बैसाखी का इतिहास व महत्त्व | Baisakhi (Vaisakhi) Festival History Importance information in Hindi
आज हम बात कर रहे हैं, हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहार बैसाखी की, बैसाखी का त्यौहार क्यों और कब मनाया जाता है| सिक्ख और हिन्दू धर्म में बैसाखी का क्या महत्त्व है और भारत के किस किस हिस्से में बैसाखी को मनाया जाता है|
भारत त्योहारों का देश है, यहाँ हर एक दिन कोई न कोई त्यौहार होता ही है| हिन्दू धर्म का मतलब ही है, हमेशा जीवन का जश्न मनाना|
बोद्ध और जैन धर्म के आने से जब धर्म नीरस (उदासीन) हो गया| क्योंकि बोद्ध और जैन धर्म केवल त्याग पर आधारित थे|
उसी समय हिन्दू धर्म के प्रचारकों ने हिन्दुओं की इस निराशा को दूर करने के लिए और जीवन में रंग भरने के लिए उत्सवों को धर्म से जोड़ा, मंदिर बनवाये और मूर्ति पूजा को बढ़ावा दिया|
जीवन की निराशा से मनुष्य तब ही उठ सकता है जब हर पल और हर क्षण उत्सव हो, इसलिए ही हमारे गुरुओं ने धर्म को उत्सव से जोड़ दिया|
इसलिए कहा जाता है जितने त्यौहार हिन्दू धर्म में हैं उतने शायद ही किसी धर्म में होंगे|
बैसाखी मुख्यतः पंजाब और हरयाणा का त्यौहार है| लेकिन भारत के अन्य कई भागों जैसे बंगाल, केरल तमिलनाडु में भी इसको अलग अलग नामों से जाना जाता है|
आइये विस्तार से बैसाखी के इतिहास और महत्व की चर्चा करते हैं|
बैसाखी त्यौहार का महत्त्व और इतिहास की जानकारी
Baisakhi Festival History and Importance Information in Hindi
वैसे तो बैसाखी त्यौहार सिक्ख धर्म का त्यौहार माना जाता है| यह त्यौहार अप्रैल में 13 या फिर 14 तारीख को मनाया जाता है|
इसी दिन सिक्खों के दसवें गुरु, गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी| लेकिन बैसाखी का त्यौहार उससे पहले भी मनाया जाता था|
बैसाखी का त्यौहार मुख्यतः किसानों का त्यौहार भी होता है, बैसाख के महीने में रबी की फसल पक जाती है और इसी बैसाख में ही इसे काटा जाता है और फसल का पकना और काटा जाना किसान के लिए ख़ुशी का मोका तो होता ही है|
यहाँ हम यह कहना चाहते हैं बैसाखी से हिन्दू धर्म और सिक्ख धर्म और हिन्दू समाज सभी का इतिहास जुड़ा हुआ है|
हाँ सिक्ख धर्म अलग से बोलना पड़ता है, सिक्ख भी हिन्दुओं में से ही बने थे और सिक्ख धर्म की स्थापना ही हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए की गई थी|
आइये जानते हैं बैसाखी का हिन्दू धर्म के इतिहास से क्या सम्बन्ध है|
- इसी दिन सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी| सिक्ख धर्म के स्थापना दिवस के रूप में सिक्ख समाज इसे धूम धाम से मनाता है|
- बैसाख के महीने में रबी की फसल पक कर तैयार हो जाती है और काटी जाती है, इसलिए किसानों के लिए भी यह दिन एक उत्सव का अवसर होता है|
- बैसाखी वाले दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है| और हिन्दू धर्म के सूर्य पर आधारित कैलेंडर के अनुसार इसी दिन नया साल शुरू होता है| हिन्दुओं के लिए भी यह उत्सव का दिन होता है|
