Bhagavad gita slokas in sanskrit with meaning in hindi | Bhagavad gita quotes in sanskrit

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Bhagavad gita slokas in sanskrit with meaning in hindi | Bhagavad gita quotes in sanskrit | भगवद्गीता गीता के संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

हिन्दू धर्म में अनेक मत हैं, सभी अपने अपने तरीके से हिन्दू धर्म का पालन करते हैं| लेकिन संसार में जो सत्य है वो सर्वव्यापी है और हिन्दू धर्म के हरेक मत में इनको शामिल किया गया है|

भगवद्गीता एक ऐसा ग्रन्थ है जो हमें जीवन जीने की कला सिखाता है| इसमें दिए गए उपदेश आपको जीवन के हर एक क्षेत्र में मार्गदर्शन देते हैं|

जीवन को यदि आप परिपूर्ण रूप से जीना चाहते हो तो आपको निचे दिया गए सूत्रों और उपदेशों को अपने जीवन में उतारना होगा|

Bhagavad Gita slokas in sanskrit with meaning in Hindi

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कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।
मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि।।

(अध्याय 2 श्लोक 47)

आपको सिर्फ कर्म करने का अधिकार है, लेकिन कर्म का फल देने का अधिकार भगवान् का है, कर्म फल की इच्छा से कभी काम मत करो|और न ही आपकी कर्म न करने की प्रवर्ती होनी चाहिए|

सरल भाषा में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सिर्फ तू कर्म कर, कर्म के फल की इच्छा मत रख, कर्म फल को देने का अधिकार सिर्फ ईश्वर का है, और न ही खली बेठ अर्थार्थ मनुष्य की गति हमेशा ही कर्म में रहनी चाहिए, कर्म फल को ईश्वर पर छोड दे|

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

(अध्याय 2 श्लोक 23)

अर्थ:- अर्थार्थ आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।

भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, डर मत, अपना कर्म कर आत्मा शरीर एक माध्यम है आत्मा अज़र अमर है इसे कोई नहीं मार सकता अपना कर्म कर, और मरने मारने का डर छोड़.

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।16.21।।

(अध्याय 16 श्लोक 21)

काम  क्रोध और लोभ-ये तीन प्रकारके नरक के दरवाजे जीवात्मा का पतन करनेवाले हैं|  इसलिये मनुष्य को शांति पूर्वक जीवन जीने के लिए इन तीनों का त्याग कर देना चाहिये।

 

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)

अर्थ: विषयों (वस्तुओं) के बारे में निरंतर सोचते रहने से मनुष्य को इनसे आसक्ति हो जाती है। इससे कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में रूकावट आने से क्रोध उत्पन्न होता है।

इसलिय श्री कृष्ण कहते हैं सांसारिक विषय वस्तु और रिश्तों में आशक्ति (attachment) मत रख|

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)

इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा(faith) रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों (Senses) पर संयम रखने वाले मनुष्य, अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति को प्राप्त कर लेते हैं|

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् |
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ।। 

(अध्याय 2 श्लोक 70)

जैसे सम्पूर्ण नदियों का जल चारों ओर से समुद्र में आकर मिलता है| पर समुद्र अपनी मर्यादा में अचल प्रतिष्ठित रहता है। अर्थार्थ समुद्र अपना आकर, व्यवहार और अपनी प्रकर्ति में कोई परिवर्तन नहीं लाता|

ऐसे ही मनुष्य को भी सांसारिक भोग पदार्थों  को प्रयोग करते हुए भी आशक्ति नहीं होनी चाहिए| किसी भी रिश्ते वस्तु और सांसारिक भोग पदार्थों से लगाव ही मनुष्य के दुःख का कारण हो, जो मनुष्य सांसारिक वस्तुओं और भोगों का प्रयोग करते हुए इनसे लगाव और आशक्ति नहीं रखता वही परम शुख को प्राप्त करता है|

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

अर्थार्थ, इस संसार में जहाँ बुराई भी है तो अच्छाई भी है, Evil powers हैं तो Good powers भी है, हमेशा अच्छाई बुराई को पराजित करती हैं| तू चिंता मत कर, सत्य का साथ दे जीत सत्य की ही होगी|

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।१४।।

(अध्याय 2, श्लोक 14)

हे कुंतीपुत्र! इंद्रिय और विषयों का संयोग तो सर्दी-गर्मी, की तरह सुख-दुःखादि देने वाला है, यह अहसास हमेशा रहने वाला नहीं है, इसलिये हे भारत! उनको तू सहन कर और इनसे विचलित न हो।

