुछ करना है वही करेंगे में तो निमित्त मात्र हूँ|

अगर वाही पालन करता नहीं होते तो शिशु के जन्म के तुरंत बाद माँ के स्तनों में दूध कैसे आता| आचार्य का भाव यह है की मनुष्य बेकार ही इतनी चिंता करता है, मनुष्य के हाथ में जीवन की डोर नहीं है सब उस प्रभु ने ही करना है

English Meaning:- Chanakya says, Why should I be concerned for my maintenance and life wellbeing as everything of my life is decided by lord vishnu, the supporter of all.

It it is not so than how, could milk flow from a mother’s breast for a child’s nourishment?

संस्कृत श्लोक – 18

गीर्वाणवाणीषु विशिष्टबुद्धि स्तथाऽपि भाषान्तर लोलुपोऽहम्।
यथा सुरगणेष्वमृते च सेविते स्वर्गागनानामधरासवे रुचिः।।18।।

दोहा – 18

देववानि बस बुध्दि, तऊ ओर भा पा चहीं ।
यदपि सुधा सुर देश, चहें अवस सुर अधर रस ।।18।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संस्कृत भाषा का विशेष ज्ञान होने पर भी मैं अन्य भाषाओं को सीखना चाहता हूं। स्वर्ग में देवताओं के पास
पीने को अमृत होता है, फिर भी वे अप्सराओं के अधरों का रस पीना चाहते हैं।

English Meaning:- Acharya chanakya says However I know sanskrit language but even than I want to learn other language too.

संस्कृत श्लोक – 19

अन्नाद् दशगुणं पिष्टं पिष्टाद् दशगुणं पयः।
पयसोऽष्ट गुणं मांसं मांसाद् दशगुणं घृतम्।।19।।

दोहा – 19

चूर्ण दश गुणो अन्न ते, ता दश गुण पय जान ।।
पय से अठशुण मांस ते तेहि दशगुण घृत मान ।।19।।

हिंदी अर्थ:- यहां आचार्य चाणक्य शक्ति की चर्चा करते हुए बताते हैं कि साधारण भोजन से आटे में दस गुनी शक्ति है। आटे से दस गुनी शक्ति दूध में है।
दूध से भी दस गुनी अधिक शक्ति मांस में तथा मांस से दस गुनी शक्ति घी में है। | आशय यह है कि साधारण भोजन से आटे में दस गुनी अधिक
शक्ति होती है। आटे से दूध में दस गुनी अधिक शक्ति है। दूध से भी दस गुनी अधिक शक्ति मांस में है तथा मांस से भी दस गुनी अधिक शक्ति
घी में होती है। इस प्रकार स्वास्थ्य के लिए घी सबसे अधिक लाभदायक है।

English Meaning:- Acharya Chanakya says, flour has ten times power
than ordinary food, milk has ten times power than flour, flesh has ten times
power than milk, but ghee has ten times power than flesh. Hence Ghee is
Best for Health than other eatable.

संस्कृत श्लोक – 20

शोकेन रोगाः वर्धन्ते पयसा वर्धते तनुः।
घृतेन वर्धते वीर्य मांसान्मांसं प्रवर्घते।।20।।

दोहा – 20

राग बढत है शाकते, पय से बढत शरीर।
घृत खाये बीज बढे, मांस मांस वाग्भीर।।२०।।

हिंदी अर्थ:- आचार्य चाणक्य पाने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि शोक और दुःख से रोग बढ़ते हैं। दूध से शरीर बढ़ता है। घी से वीर्य बढ़ता है। मांस से मांस बढ़ता है।

अभिप्राय यह है कि चिन्तित रहने से या दुःखी रहने से मनुष्य को अनेक रोग घेर लेते हैं। दूध पीने से मनुष्य का शरीर बढ़ता है।

English Meaning:- Chanakya says, sadness brings diseases, Milk grows the muscles, ghee increases sperms and eating meat increases flesh.

दोस्तो चाणक्य नीति का दसवां अध्याय हिंदी इंग्लिश अर्थ सहित ( Chanakya Niti Chapter 10 hindi and English meaning) शत प्रतिशत आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाए ऐसी हम कामना करते हैं|

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Anurag Pathak
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इनका नाम अनुराग पाठक है| इन्होने बीकॉम और फाइनेंस में एमबीए किया हुआ है| वर्तमान में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं| अपने मूल विषय के अलावा धर्म, राजनीती, इतिहास और अन्य विषयों में रूचि है| इसी तरह के विषयों पर लिखने के लिए viralfactsindia.com की शुरुआत की और यह प्रयास लगातार जारी है और हिंदी पाठकों के लिए सटीक और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे

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