- इसी दिन सिक्ख नया साल भी शुरू होता है, खालसा सम्बत कैलेंडर के अनुसार इसी दिन सिक्ख धर्म के शुरू होने के कारण इसी दिन को सिक्ख नए साल के पहले दिन के रूप में भी मनाते हैं|
सिक्ख धर्म में बैसाखी का इतिहास
वैसे तो बैसाखी का त्यौहार पंजाब में बहुत पहले से मनाया जा रहा है| सिक्खों के तीसरे गुरु अमर दास जी ने तीन त्योहारों का चयन किया और कहा की हिन्दू और सिक्ख इन तीन त्योहारों को मिल कर मनाएंगे|
ये तीन त्यौहार थे बैसाखी, महा शिवरात्रि और दिवाली| कुछ जानकार बताते हैं शिवरात्रि के स्थान पर अमर दास जी ने माघी त्यौहार को चुना था|
इससे यह तो निश्चित हुआ की बैसाखी खालसा पंथ की स्थापना से भी पहले से मनाया जा रहा है|
लेकिन जब सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने इसी दिन खालसा पंथ की स्थान्पना की तो इस दिन का महत्व और बढ़ गया|
खालसा पंथ की स्थापना की कहानी
सन 1699 में औरंगजेब ने सिक्खों के नोवें गुरु तेगबहादुर जी की इस्लाम कबूल न करने पर सर काट कर हत्या कर दी| दसवें गुरु के तौर पर गुरु गोविन्द राय जी को गुरु की गद्दी मिली|
गुरु गोविन्द राय जी भी मुगलों के साथ युद्ध कर ही रहे थे| लेकिन अब गुरु जी को लग रहा था की हिन्दू और सिक्ख, मुसलमानों के सामने थोडा कमजोर पड़ रहे हैं|
इसलिए गुरूजी एक ऐसे नए पंथ की स्थापना करना चाहते थे जो लड़ाके हों और मुसलमानों से लड़ने में सक्षम हो|
एक दिन गुरु गोविन्द राय जी ने सभी हिन्दू और सिक्खों को आनंद पुर साहेब के मैदान में एकत्रित होने के लिए कहा| सामने गुरूजी एक तख़्त पर बेठे हुए थे और पीछे एक तम्बू लगा हुआ था|
गुरूजी के हाथ में तलवार लगी हुई थी| गुरूजी ने सभी लोगो से कहा मुझे बलि देने के लिए एक सर चाहिए कौन स्वेक्षा से अपना सर देना चाहे तो आगे आये|
भीड़ में से दयाराम जी आगे आये, गुरूजी उन्हें पीछे तम्बू में ले गए और तम्बू से खून की धरा बह निकली| गुरूजी बाहर आये और फिर बेठे हुए लोगों से कहा की मुझे बलि देने के लिए सर चाहिए|
इस तरह चार और लोग धर्मदास, हिम्मत राय, मोहक चंद, साहिब चंद जी आगे आये और गुरूजी इन सबको तम्बू में ले गए और तम्बू से खून की धारा बह निकली|
भक्तों ने समझा गुरूजी ने पांचों की बलि दे दी है| लेकिन कुछ देर के बाद केसरी रंग के कपड़ों में पांचों गुरूजी के साथ बाहर आये| गुरु जी ने कहा यह पाँचों मेरे पंज प्यारे हैं|
और आज से एक नए पंथ खालसा की शुरुआत होगी और इस धर्म के लोग सिंह कहलाएंगे| कड़ा, केश, कृपाण, कच्छा और कंगा हमेशा अपने पास रखेंगे|
बैसाखी के दिन ही खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोविन्द सिंह जी ने की थी| इसलिए इस दिन को खालसा पंथ की स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है|
गुरु गोविन्द राय जी इसके बाद गुरु गोविन्द सिंह जी कहलाये|
सिक्ख कैसे मानते हैं बैसाखी का त्यौहार
How Sikh Celebrates Baisakhi In Hindi
दोस्तो, सिक्ख, एक जिन्दा दिल कौम है और जब कोई त्यौहार और ख़ुशी का मौका आता है तो सिक्ख धर्म के लोग जोर शोर से इस दिन को मनाते हैं|
