2022 में होलाष्टक कब से कब तक हैं | होलाष्टक कब से लगेंगे 2022 | Holashtak Date 2022 and shubh muhurt
आज के समय में हमारी नई पीड़ी को पता ही नहीं है की कैसे त्यौहार मनाये जाते हैं| आज हम इसी परंपरा की चर्चा करेंगे | होलाष्टक जिस दिन से शुरू होते हैं उस दिन से होली का काउंटडाउन शुरू हो जाता है|
औरतें चोराहे पर लगाईं गई होलिका की पूजा शुरू कर देती है और शास्त्रों के अनुसार छोटे बड़े सभी शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है|
आज हम चर्चा करेंगे होलाष्लाट क्या है और इसका महत्त्व और 2022 में होलाष्टक कब से शुरू है और कब तक रहेंगे|
होलाष्टक कब से लगेंगे 2022 में |
फाल्गुन माह की शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन माह की पूर्णिमा तक होलाष्टक का समय माना जाता है| इन आठ दिनों में शुभ कार्य वर्जित रहते हैं जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, इत्यादि|
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है और इसके साथ ही होलकाष्टक की समाप्ति हो जाती है|
होलाष्टक का आरंभ
10 मार्च 2022 रविवार
होलाष्टक समाप्त
18 मार्च 2022 रविवार
होली के पर्व की शुरुआत होलाष्टक लगने से ही हो जाती है| और बच्चे पानी के गुब्बारों से हलकी फुल्की होली खेलना शुरू कर देते हैं| होलिका दहन जिसे हम छोटी होली भी
कहते हैं इस दिन होलाष्टक ख़त्म हो जाते है और इसके दुसरे दिन बड़ी होली और धुलेंडी होती है और इस दिन बहुत जोर शोर से होली खेली जाती है|
होलाष्टक पर कर सकते हैं यह काम
शास्त्रों के अनुसार इन आठ दिनों में व्रत रख सकते हैं| इन दिनों में दान करने से कष्टों से मुक्ति होती है| इन दिनों में सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र, अन्न और धन इत्यादि का दान करना चाहिए|
होलाष्टक का वैज्ञानिक महत्त्व
हिन्दू धर्म में मानव स्वास्थ्य को धर्म से जोड़ा गया है| यदि हमारा शरीर स्वस्थ है तो हम साधना कर सकते हैं|
इसी कारण आप देखेंगे हिन्दू धर्म में समय समय पर व्रत रखने का भी प्रावधान है और किसी भी कार्य को करने और न करने पर भी अंकुश लगाया गया है|
शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन की अष्टमी से ही मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है|
इसी दिन से ही ग्रीष्म ऋतू का प्रारंभ माना जाता है| मौसम में जब बदलाव होता है तो वातावरण में विषाणु ज्यादा प्रभावी हो जाते हैं|
इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्रत का प्रावधान रखा गया है|
प्रकृति इस समय करवट ले रही होती है और नक्षत्र भी बदलाव की स्तिथि में होते हैं इसलिए किसी भी शुभ कार्य को वर्जित बताया गया है जिससे हमारे शुभ कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े|
होलाष्टक का पुराणिक महत्त्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रह्लाद भगवान् विष्णु का परम भक्त था| हिरन्यकश्यप, प्रहलाद का पिता, चाहता था की प्रहलाद भगवान् विष्णु की पूजा न करे और केवल उसे ही भगवान् की तरह पूजे|
हिरन्य कश्यप ने प्रहलाद की विष्णु भक्ति की वजह से उसे कई बार मारने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाया|
ऐसा माना जाता है फाल्गुन की अष्टमी से लेकर फाल्गुन की पूर्णिमा तक प्रहलाद को कई कष्ट दिए गए और होलिका दहन वाले दिन, हिरन्यकश्यप की बहन होलिका, प्रहलाद को लेकर उसे मारने के लिए आग में बेठ गई|
लेकिन भगवान् विष्णु की कृपा से होलिका आग में भष्म हो गई और प्रहलाद सकुशल बच गए|
इसलिए यही आठ दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाये जीते है और आठवें दिन प्रतीक के रूप में होलिका दहन किया जाता है|
इसके अलावा एक और कथा के अनुसार इसी दिन भगवान् शिव ने अपने तीसरे नेत्र से काम देव को भष्म किया था| और पुरे आठ दिन तक कामदेव की पत्नी के विलाप करने के बाद भगवान् शिव ने कामदेव को पुनः जीवित क्या था|
ऐसा माना जाता है इसलिए विवाह जैसे शुभ कार्य तो इन आठ दिनों में बिलकुल वर्जित है|
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