यहाँ श्री कृष्ण कह रहे हैं, इस संसार में दुःख सुख का ही एक दूसरा पहलू है, दुःख का अनुभव करके ही हमें सुख की अनुभूति होती है, लेकिन श्री कृष्ण कहते हैं, मनुष्य तू सुख और दुखों के अनुभव से विचलित मत हो, उनसे आशक्ति मत रख, ऐसे जीवन जियो जैसे कुछ हुआ ही न हो| दुःख में न दुखी हो और सुख में न सुखी हो, चित्त को स्थिर रखो|

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्भुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)

अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही नाश कर बैठता है।

यहाँ श्री कृष्ण मनुष्य को समझा रहे हैं, क्रोध (anger) मनुष्य के पतन(नाश) और बर्वादी का कारण हैं| क्रोध करने से सोचने समझने की शक्ति ख़त्म हो जाती है| और हम कुछ ऐसे कार्य कर देते हैं जो हमारे जीवन में दुःख का कारण बनते हैं|

न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || 20||

(अध्याय 2, श्लोक 20)

यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है। यह आत्मा अजन्मा नित्य  शाश्वत और पुरातन है  शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।

श्री कृष्ण कहते हैं तेरा(मनुष्य) मूल स्वरुप आत्मा है, शरीर मात्र एक माध्यम, शरीर की मदद से इस संसार से हम संवाद
(communicate) कर पाते हैं|

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)

अर्थ:- श्रेष्ठ पुरुष जो आचरण यानी जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं।
अर्थार्थ, आप जिस तरह का व्यवहार अपने बच्चों रिश्तेदारों और अपने समाज के लोगों से करते हैं| वैसा ही व्यवहार, समाज के लोग आपके साथ करते हैं|

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)

इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

(अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)

इस श्लोक का अर्थ है: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥

(अठारहवां अध्याय, श्लोक 78)

जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीवधनुषधारी अर्जुन हैं? वहाँ ही श्री विजय विभूति और अचल नीति है ऐसा मेरा मत है।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥

(अध्याय 2, श्लोक 22)

मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है ऐसे ही देही (आत्मा) पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीरों में चला जाता है।

यहाँ श्री कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं, यह संसार परिवर्तन शील है, जीवन एक यात्रा है यहाँ लोग आते हैं चले जाते हैं, किसी भी वस्तु और व्यक्ति से आशक्ति (attachment) मत रख, बस जो जीवन में अभी हो रहा है उसको अनुभव कर और उस क्षण का आनंद ले|

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।

(अध्याय 3, श्लोक 19)

इसलिये तू निरन्तर आसक्तिरहित होकर कर्तव्यकर्म का भलीभाँति आचरण कर| क्योंकि आसक्तिरहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्माको प्राप्त हो जाता है।

भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, पार्थ निस्वार्थ और ममता, राग और बंधन को त्याग कर अपने कर्त्तव्य का निर्वाह कर, सांसारिक किसी भी रिश्ते और वस्तु के साथ अपने संबंध मत जोड़ सिर्फ आसक्तिरहित(without attachment) होकर मनुष्य कर्म किये जा| ऐसा मनुष्य कभी भी जीवन में दुःख का अनुभव नहीं करता|

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथाऽऽदर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।।

(अध्याय 3, श्लोक 38)

जैसे धुयें से अग्नि और धूलि से दर्पण ढक जाता है तथा जैसे भ्रूण गर्भाशय से ढका रहता है वैसे उस (काम) के द्वारा यह (ज्ञान) आवृत होता है।।

सरल शब्दों में कहें, जैसे अग्नि को धुआं छुपा लेता है और दर्पण को धूल, उसी प्रकार ज्ञान को प्राप्त करने के बीच में इच्छा, काम, वासना रूकावट हैं| अर्थार्थ काम वासना को त्याग और जीवन का ज्ञान प्राप्त करने में अग्रसर हो| यही जीवन का सत्य है|

दोस्तो आपको श्रीमद भगवद्गीता श्लोक ( Bhagavad gita slokas in sanskrit with meaning in hindi )का कलेक्शन जरूर पसंद आया होगा और यदि आप इस ज्ञान का प्रयोग अपने जीवन में करेंगे तो निश्चित ही आपके जीवन में परिवर्तन आएगा|

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Anurag Pathak
Anurag Pathak

इनका नाम अनुराग पाठक है| इन्होने बीकॉम और फाइनेंस में एमबीए किया हुआ है| वर्तमान में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं| अपने मूल विषय के अलावा धर्म, राजनीती, इतिहास और अन्य विषयों में रूचि है| इसी तरह के विषयों पर लिखने के लिए viralfactsindia.com की शुरुआत की और यह प्रयास लगातार जारी है और हिंदी पाठकों के लिए सटीक और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे

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