इस दिन गुरुद्वारा नगर कीर्तन निकालते हैं| नगर कीर्तन में 5 सिक्ख पंज प्यारों के भेष में नगर कीर्तन में आगे आगे चलते हैं|
नगर कीर्तन में गुरूद्वारे के सेवादार और भक्त कीर्तन और भजन गाते हुए पूरे गाँव या शहर में एक निश्चित दूरी तक चलते हैं|
बैसाखी पंजाब में बहुत जोर शोर से मनाया जाता है| देश के बाकी हिस्सों में भी यह मनाया जाता है जहाँ सिक्खों की संख्या ज्यादा है|
वैसाखी फसल कटाई का त्यौहार भी है
वैसाखी त्यौहार पंजाब क्षेत्र का फसल कटाई का भी त्यौहार है| इस महीने रबी की फसल पक जाती है और काटी जाती है|
इसलिए यह दिन किसानों के लिए एक उत्सव का दिन होता है| इस दिन भगवान् को धन्यवाद देने के लिए पंजाब के सिक्ख और हिन्दू नाच गाना और मौज मस्ती करते हैं|
पंजाब में आवत पौनी (Aawat Pauni) एक रिवाज है जिसमें सभी किसान एक साथ मिल कर गेंहू की फसल काटते हैं|
ढोल बजाते हैं भजन और दोहे गाते हैं| पंजाब के लोक नृत्य गिद्धा और भंगड़ा का ही प्रदर्शन किया जाता है|
पंजाब के कई जिलों में मेले का आयोजन किया जाता है| बैसाखी कई शेरोन जम्मू सिटी, कठुआ, उधमपुर, रेअसी और साम्बा जैसी जगहों पर भी मनाया जाता है|
बैसाखी का हिन्दुओं के लिए महत्व
वैसाख देसी महीने के पहले दिन सूर्य मेष राशी में आ जाता है| हिन्दू धर्म में इस दिन को हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नए साल के रूप में भी मनाया जाता है|
इस महीने में रबी की फसल पक जाती है और काटी जाती है और बेचने के लिए तैयार हो जाती है| इश्वर को धन्यवाद देने के लिए भी हिन्दू वैशाखी के दिन को त्यौहार के रूप में मनाते हैं|
तमिल्नादी, केरल, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरयाणा, पंजाब में हिन्दू बैसाखी के दिन को त्यौहार के रूप में मनाते हैं|
हिन्दू कैसे मनाते हैं बैसाखी
- इस दिन हिन्दू पवित्र नदियों में स्नान करते हैं जैसे गंगा, यमुना, झेलम और कावेरी|
- इस दिन हिन्दू मंदिर जाते हैं पूजा अर्चना करते हैं| मिठाई बनाते हैं और बाटते हैं| नए कपडे पहनते हैं|
- रिश्तेदारों को गिफ्ट देते हैं, बम पटाखें चलते हैं|
बैसाखी अलग राज्यों में अलग अलग नाम से जाना जाता है| जैसे
- केरल में विशु (Vishu) के नाम से
- तमिलनाडु में पुथांडू (Puthandu) के नाम से
- उत्तराखंड के कुमाऊ क्षेत्र में बिखु (Bikhu) और बिखौती (Bikhauti) के नाम से
- असम में रोंगली बिहू (Rongali Bihu) और बहाग बिहू (Bahag Bihu) के नाम से
- उडीशा में महा विशुवा संक्रांति (Maha Vishuva Sankranti) के नामे से
- नेपाल और बिहार के मिथला भाषी क्षेत्र में जुरशीतल (JurShital) के नाम से
- तेलंगाना कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगडी (Ugadi) के नाम से
- पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, नेपाल और बांग्लादेश में नबा बर्षा (Naba Barsha) और पोहेला बोइशाख (Naba Barsha or Pohela Boishakh)
यह भी पढ़ें:-
ट्रेन बजाती हैं ये 15 तरह के हॉर्न, जानें- किस का क्या है मतलब
भारत की सबसे पहली ट्रेन कहाँ और कब चली थी