आकाश पर संस्कृत में श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit shlokas on Space with Hindi meaning
यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय।।9.6।।
हिंदी अर्थ:- जैसे सब जगह विचरनेवाली महान् वायु नित्य ही आकाशमें स्थित रहती है, ऐसे ही सम्पूर्ण प्राणी मुझमें ही स्थित रहते हैं ऐसा तुम मान लो।
आकाशे तारकान् पश्य ।
हिन्दी अर्थ:- आकाश में तारे देख ।
एष भानुर् आकाशे उदयते ।
हिन्दी अर्थ:- यह सूर्य आकाश में निकलता है ।
यदा भानुर् उदयते तदा आकाशः रक्तो जायते ।
हिन्दी अर्थ:- जब सूर्य निकलता है तब आकाश लाल हो जाता है|
शाश्वतम्, प्रकृति-मानव-सङ्गतम्,
सङ्गतं खलु शाश्वतम्।
तत्त्व-सर्वं धारकं
सत्त्व-पालन-कारकं
वारि-वायु-व्योम-वह्नि-ज्या-गतम्।
शाश्वतम्, प्रकृति-मानव-सङ्गतम्।।(ध्रुवम्)
हिंदी अर्थ:- प्रकृति और मनुष्य के बीच का संबंध शाश्वत है। रिश्ता शाश्वत है। जल, वायु, आकाश के सभी तत्व, अग्नि और पृथ्वी वास्तव में धारक हैं और जीवों के पालनहार।
चेष्टा वायुः खमाकाशमूष्माग्निः सलिलं द्रवः।
पृथिवी चात्र सङ्कातः शरीरं पाञ्चभौतिकम्।।
हिंदी अर्थ:- महर्षि भृगु कहते हैं कि इन वृक्षों के शरीर में गति वायु का रूप है, खोखलापन आकाश का रूप है, ताप अग्नि का रूप है, तरल सलिल का रूप है, ठोसता पृथ्वी का रूप है। इस प्रकार इन वृक्षों का यह शरीर पांच तत्वों- वायु, आकाश, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना है।
चत्वारोऽप्सु गुणाः राजन् गन्धस्तत्र न विद्यते।
शब्दः स्पर्शश्च रूपं च तेजसोऽथ गुणास्त्रयः।
शब्दः स्पर्शश्च वायोस्तु आकाशे शब्द एव तु ।।
हिंदी अर्थ:- ये पाँच गुण पाँच महाभूतों में रहते हैं। पाँच महाभूतों से सारे प्राणी और पदार्थ बनते हैं। इन पञ्चमहाभूत में सारे प्राणी प्रतिष्ठित हैं|
आपोऽनिर्मारुतश्चैव नित्यं जाग्रा
मूलमेते शरीरस्य व्यान प्राणानिह स्थिताः।।
हिंदी अर्थ:- महाभारत (Mahabharat) के शांतिपर्व में भी कहा गया है कि, प्राणियों के शरीर इन पाँच महाभूतों के मिलने से बनते हैं। श या गति वाय(A) के कारण है। खोखलेपन आकाश(skvsspace) का अंश शरीर की गर्मी अग्नि (Fire) का भाग और रक्त आदि तरल पदार्थ जल (water) के अंश हैं। हड्डी, मांस, आदि कड़े पदार्थ पृथिवी (Earth) के अंश हैं
तेजो ह्यग्निस्तथा क्रोधश्चक्षुरूष्मा यथैव च।
अग्रिर्जरयते यश्च पश्चानेयाः शरीरिणः।।
हिंदी अर्थ:- कान, नाक, मुख, हृदय और पेट ये आकाश के तत्त्व हैं
श्लेष्मा पित्तमथ स्वेदो वसा शोणितमेव च।
इत्यापः पञ्चधा देहे भवन्ति प्राणिनां सदा।।
हिंदी अर्थ:- आकाशादि पंचमहाभूत के सात्त्विक अंश से ज्ञानेन्द्रियों की उत्पति होती है- आँख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ है जो इन्हीं पञ्चमहाभूतों का सूक्ष्म अंश हैं
श्रोतं घ्राणं रसःस्पर्शी दृष्टिश्चेन्दियसंज्ञिताः।।
हिंदी अर्थ:- आकाशादि पंचमहाभूत के रजस अंश से अलग-अलग व्यष्टिरूप में क्रमशः वाणी, हाथ, पैर, गुदा और जननेन्द्रिय – ये पांच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न हुई|
तेजो ह्यग्निस्तथा क्रोधश्चक्षुरूष्मा यथैव च।
अग्निर्जरयते यश्च पश्चाग्नेयाः शरीरिणः।।
हिंदी अर्थ:- कान, नाक, मुख, हृदय और पेट ये आकाश के तत्त्व हैं
श्लेष्मा पित्तमथ स्वेदो वसा शोणितमेव च।
इत्यापः पञधा देहे भवन्ति प्राणिना सदा।।
हिंदी अर्थ:- आकाशादि पंचमहाभूत के सात्त्विक अंश से ज्ञानेन्द्रियों की उत्पति होती है- आँख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ है जो इन्हीं पञ्चमहाभूतों का सूक्ष्म अंश हैं
श्रोतं घ्राणं रसः स्पर्शी दृष्टिश्चेन्दियसंज्ञिताः।।
हिंदी अर्थ:- आकाशादि पंचमहाभूत के रजस अंश से अलग-अलग व्यष्टिरूप में क्रमशः वाणी, हाथ, पैर, गुदा और जननेन्द्रिय – ये पांच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न हुई
कर्मेन्द्रियाणि वाक्पाणिपादपायूपस्थाख्याणि।।
हिंदी अर्थ:- आकाशादि पंचमहाभूत के उसी रजस अंश से समष्टिरुप में क्रमशः प्राण, अपान , व्यान , उदान और समान पांच प्राणवायु उत्पन्न हुए –